सावधान! रसोई में इस्तेमाल हो रहा तेल बन सकता है ब्रेस्ट कैंसर की वजह
Lifeberrys Hindi April 21, 2025 01:42 AM

कैंसर एक जानलेवा बीमारी है, जो हर साल लाखों लोगों की ज़िंदगी छीन लेती है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है और समय पर इलाज न मिले तो जान जाने का खतरा भी होता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसी गंभीर बीमारियां आखिर होती क्यों हैं? अक्सर हमारी ही लाइफस्टाइल इनका बड़ा कारण बन जाती है — हमारी डाइट, नींद का पैटर्न, और यहां तक कि हमारी किचन में रखा कुकिंग ऑयल भी हमारी सेहत पर गहरा असर डालता है। चौंकिए मत — एक रिसर्च में पाया गया है कि आमतौर पर इस्तेमाल होने वाला कुछ खाना पकाने का तेल ब्रेस्ट कैंसर का कारण बन सकता है।

हल्का दिखने वाला तेल, लेकिन असर भारी

अधिकतर लोग सोचते हैं कि हल्का, कम महक वाला तेल जैसे सोयाबीन या सूरजमुखी का तेल ज़्यादा हेल्दी होते हैं। यही वजह है कि ये तेल हमारे किचन में आम हो गए हैं। लेकिन हाल ही में हुई एक रिसर्च ने इस धारणा को हिला कर रख दिया है।

Weill Cornell Medicine की एक स्टडी (जो Science जर्नल में छपी है) में बताया गया है कि इन तेलों में पाया जाने वाला Linoleic Acid नामक फैट, Triple-Negative Breast Cancer (TNBC) को बढ़ावा दे सकता है। TNBC ब्रेस्ट कैंसर का सबसे आक्रामक और तेजी से फैलने वाला प्रकार है, जिस पर हार्मोनल थेरेपी का असर नहीं होता।

कैसे हुआ यह खुलासा?

वैज्ञानिकों ने इस रिसर्च के लिए चूहों पर प्रयोग किया। जिन चूहों को linoleic acid वाला भोजन दिया गया, उनके शरीर में ट्यूमर ज़्यादा तेज़ी से फैला। खास बात यह थी कि यह प्रभाव सिर्फ TNBC में देखा गया, अन्य ब्रेस्ट कैंसर टाइप्स में नहीं। स्टडी के अनुसार, शरीर में FABP5 नामक प्रोटीन अधिक मात्रा में होने पर यह असर और ज़्यादा गंभीर हो जाता है।

किन चीज़ों में होता है Linoleic Acid?

शोध का नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर Dr. John Blenis के मुताबिक, हर इंसान के लिए एक जैसी डाइट नहीं हो सकती। कुछ लोगों को अपनी खाने की आदतों पर खास ध्यान देना चाहिए। उन्होंने बताया कि linoleic acid इन चीज़ों में अधिक पाया जाता है:

- सूरजमुखी का तेल
- सोयाबीन का तेल
- अंडा
- पोर्क (सूअर का मांस)

बचाव के लिए क्या करें?


अगर आप इस रिस्क से बचना चाहते हैं, तो तली-भुनी चीज़ों से दूरी बनाएं। खाना पकाने के लिए आप सरसों का तेल, नारियल तेल या देसी घी का सीमित मात्रा में इस्तेमाल कर सकते हैं। ये विकल्प न सिर्फ परंपरागत हैं, बल्कि कुछ हद तक सेहतमंद भी माने जाते हैं।

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