मोदी के बाद कौन? दिल्ली में बंद कमरों में हो रही मैराथन मीटिंग्स ने मचाया सियासी तूफान!
Webdunia Hindi April 23, 2025 04:42 AM


Who is Modi successor: दिल्ली के सियासी गलियारों में इन दिनों हलचल मची है। बंद कमरों में हो रही मैराथन मीटिंग्स ने न सिर्फ विपक्ष को बेचैन कर दिया है, बल्कि सत्ता पक्ष के भीतर भी सवालों का अंबार लग गया है। आखिर क्या पक रहा है? क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने उत्तराधिकारी की तलाश में हैं? या फिर बीजेपी और आरएसएस 2029 के लिए कोई बड़ा दांव खेलने की तैयारी में हैं? अफवाहों का बाजार गर्म है और सूत्रों के पास भी जवाब कम, कयास ज्यादा हैं।

सियासी बिसात पर नया खेल : कहा जा रहा है कि ये मीटिंग्स पीएम मोदी के भविष्य और बीजेपी के नेतृत्व परिवर्तन की रणनीति को लेकर हैं। कुछ लोग दबी जुबान में कह रहे हैं कि मोदी सेवानिवृत्ति की ओर बढ़ सकते हैं और पार्टी अब अगले चेहरे की तलाश में है। इस दौड़ में दो नाम सबसे ज्यादा चर्चा में हैं- गृहमंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ। जहां शाह की रणनीतिक चतुराई और केंद्रीय सत्ता पर पकड़ उन्हें मजबूत दावेदार बनाती है, वहीं योगी की जनादेश की राजनीति और हिंदुत्व की आक्रामक छवि उन्हें कार्यकर्ताओं का चहेता बनाती है।

लेकिन सियासत इतनी सीधी नहीं होती। सत्ता का लालच और महत्वाकांक्षा कभी-कभी बड़े से बड़े प्लान को पलट देती है। बीजेपी और आरएसएस 2004 की उस गलती को दोहराने के मूड में नहीं हैं, जब अटल बिहारी वाजपेयी के बाद लालकृष्ण आडवाणी को नेतृत्व सौंपा गया, लेकिन 2009 में यूपीए ने बीजेपी को करारी शिकस्त दी। आडवाणी का जिन्ना वाला बयान भले ही चर्चा में रहा, लेकिन उनमें असल कमी थी उस करिश्माई नेतृत्व की, जो जनता को जोड़ सके।

शाह या योगी : कौन होगा अगला चेहरा? सूत्रों की मानें तो बीजेपी की रणनीति साफ है- उत्तराधिकारी को पहले से तैयार करना। अमित शाह को पहला कार्यकाल मिल सकता है, क्योंकि उनकी संगठनात्मक पकड़ और मोदी के साथ लंबी साझेदारी उन्हें स्वाभाविक दावेदार बनाती है। शाह की बॉडी लैंग्वेज भी यही इशारा करती है कि उन्हें बड़े रोल के लिए ग्रूम किया जा रहा है। दूसरी ओर, योगी आदित्यनाथ का नाम यूपी में तीसरे कार्यकाल के बाद केंद्र में आने की संभावना को बल देता है। योगी की लोकप्रियता, खासकर हिंदुत्व और कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर, उन्हें जनता के बीच एक मजबूत चेहरा बनाती है।

लेकिन क्या यह सब इतना आसान होगा? सत्ता का ट्रैप और पार्टी के भीतर की गुटबाजी किसी भी रणनीति को चुनौती दे सकती है। मोदी, जो खुद एक मास्टर स्ट्रैटेजिस्ट हैं, यह अच्छे से जानते हैं। यही वजह है कि वह अपने उत्तराधिकारी को आडवाणी की तरह अधर में नहीं छोड़ना चाहते। कयास लगाए जा रहे हैं कि पीएम मोदी भविष्य में राष्ट्र प्रमुख या राष्ट्र प्रधान जैसी कोई भूमिका निभा सकते हैं, जहां से वह मार्गदर्शक की तरह पार्टी और सरकार को दिशा दिखाएंगे। यही नहीं 2029 का लोकसभा चुनाव भी मोदी के ही चेहरे पर लड़ा जाना लगभग तय है।

2047 का विजन और आरएसएस की लंबी सोच : ये मैराथन मीटिंग्स सिर्फ नेतृत्व परिवर्तन तक सीमित नहीं हैं। बीजेपी और आरएसएस 2047 के विजन को लेकर काम कर रहे हैं, जिसमें भारत को वैश्विक महाशक्ति बनाने का सपना शामिल है। इसके लिए एक ऐसा नेतृत्व चाहिए, जो न सिर्फ केंद्र में बीजेपी को अजेय रखे, बल्कि विपक्ष को भी कोई मौका न दे। आरएसएस की दीर्घकालिक सोच और बीजेपी की रणनीति इस बिसात का हिस्सा हैं।

मोदी जानते हैं कि सत्ता में आना जितना मुश्किल है, उसे बनाए रखना उससे भी कठिन है। इसलिए वह न सिर्फ विपक्ष से, बल्कि अपनी ही पार्टी के भीतर ऐसी व्यवस्था चाहते हैं, जिससे नेतृत्व परिवर्तन के बाद भी बीजेपी का दबदबा कायम रहे।

इन सवालों का जवाब कौन देगा?

“मोदी के बाद कौन?” यह सवाल आज हर सियासी गलियारे में गूंज रहा है। लेकिन जिस तरह की रणनीति बीजेपी और आरएसएस बना रहे हैं, लगता है कि यह सवाल जल्द ही बेमानी हो जाएगा। मोदी का उत्तराधिकारी कोई ऐसा चेहरा होगा, जिसे जनता और संगठन दोनों स्वीकार करें। और अगर मोदी खुद राष्ट्रपति बनकर मार्गदर्शन की भूमिका में आते हैं, तो यह सवाल पूछने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

सियासत की इस शतरंज में अगला दांव कौन खेलेगा? क्या अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के बीच सत्ता की जंग होगी, या फिर दोनों मिलकर बीजेपी को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे? जवाब तो वक्त ही देगा, लेकिन एक बात तय है कि दिल्ली की इन मैराथन मीटिंग्स ने सियासी तापमान को चरम पर पहुंचा दिया है।

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