कश्मीरी पंडितों के पलायन की 35वीं वर्षगांठ: अनुपम खेर ने सुनाई दर्द भरी कविता
Gyanhigyan April 23, 2025 10:42 AM
कश्मीरी पंडितों का ‘होलोकॉस्ट डे’

कश्मीरी पंडित (फाइल फोटो) Getty

हर साल 19 जनवरी को कश्मीरी पंडित ‘होलोकॉस्ट डे’ के रूप में मनाते हैं, जो 1990 में पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के कारण घाटी से उनके पलायन की याद दिलाता है। इस दिन जम्मू-कश्मीर में सैकड़ों लोग एकत्रित हुए, जहां उन्होंने कश्मीरी पंडितों के विस्थापन की 35वीं वर्षगांठ मनाई। हजारों कश्मीरी पंडितों ने उस भयावह स्थिति को याद किया।

कश्मीरी पंडित संगठनों जैसे पनुन कश्मीर, यूथ ऑल इंडिया कश्मीरी समाज (YAIKS) और कश्मीर पंडित सभा (KPS) ने पीड़ितों को श्रद्धांजलि देने और समुदाय के अधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराने के लिए विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए। इस अवसर पर कश्मीरी पंडितों ने घाटी में वापसी के साथ न्याय और पुनर्वास की मांग की। अभिनेता अनुपम खेर ने भी इस दिन एक भावुक कविता सुनाई।


समुदाय की मांगें और संघर्ष ‘समुदाय पिछले 3 दशकों में बहुत कुछ सहा’

जम्मू में जगती बस्ती के पास एक मैदान में बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए और घाटी में वापसी के साथ पुनर्वास की मांग की। पनुन कश्मीर के प्रवक्ता ने कहा, ‘यह स्मरण, दृढ़ता और न्याय के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। हम चाहते हैं कि सरकार घाटी में समुदाय के लिए एक ‘अलग राज्य’ बनाए।’

सुषमा पंडिता नाम की एक महिला ने कहा कि समुदाय ने पिछले 30 वर्षों में बहुत कुछ सहा है। उन्होंने सरकार से पुनर्वास के लिए विशेष पैकेज की घोषणा करने की अपील की। उनका कहना था, ‘सरकार को विस्थापित समुदाय पर ध्यान देना चाहिए। हमारे बेरोजगार युवाओं के लिए एक नौकरी पैकेज की घोषणा की जानी चाहिए।’


अनुपम खेर की भावनाएं अनुपम खेर ने क्या कहा?

अभिनेता अनुपम खेर ने कश्मीरी हिंदुओं के पलायन पर आधारित फिल्म ‘कश्मीर-फाइल्स’ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर अपनी भावनाएं व्यक्त करते हुए लिखा, ’19 जनवरी, 1990 कश्मीरी हिंदुओं का पलायन दिवस! 35 साल हो गए हैं जब 5 लाख से अधिक हिंदुओं को उनके घरों से बेरहमी से निकाला गया था। वे घर अभी भी वहीं हैं, लेकिन भुतहा और भुला दिए गए हैं!’

उन्होंने आगे लिखा, ‘इस त्रासदी की शिकार सुनयना काचरू भिड़े ने उन घरों की यादों को लेकर एक दिल दहला देने वाली कविता लिखी है। ये पंक्तियां उन सभी कश्मीरी पंडितों के साथ गूंजेंगी जो इस भीषण त्रासदी के शिकार हुए थे! यह दुखद भी है और सच भी!’ अनुपम खेर ने उस काले दिन को याद करते हुए कविता सुनाई।


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