उन्होंने कहा, एक राष्ट्र, एक चुनाव ‘विकसित भारत’ की आधारशिला है, जो एक मजबूत और स्थिर भारत की दिशा में निर्णायक साबित होगा। प्रधान ने कहा, यह विषय अब कानूनी और राजनीतिक चर्चाओं से आगे बढ़कर देश के मुख्य एजेंडे का हिस्सा बन गया है। किसी भी बड़े राष्ट्रीय निर्णय को अंजाम तक ले जाने के लिए नीति, योजना, रणनीति और सबसे महत्वपूर्ण जनभागीदारी जरूरी है।
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उन्होंने कहा कि यह केवल चुनाव खर्च और आचार संहिता तक सीमित विषय नहीं बल्कि यह देश की राजनीतिक स्थिरता, सुशासन और विकास को नई दिशा देने का माध्यम है। प्रधान ने आरोप लगाया कि विपक्ष के ‘नकारात्मक रवैए’ जनादेश का अपमान होता है।
उन्होंने कहा, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि ‘यह समय, भारत का समय है’ तो विपक्ष का नकारात्मक रवैया दुर्भाग्यपूर्ण होता है। इससे न केवल देश की संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठता है बल्कि जनादेश का भी अपमान होता है।
प्रधान ने कहा, विपक्ष की यह नकारात्मक राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण है, जिसमें देश की संवैधानिक संस्थाओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा, संविधान की बात करने वाले ये लोग ही संविधान को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं। प्रधान ने आरोप लगाया कि 1967 के बाद जब जन आकांक्षाओं की अनदेखी की गई तो कांग्रेस ने जोड़-तोड़ की राजनीति को बढ़ावा दिया।
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शिक्षा मंत्री ने कहा, आज सामंती सोच से ग्रसित ये लोग मोदी सरकार को तीसरी बार जनता द्वारा दिए गए जनादेश को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। उन्होंने कहा,आज समय है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था को और मजबूत किया जाए तथा ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को जन अभियान, जन संवाद और जन आंदोलन में बदला जाए। (भाषा)
Edited By : Chetan Gour