राजस्थान की पवित्र भूमि पर असंख्य मंदिर हैं, जहाँ भक्ति की गूंज आज भी हवाओं में घुली रहती है। लेकिन बाड़मेर जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहाँ कभी शंख, घंटियाँ और मंत्रोच्चार गूंजते थे, आज वहाँ सन्नाटा है। यह मंदिर है — किराडू मंदिर। एक समय यह मंदिर धार्मिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण था। पर आज सवाल यह है: क्या कभी यहाँ फिर से पूजा होगी? क्या घंटियाँ फिर से बजेंगी?
किराडू: इतिहास में खोया एक भव्य तीर्थ11वीं–12वीं शताब्दी में परमार राजवंश द्वारा निर्मित किराडू मंदिर कभी एक जीवंत तीर्थस्थल था। यहाँ शिवजी के साथ-साथ विष्णु, गणेश और अन्य देवी-देवताओं की पूजा होती थी। यहाँ बने पाँच मंदिरों में सबसे प्रमुख है — सोमेश्वर महादेव मंदिर, जो आज भी अडिग खड़ा है। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, यहाँ पहले भव्य पूजा-अर्चना, यज्ञ, और धार्मिक अनुष्ठान होते थे। संत-महात्मा यहाँ तप करते थे और भक्तों की भीड़ लगी रहती थी। यह स्थान एक धार्मिक नगर की तरह था।
लेकिन क्या हुआ ऐसा कि पूजा रुक गई?लोककथाओं के अनुसार, एक संत ने गाँव वालों को उनके क्रूर व्यवहार के कारण श्राप दिया कि यह क्षेत्र शापित रहेगा। उनके अनुसार, सूर्यास्त के बाद यहाँ रुकने वाला पत्थर बन जाएगा। इस श्राप के बाद लोगों ने यहाँ आना बंद कर दिया। धीरे-धीरे पूजा-पाठ बंद हुआ और मंदिर वीरान हो गया। अब वहाँ केवल खंडहर, मौन देव मूर्तियाँ और हवाओं की सरसराहट बची है। कोई पुजारी नहीं, कोई भक्त नहीं, और कोई आरती नहीं।
क्या फिर से हो सकती है पूजा?यह सवाल आज भी राजस्थान के लोगों और इतिहास प्रेमियों के मन में गूंजता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार, किसी भी शाप का प्रभाव अनंतकाल तक नहीं होता। अगर सच्चे मन से श्रद्धा और संकल्प लिया जाए, तो स्थान की पुनः प्रतिष्ठा संभव है। कुछ स्थानीय समाजसेवी और पुरातत्व प्रेमी वर्षों से प्रयास कर रहे हैं कि इस मंदिर को दोबारा जीवित किया जाए। सरकार द्वारा संरक्षण कार्य जारी है, लेकिन धार्मिक रूप से पुनः जागृत करने के लिए सामूहिक पहल की ज़रूरत है।
परंपरा क्या कहती है?भारतीय परंपरा कहती है कि "जहाँ श्रद्धा है, वहाँ शक्ति है।" यदि लोग फिर से आस्था के साथ वहाँ जाएं, फिर से दीप जलाएं, मंत्रोच्चार करें और भगवान शिव का आह्वान करें — तो घंटियाँ जरूर फिर से गूंजेंगी। कई धार्मिक स्थल, जो कभी वीरान हुए थे, आज फिर से पुनर्जीवित हो चुके हैं। किराडू भी ऐसा ही एक चमत्कारी परिवर्तन देख सकता है।
निष्कर्षकिराडू मंदिर आज भले ही खामोश है, लेकिन उसकी दीवारें अब भी इंतजार कर रही हैं — उस दिन का जब फिर से कोई पुजारी आएगा, शंख बजेगा, घंटियाँ गूंजेंगी और भगवान के चरणों में भक्तों की श्रद्धा बह निकलेगी।