नई दिल्ली, 24 अप्रैल 2025: आचार्य चाणक्य, जिन्हें कुशल रणनीतिकार और महान अर्थशास्त्री के रूप में जाना जाता है, उन्होंने अपने नीति शास्त्र में समाज के विभिन्न वर्गों — संत, विद्वान, राजनयिक और सामान्य जन — के व्यवहार को लेकर अमूल्य ज्ञान दिया है। खासकर जब बात आती है बिना नुकसान किसी से अपना काम निकलवाने की, तो उनका एक श्लोक विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
"यस्माच्च प्रियमिच्छेत् तस्य ब्रूयात्सदा प्रियम्।
व्याघ्रो मृगवधं गन्तुं गीतं गायति सुस्वरम्।।"
इस श्लोक का अर्थ है — जिस व्यक्ति से कोई प्रिय कार्य करवाना हो, उसके सामने हमेशा मधुर वाणी बोलनी चाहिए। जैसे एक शिकारी (व्याघ्र) हिरण को मारने से पहले मीठे स्वर में गीत गाता है, ताकि वह आकर्षित होकर पास आ जाए।
चाणक्य के अनुसार, मीठी बातें करना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि स्मार्ट रणनीति है। अगर कोई भी कार्य किसी से करवाना हो और वह भी बिना उसे कोई अतिरिक्त लाभ दिए — तो वाणी का माधुर्य सबसे कारगर तरीका है।
यह श्लोक यह भी दर्शाता है कि काम निकलवाना कोई बुरी बात नहीं, बशर्ते कि किसी को नुकसान न पहुंचे। वाणी का संयम और मधुरता व्यक्ति को आपकी ओर आकर्षित करती है, जिससे आपका उद्देश्य सरलता से पूर्ण हो सकता है।
आज के तेज़ रफ्तार युग में, जहाँ हर कोई व्यस्त है और अपने स्वार्थ में डूबा है, वहाँ किसी से कोई मदद लेना या काम निकलवाना आसान नहीं। ऐसे में चाणक्य का यह सूत्र बताता है कि केवल सॉफ्ट स्किल्स और सकारात्मक व्यवहार से आप दूसरों से अपना काम करवा सकते हैं।
‘वचने किम दरिद्रता’ — अर्थात् बोलने में दरिद्रता क्यों? जब मीठे शब्द किसी को आपकी बात मानने को प्रेरित कर सकते हैं, तो कठोरता क्यों? चाणक्य की यह नीति आज के समय में भी उतनी ही प्रभावी है जितनी हजारों वर्ष पहले थी।