कठुआ 26 अप्रैल . राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण, जम्मू-कश्मीर विधिक सेवा प्राधिकरण के तत्वावधान में तथा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष जतिंदर सिंह जमवाल के मार्गदर्शन में राजकीय बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय कठुआ में पोक्सो, जेजेबी अधिनियमों पर कानूनी जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया.
कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुई. कक्षा 12वीं की दीक्षा बलोत्रा ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की. सचिव उप-न्यायाधीश कामिया सिंह अंडोत्रा ने अपने मुख्य भाषण के दौरान कहा कि बाल यौन शोषण के गंभीर मुद्दे को संबोधित करने के लिए वर्ष 2012 में भारतीय संसद द्वारा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) अधिनियमित किया गया था. यह 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को यौन अपराधों से बचाने के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है. पोक्सो अधिनियम एक लिंग-तटस्थ कानून है और यह लड़के और लड़की दोनों पर समान रूप से लागू होता है, यह मानते हुए कि लड़के भी यौन शोषण के शिकार हो सकते हैं. अधिनियम स्पष्ट रूप से विभिन्न प्रकार के यौन अपराधों को परिभाषित करता है, जिसमें पेनेट्रेटिव यौन हमला, यौन उत्पीड़न, पोर्नोग्राफी के लिए बच्चे का उपयोग करना शामिल है. यह इन अपराधों के गंभीर रूपों पर भी विचार करता है, जैसे कि शिक्षक, पुलिस अधिकारी, सशस्त्र या सुरक्षा बलों के सदस्य, या परिवार के सदस्य या बाल देखभाल संस्थानों, अस्पतालों के कर्मचारी या प्रबंधन या सामूहिक यौन उत्पीड़न जैसे भरोसेमंद पदों पर बैठे व्यक्तियों द्वारा किए गए अपराध.
उन्होंने बताया कि इस अधिनियम का सबसे खास पहलू यह है कि यह बच्चों के अनुकूल कानूनी प्रक्रियाओं पर जोर देता है जो यह सुनिश्चित करता है कि बच्चे को कठोर अदालती कार्यवाही का सामना न करना पड़े. बयान बच्चों के अनुकूल तरीके से दर्ज किए जाते हैं. बच्चे के साथ बातचीत करते समय पुलिस को वर्दी में नहीं होना चाहिए. जहाँ तक संभव हो, एफआईआर महिला अधिकारी द्वारा दर्ज की जानी चाहिए. बच्चे का बयान घर या किसी आरामदायक जगह पर दर्ज किया जाना चाहिए. बच्चे को रात भर पुलिस हिरासत में नहीं रखा जा सकता. मेडिकल जांच अभिभावक की मौजूदगी में और महिला डॉक्टर द्वारा की जानी चाहिए. मुकदमे के दौरान बच्चे को आरोपी के संपर्क में नहीं आना चाहिए. मुकदमा विशेष अदालत में चलाया जाना चाहिए और 6 महीने के भीतर पूरा किया जाना चाहिए. एक और मुख्य विशेषता यह है कि बच्चे की पहचान सभी चरणों में सुरक्षित रखी जाती है और उसका खुलासा नहीं किया जाना चाहिए. कानून में मीडिया या सार्वजनिक प्रदर्शन से बचने के लिए बंद कमरे में सुनवाई का प्रावधान है. यह माता-पिता, शिक्षकों या डॉक्टरों सहित किसी भी व्यक्ति पर यह दायित्व डालता है कि यदि उसे इस अधिनियम के तहत किसी अपराध के बारे में पता है तो उसे रिपोर्ट करना अनिवार्य है और रिपोर्ट न करना अपने आप में दंडनीय अपराध है. अधिनियम में यह अनिवार्य किया गया है कि एफआईआर के 2 महीने के भीतर जांच पूरी हो जानी चाहिए और आदर्श रूप से 6 महीने के भीतर सुनवाई पूरी हो जानी चाहिए. इस अधिनियम का उद्देश्य दंड देना नहीं बल्कि सुधार और पुनर्वास करना है.
कठुआ की प्रिंसिपल मजिस्ट्रेट जेजेबी चीना सुम्ब्रिया ने अपने विशेष संबोधन में इस बात पर जोर दिया कि किशोर न्याय अधिनियम एक प्रगतिशील कानून है जो न्याय को सहानुभूति के साथ संतुलित करने का प्रयास करता है. यह अपराधों की गंभीरता को पहचानता है, साथ ही यह भी स्वीकार करता है कि बच्चों को सुधार का मौका मिलना चाहिए. अधिनियम ने गोद लेने के मामलों में तेजी लाने के लिए जिला मजिस्ट्रेटों को अधिक अधिकार दिए हैं. यह अधिनियम बाल कल्याण समितियों और बाल देखभाल संस्थानों (सीसीएल) की जवाबदेही को मजबूत करता है. एक समाज के रूप में, हमें सजा से हटकर पुनर्वास और पुनर्मिलन की ओर बढ़ना चाहिए. उचित कार्यान्वयन, जन जागरूकता और एक मजबूत सहायता प्रणाली यह सुनिश्चित कर सकती है कि हर बच्चे को, चाहे उनकी परिस्थितियाँ कुछ भी हों, बेहतर जीवन का दूसरा मौका दिया जाए. सीडब्ल्यूसी की अध्यक्ष शशि पॉल ने सभा को संबोधित करते हुए बताया कि पुलिस, चाइल्ड लाइन, एनजीओ या संबंधित नागरिक द्वारा देखभाल और संरक्षण की जरूरत वाले किसी भी बच्चे को 24 घंटे (यात्रा समय को छोड़कर) के भीतर सीडब्ल्यूसी के समक्ष पेश किया जाता है. अधिवक्ता नैया शर्मा, पुनीत कुमारी और सुमित जसरोटिया ने कानूनों पर अपने बहुमूल्य विचार साझा किए. कक्षा 10वीं की छात्रा नैन्सी मंजोत्रा ने कविता पाठ किया, कक्षा 12वीं की कोयल बनोत्रा ने विषय पर भाषण दिया. स्कूल की छात्राओं नितिका, मानसी, छोटी, शिवानी, निधि, मनप्रीत, अंशिका, रिया, खुशी, रोशनी ने नुक्ड नाटक प्रस्तुत किया. स्टाफ सदस्य सुरभि जसरोटिया ने कार्यवाही का संचालन किया. समापन पर विद्यालय के प्रधानाचार्य मंगल सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन दिया.
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/ सचिन खजूरिया