मेहनत, समर्पण और जुनून, ये तीन तत्व किसी भी सपने को साकार कर सकते हैं। यह बात अमीर या गरीब होने से नहीं बदलती। युवा क्रिकेटर यशस्वी जायसवाल की कहानी इस बात का प्रमाण है। यशस्वी ने एक समय गोलगप्पे बेचे और कई रातें भूखे पेट टेंट में बिताईं। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और हर चुनौती का सामना किया। उनकी सफलता की कहानी निश्चित रूप से प्रेरणादायक है।
यशस्वी जायसवाल भदोही, उत्तर प्रदेश के निवासी हैं। उनके पिता की एक छोटी सी दुकान है और मां गृहिणी हैं। यशस्वी अपने परिवार में सबसे छोटे हैं और उनका सपना क्रिकेटर बनने का था। इस सपने को पूरा करने के लिए, उन्होंने केवल 10 साल की उम्र में घर छोड़कर मुंबई का रुख किया। उनके पिता ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की, क्योंकि उनके पास बेटे के भविष्य के लिए पैसे नहीं थे।
मुंबई में, यशस्वी ने आजाद मैदान में रामलीला के दौरान पानी-पूरी और फल बेचने का काम किया। वह कभी-कभी क्रिकेट खेलने भी जाते थे, लेकिन हमेशा प्रार्थना करते थे कि उनके साथी गोलगप्पे के ठेले पर न आएं। क्रिकेट में अच्छे प्रदर्शन के लिए वह 200-300 रुपये कमा लेते थे।
यशस्वी ने अक्सर मैचों के दौरान खोई हुई गेंदें ढूंढने का काम किया। एक दिन, कोच ज्वाला सिंह ने उनकी प्रतिभा को देखा और उन्हें क्रिकेट की कोचिंग देने लगे। जल्द ही, यशस्वी का टैलेंट निखर गया और वह एक उत्कृष्ट क्रिकेटर बन गए।
यशस्वी ने 2019 में विजय हजारे ट्रॉफी में दोहरा शतक और तीन शतकों के साथ 504 रन बनाकर सबका ध्यान आकर्षित किया। वह इस उपलब्धि को हासिल करने वाले सबसे कम उम्र के बल्लेबाज बने। इसके बाद, उन्होंने अंडर-19 वर्ल्ड कप 2020 में भी शानदार प्रदर्शन किया और 'मैन ऑफ द टूर्नामेंट' बने।