प्रेम और मोह: जानें इन दोनों भावनाओं के बीच का अंतर
newzfatafat May 13, 2025 04:42 PM
प्रेम और मोह का परिचय

हर इंसान अपने जीवन में प्रेम और मोह के अनुभव से गुजरता है। ये दोनों भावनाएं एक-दूसरे से मिलती-जुलती लग सकती हैं, लेकिन इनके अर्थ और प्रभाव में काफी अंतर है। अक्सर लोग मोह को प्रेम समझ लेते हैं, जिससे कई बार दुखों का सामना करना पड़ता है। आज हम इस विषय पर विस्तार से चर्चा करेंगे कि प्रेम और मोह में क्या भिन्नता है और ये हमारी सोच, रिश्तों और जीवन के अनुभवों को कैसे प्रभावित करते हैं।


प्रेम की परिभाषा

प्रेम क्या है?
प्रेम एक ऐसी भावना है जिसमें निस्वार्थता, समर्पण और स्वीकृति होती है। यह वह शक्ति है जो किसी व्यक्ति, जीव, वस्तु या ईश्वर के प्रति बिना किसी अपेक्षा के आकर्षित करती है। सच्चा प्रेम सीमाओं से परे होता है, न जात-पात देखता है, न भाषा, रंग या धर्म।


प्रेम में "मैं" नहीं होता — सिर्फ "तू" होता है।
प्रेम में हम दूसरे के लिए भलाई चाहते हैं, भले ही वह हमारे साथ न हो। यह आत्मा से आत्मा का जुड़ाव है। उदाहरण के लिए, एक मां का अपने बच्चे के प्रति प्रेम या एक भक्त का अपने ईश्वर के प्रति प्रेम, ये बिना किसी शर्त और अपेक्षा के होते हैं।


मोह की परिभाषा

मोह क्या है?
मोह एक बंधन है — मन का, इच्छाओं का, और स्वार्थ का। यह व्यक्ति को सीमित करता है और अंततः दुख का कारण बनता है। मोह में किसी वस्तु या व्यक्ति से इतनी गहरी आसक्ति हो जाती है कि उसका न मिलना या उससे दूर होना पीड़ा बन जाता है। मोह कहता है — "तू मेरा है", जबकि प्रेम कहता है — "तू स्वतंत्र है, मैं तुझे वैसे ही स्वीकार करता हूँ।"


मोह में व्यक्ति सामने वाले से कुछ पाने की आशा करता है — भावनात्मक सुख, सुरक्षा, साथ, अधिकार। जब ये अपेक्षाएं पूरी नहीं होतीं, तो मोह टूटता है और दुःख पैदा करता है। उदाहरण के लिए, जब कोई व्यक्ति किसी रिश्ते में सिर्फ अपने लाभ के लिए जुड़ता है, तो वह प्रेम नहीं, मोह होता है।


आध्यात्मिक दृष्टिकोण

आध्यात्मिक दृष्टि से क्या कहते हैं ग्रंथ?
भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने मोह को आत्मा की उन्नति में सबसे बड़ा बाधक बताया है। वे कहते हैं कि जब व्यक्ति अपने मोह को त्याग देता है, तभी वह ज्ञान और शांति प्राप्त करता है। प्रेम को उन्होंने भक्ति का स्वरूप बताया है, जहाँ व्यक्ति हर परिस्थिति में अपने आराध्य में लीन रहता है, बिना किसी अपेक्षा के।


आज के समय में प्रेम और मोह

आज के समय में प्रेम और मोह कैसे दिखते हैं?
आज के दौर में सोशल मीडिया, फिल्मों और बाजारवाद ने "प्रेम" का अर्थ काफी हद तक बदल दिया है। आकर्षण, स्वार्थ और दिखावे को भी प्रेम समझ लिया जाता है। अक्सर हम किसी को पसंद करते हैं, उसकी आदतों के आदि हो जाते हैं और उसे "प्रेम" का नाम दे देते हैं। जबकि वह केवल मोह या आसक्ति होती है।


जब रिश्ता किसी फायदे या अपनी कमी को भरने के लिए होता है, तो वह टिकाऊ नहीं होता। वहीं, जब प्रेम वास्तविक होता है — चाहे वो मित्रता में हो, दांपत्य में या भक्ति में — तो वह सदा फलता-फूलता है।


प्रेम और मोह का प्रभाव

प्रेम मुक्ति देता है, मोह बंधन बनाता है
प्रेम एक दीपक की तरह है, जो अंधेरे में भी उजाला करता है। मोह एक जंजीर की तरह है, जो आगे बढ़ने नहीं देता। इसलिए ज़रूरी है कि हम अपने अंदर झांकें और समझें कि हम जिन भावनाओं को प्रेम समझते हैं, कहीं वे मोह तो नहीं? क्या हम सामने वाले को उसके जैसे होने देना चाहते हैं, या उसे बदलने की कोशिश कर रहे हैं?


प्रेम और मोह — दोनों ही जीवन में आते हैं। फर्क बस इतना है कि प्रेम हमें जोड़ता है आत्मा से, और मोह हमें जोड़ता है अहंकार से। प्रेम हमें शांति देता है, मोह हमें संघर्ष में डालता है। यदि हम अपने रिश्तों में प्रेम का भाव रखें, अपेक्षाओं को त्यागें और सामने वाले की स्वतंत्रता को स्वीकार करें, तो जीवन अधिक सुखद और संतुलित बन सकता है। तो अगली बार जब आप किसी से जुड़ाव महसूस करें, तो खुद से पूछिए — "यह प्रेम है या मोह?" उत्तर जानकर आपका जीवन बदल सकता है।


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