यह सवाल न केवल दार्शनिक है, बल्कि हर सोचने वाले व्यक्ति के मन में कभी न कभी उठता है। क्या हमारे जीवन में घटित अच्छे या बुरे कार्य हमारे अपने निर्णयों का परिणाम हैं, या ये सब प्रकृति, भाग्य या किसी अदृश्य शक्ति द्वारा निर्धारित होते हैं? इस प्रश्न का उत्तर सरल नहीं है, लेकिन इसे विभिन्न दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है।
भारतीय दर्शन, विशेषकर वेदांत और गीता, इस बात को मानते हैं कि मनुष्य अपने कर्मों का कर्ता है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं –
"उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्।"
इसका अर्थ है कि मनुष्य स्वयं अपने उत्थान और पतन का कारण है। इस विचार के अनुसार, हर शुभ या अशुभ कार्य का बीज मनुष्य के विचारों, निर्णयों और कर्मों में निहित होता है। यदि हम किसी को धोखा देते हैं या मदद करते हैं, तो यह हमारी इच्छाशक्ति और निर्णय का परिणाम होता है, न कि प्रकृति का।
कुछ दार्शनिक यह मानते हैं कि मनुष्य केवल एक माध्यम है, और असली कर्ता प्रकृति या ब्रह्मांड की शक्तियाँ हैं। प्रकृति (या ईश्वर) ही हर जीव के जीवन में होने वाली घटनाओं का निर्धारण करती है। ज्योतिष शास्त्र भी इसी विचार को बल देता है। इसके अनुसार, ग्रहों की स्थिति, जन्म कुंडली और कालचक्र के अनुसार मनुष्य के जीवन में घटनाएँ घटती हैं। ऐसे में शुभ-अशुभ कार्यों के लिए मनुष्य जिम्मेदार नहीं, बल्कि प्रकृति ही कर्ता होती है।
आधुनिक दर्शन और मनोविज्ञान का दृष्टिकोण यह है कि मनुष्य के निर्णय उसकी परिस्थितियों, मनोस्थिति, परिवेश और जैविक प्रवृत्तियों का सम्मिलित परिणाम होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई व्यक्ति गुस्से में आकर किसी को नुकसान पहुंचाता है, तो वह उसका निर्णय भी हो सकता है और साथ ही उसकी मानसिक अवस्था का प्रभाव भी। इस प्रकार, मनुष्य पूर्णतः स्वतंत्र नहीं है, लेकिन पूरी तरह से बाध्य भी नहीं है। यह एक संयोजन है — जहां कुछ हद तक प्रकृति उसे प्रभावित करती है, और कुछ हद तक वह स्वयं निर्णय लेता है।
इस जटिल प्रश्न का उत्तर शायद किसी एक दृष्टिकोण से नहीं दिया जा सकता।
यदि आप धार्मिक दृष्टिकोण से देखें, तो कर्म ही प्रधान है।
यदि आप वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें, तो प्रकृति और परिस्थितियाँ ही निर्णयों को प्रभावित करती हैं।
और यदि आप आध्यात्मिक दृष्टि से देखें, तो यह सब कुछ एक दिव्य योजना का हिस्सा है।
सच्चाई शायद इन सबके बीच में है — मनुष्य के पास स्वतंत्र इच्छा होती है, लेकिन वह पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं होता। प्रकृति उसे दिशा देती है, लेकिन अंतिम निर्णय उसके अपने होते हैं। यही जीवन की जटिलता और सुंदरता है।