बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई हैं। भाजपा और जदयू समेत सभी राजनीतिक दल चुनाव की तैयारियों में जुटे हुए हैं। इस बीच, इस बार बिहार में कांग्रेस एक अलग अवतार में नजर आ रही है। कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी आज बिहार के दौरे पर हैं। प्रदेश अध्यक्ष बदलने से लेकर रोजगार यात्रा तक, कांग्रेस ने अब तक बिहार में कई बड़े कार्यक्रम आयोजित किए हैं और फैसले लिए हैं। कांग्रेस हिंदी भाषी राज्यों में खुद को भाजपा के विकल्प के रूप में पेश करने में जुटी है। इसके लिए वह किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। कांग्रेस 1990 से बिहार में सत्ता से बाहर है, जिसका मतलब है कि वह अपना मुख्यमंत्री नहीं चुन पाई है।
ऐसे में वह बिहार में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने में जुटे हैं। इसी क्रम में राहुल गांधी आज बिहार के दौरे पर हैं। इस दौरान वे कई कार्यक्रमों में हिस्सा लेंगे। पिछले पांच महीनों में राहुल गांधी का यह चौथा दौरा है। इससे पहले महागठबंधन की बैठक हुई। बैठक में दोनों पक्षों ने एक कार्यान्वयन समिति गठित करने का निर्णय लिया। राहुल गांधी का यह दौरा कई मायनों में महत्वपूर्ण होने जा रहा है। ऐसे में आइए जानते हैं कि उनके इस दौरे के राजनीतिक मायने क्या हैं?
राहुल गांधी का सामाजिक न्याय पर जोर
राहुल गांधी पटना में सामाजिक न्याय कार्यकर्ताओं से मुलाकात करेंगे। इस दौरान वे सामाजिक न्याय कार्यकर्ताओं के साथ फिल्म फुले देखेंगे। यह फिल्म समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है। फुले द्वारा सामाजिक न्याय कार्यकर्ताओं के साथ फिल्म देखना एक राजनीतिक संदेश भी माना जा रहा है। इस बार पार्टी का फोकस अति पिछड़ा और दलित मतदाताओं पर है, जिन्हें भाजपा, लोजपा और हम का कोर वोटर माना जाता है। कांग्रेस इन मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने का प्रयास कर रही है।
बिहार में 16 फीसदी महादलित वोटर
राहुल गांधी के साथ कई अन्य कांग्रेस नेता भी बिहार का दौरा कर रहे हैं। राहुल गांधी के अलावा ये सभी नेता विभिन्न जिलों में संवाद करते नजर आएंगे। केवल समय ही बताएगा कि राहुल गांधी की सामाजिक न्याय की रणनीति कितनी प्रभावी होगी। हालांकि, बिहार में 16 फीसदी महादलित मतदाता हैं। इसमें 6 प्रतिशत पासवान मतदाता भी शामिल हैं। पासवान मतदाता लोजपा को वोट देते हैं, जबकि शेष 10 प्रतिशत मतदाता भाजपा और भाकपा(माले) को वोट देते हैं। भाजपा से सीधे मुकाबले के लिए कांग्रेस ने भाजपा समर्थक जातियों से संपर्क बढ़ाने की रणनीति बनाई है। ऐसे में कांग्रेस की यह रणनीति भाजपा को झटका दे सकती है क्योंकि पार्टी धर्म के साथ जातिगत समीकरणों को संतुलित करने में जुटी है।
बिहार में जातिगत राजनीति हावी
भारत में उत्तर प्रदेश और बिहार जातिगत राजनीति के लिए जाने जाते हैं। इन राज्यों में चुनाव जाति के आधार पर लड़े और जीते जाते हैं, विकास, रोजगार, शिक्षा जैसे मुद्दों पर नहीं। जातिवाद के कारण भाजपा राज्य में अपनी जड़ें नहीं जमा सकी। ऐसे में इस बार पार्टी फिर राष्ट्रवाद को मुद्दा बना रही है। बिहार में दलित, पिछड़े, अति पिछड़े और अल्पसंख्यक मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं। बिहार में मतदान पैटर्न से संबंधित एक समस्या है। आमतौर पर देखा जाता है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में मतदान का तरीका एक जैसा रहता है, लेकिन बिहार में लोग अलग-अलग तरीके से वोट करते हैं।
कांग्रेस दोहरी मुसीबत में है।
बिहार में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी समस्या महागठबंधन में भागीदार बनना है। पार्टी अकेले चुनाव लड़ने को लेकर असमंजस में है। एक तरफ वह अपने पैरों पर खड़ा होना चाहती है, वहीं दूसरी तरफ गठबंधन में रहकर सत्ता में बने रहना चाहती है। यह मुद्दा इसलिए भी जोर पकड़ रहा है क्योंकि कुछ दिन पहले ही पार्टी ने सभी 243 सीटों के लिए उम्मीदवारों के प्रोफाइल मांगे हैं। ऐसे में राहुल गांधी के बिहार दौरे का कांग्रेस पर क्या असर होगा, यह तो वक्त ही बताएगा।