अशोकनगर में डीएपी खाद की कमी से किसानों में हंगामा: मध्य प्रदेश के अशोकनगर में डीएपी खाद की कमी ने किसानों के बीच हंगामा खड़ा कर दिया। 16 अप्रैल 2025 को खाद गोदाम पर 700 मैट्रिक टन डीएपी खाद की रैक पहुंची, लेकिन वितरण में अनियमितता के कारण किसानों का गुस्सा भड़क उठा।
पहले दिन 6 से 10 बोरी खाद प्रति टोकन दी गई, लेकिन अगले दिन मात्र 3 बोरी मिलने से किसान नाराज हो गए। इस खाद संकट को सुलझाने के लिए SDM बृजबिहारी श्रीवास्तव ने अनोखा तरीका अपनाया—एक गुस्साए किसान को गले लगाकर और घर पर खाद पहुंचाने का वादा करके। यह घटना किसानों और प्रशासन के बीच संवाद की मिसाल बन गई। आइए, इस मामले की पूरी कहानी जानते हैं।
16 अप्रैल 2025 को जब डीएपी खाद की रैक पहुंची, तो खाद गोदाम पर किसानों की लंबी कतारें लग गईं। गर्मी के कारण अगले दो महीनों तक बुआई नहीं होनी थी, फिर भी सीजन से ज्यादा भीड़ जमा हो गई। प्रशासन ने 1,000 किसानों को टोकन बांटे, लेकिन केवल आधे किसानों को ही खाद मिल सकी। बाकियों को अगले दिन आने को कहा गया।
पहले दिन 6 से 10 बोरी खाद प्रति टोकन दी गई, लेकिन अगले दिन यह मात्रा घटकर 3 बोरी हो गई। इस अनियमितता ने किसानों का गुस्सा भड़का दिया, और उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया। किसानों का आरोप था कि वितरण में भेदभाव किया जा रहा है।
किसानों के हंगामे की खबर मिलते ही पुलिस और राजस्व अमला मौके पर पहुंचा, जिसमें SDM बृजबिहारी श्रीवास्तव भी शामिल थे। हंगामे को देखते हुए SDM ने स्थिति को संभालने के लिए संवाद का रास्ता चुना। एक गुस्साए किसान को शांत करने के लिए उन्होंने उसे गले लगाया और कहा, “तू मुझे अपने घर का एड्रेस दे दे, मैं तेरे घर खाद लेकर आऊंगा। मेरा फोन नंबर ले ले।”
इस अनोखी पहल ने न केवल उस किसान को शांत किया, बल्कि अन्य किसानों के बीच भी सकारात्मक माहौल बनाया। यह घटना प्रशासन की संवेदनशीलता और जमीनी स्तर पर समस्याओं को सुलझाने की कोशिश को दर्शाती है।
अशोकनगर खाद संकट की जड़ में वितरण की अनियमितता थी। किसानों का कहना था कि पहले दिन जिन्हें खाद मिली, उन्हें 6 बोरी प्रति टोकन दी गई, लेकिन अगले दिन यह मात्रा घटकर 3 बोरी हो गई। इस भेदभाव ने किसानों के बीच असंतोष पैदा किया।
कई किसानों ने आरोप लगाया कि टोकन सिस्टम के बावजूद खाद का वितरण पारदर्शी नहीं था। कुछ ने यह भी शिकायत की कि गोदाम पर खाद की कमी के कारण उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। यह स्थिति न केवल किसानों की मेहनत पर चोट थी, बल्कि खेती की तैयारी पर भी सवाल उठा रही थी।
अशोकनगर खाद संकट ने प्रशासन के सामने कई चुनौतियाँ रखीं। खाद की मांग और आपूर्ति में संतुलन बनाना आसान नहीं था। 700 मैट्रिक टन खाद की रैक पर्याप्त नहीं थी, और टोकन सिस्टम के बावजूद वितरण में गड़बड़ी हुई।
प्रशासन को चाहिए कि वह भविष्य में ऐसी स्थिति से बचने के लिए बेहतर योजना बनाए। पारदर्शी वितरण, समय पर आपूर्ति, और किसानों के साथ नियमित संवाद इस तरह के हंगामे को रोक सकता है। SDM की पहल सराहनीय है, लेकिन यह अकेले पर्याप्त नहीं है।
किसान देश की रीढ़ हैं, और खाद की कमी उनकी मेहनत को प्रभावित करती है। अशोकनगर में डीएपी खाद की कमी ने किसानों को निराश किया, क्योंकि बिना पर्याप्त खाद के फसल की गुणवत्ता और पैदावार पर असर पड़ता है।
गर्मी के मौसम में भले ही बुआई में समय हो, लेकिन किसान पहले से तैयारी करना चाहते हैं। इस संकट ने न केवल उनकी योजना को प्रभावित किया, बल्कि प्रशासन पर उनके भरोसे को भी कम किया। किसानों का गुस्सा जायज है, और इसे केवल संवाद से ही नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई से हल करना होगा।
अशोकनगर खाद संकट हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि किसानों की समस्याओं को प्राथमिकता देना कितना जरूरी है। सरकार को चाहिए कि वह खाद की आपूर्ति और वितरण को और मजबूत करे।
साथ ही, समाज को भी किसानों की परेशानियों को समझना होगा और उनके हंगामे को गलत न ठहराना होगा। SDM की तरह संवेदनशीलता और सक्रियता हर प्रशासक में होनी चाहिए। यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि संवाद और सहानुभूति किसी भी संकट को कम कर सकती है।
अशोकनगर खाद संकट एक चेतावनी है कि खाद वितरण में पारदर्शिता और समयबद्धता जरूरी है। प्रशासन को चाहिए कि वह टोकन सिस्टम को और प्रभावी बनाए और खाद की आपूर्ति बढ़ाए। SDM बृजबिहारी श्रीवास्तव की पहल ने दिखाया कि छोटे-छोटे कदम भी बड़ा बदलाव ला सकते हैं।
उम्मीद है कि भविष्य में अशोकनगर में ऐसी घटनाएँ नहीं होंगी, और किसानों को उनकी जरूरत का खाद समय पर मिलेगा। यह संकट हमें यह भी सिखाता है कि किसानों और प्रशासन के बीच विश्वास बनाए रखना कितना जरूरी है।
अशोकनगर के किसानों ने अपने हक के लिए आवाज उठाई, और यह उनकी एकजुटता को दर्शाता है। इस संकट में SDM की अनोखी पहल ने साबित किया कि प्रशासन भी उनकी परेशानियों को समझता है।
किसानों को चाहिए कि वे संगठित रहें और अपनी समस्याओं को शांतिपूर्ण तरीके से प्रशासन तक पहुंचाएं। अशोकनगर खाद संकट हमें यह सिखाता है कि धैर्य और संवाद से हर समस्या का हल निकल सकता है।