पाकिस्तान का आतंकियों को संरक्षण देने का मामला किसी से छिपा नहीं है। हालांकि, पाकिस्तान इस तथ्य से हमेशा इनकार करता रहा है, जबकि भारत ने कई बार इसे उजागर किया है। हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों के जनाजे में पाकिस्तानी सेना के उच्च अधिकारी शामिल हुए थे। अबु सैफुल्लाह की मौत के बाद उसकी शोक सभा में भी यही दृश्य देखने को मिला। सैफुल्लाह, जो एक मोस्ट वॉन्टेड आतंकवादी था, के जनाजे को पाकिस्तानी झंडे में लपेटा गया। यह शोक सभा पाकिस्तान मरकज मुस्लिम लीग (PMML) द्वारा आयोजित की गई थी। रविवार (18 मई) को सिंध प्रांत के मतली क्षेत्र में लश्कर-ए-तैयबा के आतंकवादी रजाउल्लाह निजामनी उर्फ अबु सैफुल्लाह को अज्ञात हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस घटना के बाद पाकिस्तान में जो प्रतिक्रियाएं आईं, उन्होंने आतंकवादियों के साथ पाकिस्तान के संबंधों को फिर से उजागर कर दिया।
अबु सैफुल्लाह की शोक सभा का आयोजन लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद के बेटे ने किया था। इस सभा के लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे, जिसमें पुलिस और सेना शामिल थे। यह प्रेयर मीट पाकिस्तान मरकज मुस्लिम लीग (PMML) की सिंध यूनिट द्वारा आयोजित की गई थी। सभा में अबु सैफुल्लाह को आजादी के लिए लड़ने वाला योद्धा बताया गया। इसके अलावा, पाकिस्तानी सेना और उनके प्रमुख जनरल से फील्ड मार्शल बने आसिम मुनीर की प्रशंसा की गई। इस सभा का नाम 'मार्का-ए-हक' रखा गया, जिसने सेना और आतंकवादी संगठनों के बीच की निकटता को फिर से उजागर किया।
इस शोक सभा में एक आतंकवादी की मौत को शहादत के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान की राजनीतिक पार्टियां और सेना मिलकर आतंकवाद को बढ़ावा दे रही हैं। भारत द्वारा किए गए ऑपरेशन सिंदूर में मारे गए लश्कर के आतंकियों की नमाज-ए-जनाजा की अगुवाई करने वाला हाफिज अबदुर्र रऊफ भी PMML का कार्यकर्ता था। यह बात पाकिस्तान ने खुद स्वीकार की थी। यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तान में सेना और आतंकवादी संगठनों के गठजोड़ का पर्दाफाश हुआ है, लेकिन हर बार पाकिस्तान की सरकार और सेना खुद को निर्दोष साबित करने की कोशिश करती रही है।