राजस्थान पुलिस ने साइबर ठगी के नए हथकंडों को लेकर एडवाइजरी जारी की है। शुक्रवार (24 मई) को पुलिस ने नागरिकों को मोबाइल डिवाइस हैक होने और संवेदनशील जानकारी चुराने की नई भ्रामक तकनीकों के बारे में भी आगाह किया। डीजीपी (साइबर क्राइम) हेमंत प्रियदर्शी के निर्देश पर पुलिस मुख्यालय में साइबर कमांडो और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ लोगों में जागरूकता लाने और ऑनलाइन ठगी को रोकने के लिए सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। नागरिकों को बढ़ते खतरे के बारे में शिक्षित करने के लिए यह विस्तृत एडवाइजरी जारी की गई है।
स्टेग्नोग्राफ़ी तकनीक का होता है इस्तेमाल
पुलिस मुख्यालय में साइबर कमांडो महेश कुमार ने बताया कि हमले में अक्सर 'स्टेग्नोग्राफ़ी' नामक तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें किसी फोटो, वीडियो या ऑडियो फ़ाइल के भीतर गुप्त रूप से दुर्भावनापूर्ण कोड एम्बेड किया जाता है। फ़ाइल खुलने के बाद यह छिपा हुआ डेटा सक्रिय हो जाता है, जिससे हमलावर आपके डिवाइस से मैसेज और कॉल फॉरवर्ड कर सकता है। इसकी मदद से बैंक का ओटीपी चुराकर पैसे निकाल सकता है। हैकर पूरे फोन को अपने नियंत्रण में ले लेता है और फिर कुछ भी कर सकता है।
बैंकिंग साइट्स और सरकारी पोर्टल के क्लोन के बारे में जानें
उन्होंने बताया कि कई मामलों में साइबर अपराधी आकर्षक ऑफर, लॉटरी जीतने या सरकारी योजनाओं के लाभ के साथ फर्जी ईमेल या एसएमएस संदेश भेजते हैं। इन संदेशों में ऐसे लिंक होते हैं जो बैंकिंग साइट्स, सरकारी पोर्टल या ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के क्लोन जैसी फर्जी वेबसाइट पर ले जाते हैं। जैसे ही आप बैंक अकाउंट नंबर, पासवर्ड या ओटीपी जैसी निजी जानकारी डालते हैं, डेटा कैप्चर हो जाता है। इसके बाद यूजर साइबर फ्रॉड का शिकार हो जाता है।
इन साइबर हमलों से बचने के लिए क्या करें?
साइबर विशेषज्ञ किसी भी मैसेजिंग ऐप में मीडिया फ़ाइलों के ऑटो-डाउनलोड को बंद करने की सलाह देते हैं। साथ ही, अनजान या संदिग्ध संपर्कों द्वारा भेजे गए लिंक को खोलने, डाउनलोड करने या क्लिक करने की कोशिश न करें। इससे बचने के लिए डिवाइस के सॉफ़्टवेयर को नियमित रूप से अपडेट करना और एक विश्वसनीय एंटीवायरस ऐप इंस्टॉल करना भी बहुत ज़रूरी है। इसके अलावा, साइबर धोखाधड़ी की सूचना तुरंत अपने नज़दीकी पुलिस स्टेशन या साइबर क्राइम हेल्पलाइन (1930) पर देनी चाहिए।