वैज्ञानिक चेतन के पक्षधर डॉ जयंत विष्णु नार्लीकर
Navjivan Hindi May 25, 2025 02:42 PM

ऐस्ट्रोफिज़िक्स के महारथी, प्रतिष्ठित वैज्ञानिक और सामान्य जन के लिए वैज्ञानिक लेखों के प्रणेता डॉ जयंत विष्णु नार्लीकर की मृत्यु 87 वर्ष की आयु में 20 मई को पुणे में हो गई। उन्हें महज 26 वर्ष की आयु में वर्ष 1965 में पद्मभूषण और फिर वर्ष 2004 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था। वर्ष 1996 में उन्हें यूनेस्को द्वारा पोपुलर साइंस लेखन के लिए कलिंग पुरस्कार प्रदान किया गया था और उनकी आत्मकथा को मराठी भाषा में साहित्य का ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गए था । अपने वैज्ञानिक कार्यों के अतिरिक्त डॉ नार्लीकर का सबसे प्रभावी योगदान देश में वैज्ञानिक चेतना के प्रसार का प्रयास था।

कुछ वर्ष पहले डॉ जयंत विष्णु नार्लीकर ने एक लेख में नागरिकों में वैज्ञानिक प्रवृत्ति विकसित करने पर जोर दिया था, पर जब हम समाज में आपने आसपास देखते हैं तो स्पष्ट होता है कि हम भारतीयों को आधुनिक विज्ञानं पर आधारित उपकरणों के उपयोग में कोई समस्या नहीं हैं, जबकि उसके सिद्धांत को मानने से परहेज करते हैं। समस्या यह है कि एक बड़ी जनसंख्या  के साथ साथ प्रधानमंत्री मोदी समेत पूरी सत्ता और सत्ता समर्थकों का मत है कि वेदों के बाहर कोई विज्ञान नहीं है। अब तो इंजिनियरिंग, मेडिकल, विश्वविद्यालयों और विद्यालयों में भी वेदों, गीता और पुराणों के अध्ययन को अनिवार्य कर दिया गया है, या इसपर सहमति हो चुकी है।

कुछ वर्ष पहले तत्कालीन मानव संसाधन राज्य मंत्री सत्यपाल सिंह ने डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को पाठ्यक्रमों से निकालने की वकालत कर डाली। उनके अनुसार किसी प्राचीन भारतीय ग्रंथ में इसका उल्लेख नहीं है और किसी ने बंदर से मनुष्य बनते नहीं देखा। उनके इस बयान का मजाक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भी बनाया गया। आश्चर्य की बात है कि जिस उदाहरण को उन्होंने दिया, लगभग वैसा ही उदाहरण हनुमान का है, जो कपीश भी हैं और पवनसुत भी हैं। डॉ नार्लीकर ने आपने लेख में लिखा था कि डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत विकास के हरेक जवाब देने में सक्षम हो या न हो, पर आज की तारीख में विकास पर सबसे ज्यादा जवाब देने वाला सिद्धांत यही है और तथ्यों पर आधारित है।

यदि प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में होना और किसी के देखने से ही विज्ञान के किसी सिद्धांत का होना या ना होना निर्भर करता है तब तो मंत्री जी को डायनासोर सरीखे जानवरों का अस्तित्व भी पाठ्यक्रम से बाहर करा देना चाहिये। जब डायनासोर पृथ्वी पर थे तब मनुष्य पृथ्वी पर नहीं था, इसलिये किसी ने देखा नहीं होगा और इनका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी नहीं है।

सत्यपाल सिंह पहले भी विज्ञान के तथ्यों को झुठला चुके हैं। दिल्ली में इंजिनियरिंग के विद्यार्थियों के सामने वे बता चुके हैं कि हवाई जहाज का आविष्कार राईट बंधुओं से आठ साल पहले ही शिवाकर बालाजी तलपड़े नामक भारतीय ने किया था। जानकारी यहीं खत्म नहीं होती, सिंह साहब यह बताना भी नहीं भूलते कि रामायण में पहली बार हवाई जहाज का जिक्र किया गया है। एक सेवानिवृत्त पायलट और पायलट ट्रेनिंग केन्द्र में कार्यरत कैप्टन आनंद बोडस तो और भी आगे हैं, उनके अनुसार ॠषि भारद्वाज ने 7000 वर्ष पहले ही हवाई जहाज ही नहीं बल्कि राकेट और राडार भी बना लिया था। डॉ नार्लीकर के अनुसार यदि इतने पहले हवाई जहाज थे तो ये लोग इसका सिद्धांत क्यों नहीं बताते? आनंद साहब ने यह नहीं बताया कि 7000 साल पहले और कितने देशों में हवाई जहाज थे, यदि नहीं थे तो राडार क्यों बना था।

अब जरा रामायण के हवाई जहाज की बात करें। इसके आधारित चित्रों में यह एक प्लेटफार्म जैसा दीखता है, जिसपर सीता विलाप करते हुए खड़ी रहती हैं और रावण सिंहासन पर बैठा रहता है| इसके गति की कल्पना कीजिये जिसके उड़ते समय लोग खड़े रह सकते थे, वह ऊपर से बंद नहीं था और इतनी ऊंचाई पर उड़ान भरता था कि विलाप जमीन तक सुनाई दे सके। इसके आसपास गिद्ध भी उड़ान भरते थे, जैसा जटायु ने किया था। सीता उड़ान भरते अपने गहने भी नीचे गिरा रहीं थीं। यह विमान घने जंगल में भी उतर जाता था। जरा दिमाग लगाकर सोचिये, क्या ऐसा विमान हो सकता है? पर, आधुनिक विज्ञान ने जब हवाई जहाज दे दिया, तब मोदी जी या फिर सत्यपाल सिंह की कल्पना में रामायण काल का विमान आ जाता है।

प्रधानमंत्री भी ऐसी बातें खूब करते हैं। 2014 में मुंबई के एक अस्पताल के किसी कार्यक्रम में उन्होंने गणेश को कास्मेटिक सर्जरी का जन्मदाता बताया था और कर्ण को जेनेटिक इंजिनियरिंग की देन। प्रधान मंत्री जी को भी अपनी कल्पना पर आधारित बयान के लिए आधुनिक विज्ञान का शुक्रगुजार होना चाहिए| वैसे आधुनिक विज्ञान भी आदमी के शरीर पर हाथी के सिर को लगाने की कल्पना भी नहीं करता होगा। हाँ, अवैध तरीके से जन्म देने को जेनेटिक इंजीनियरिंग का नाम देना हास्यास्पद जरूर है। प्रधानमंत्री जी तो नाले के ऊपर बर्नर लगा कर चाय भी बना लेते हैं और बादलों के बीच राडार को फेल कर देते हैं।

गुजरात के भूतपूर्व मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने कहा था, राम ने पहला पुल बनाया था। रमेश पोखलियाल बताते हैं, कनड नामक योगी ने पहला परमाणु टेस्ट ईसापूर्व तीसरी शताब्दी में किया था। डॉ नार्लीकर ने उदहारण दिया कि तथाकथित ब्रह्मास्त्र को लोग परमाणु हथियार मानते हैं, यदि उस समय परमाणु हथियार बनाये गए तो चुम्बकीय शक्ति और विद्युत् का विस्तृत अध्ययन किया गया होगा, पर इसके कोई सबूत नहीं हैं। गाय सांस के साथ आक्सीजन छोड़ती है, यह बताने वाले नेताओं की भरमार है।

आन्ध्र यूनिवर्सिटी के उपकुलपति जी नागेश्वर राव ने फगवाड़ा में आयोजित 106वें साइंस कांग्रेस के एक अधिवेशन में बताया कि स्टेम सेल और टेस्ट ट्यूब बेबी का विज्ञान तो महाभारत काल से चला आ रहा है, और 100 कौरवों का जन्म इसी विधि से हुआ था। उन्होंने बच्चों के इस अधिवेशन में बताया कि किस तरह से अंडे को निषेचन के बाद मिटटी के बर्तनों में रखा गया और इनसे कौरव पैदा हुए| नागेश्वर राव ने आगे ज्ञान देते हुए कहा कि रावण के पास 24 प्रकार के वायुयान थे और श्रीलंका में आज भी वायुयान उतरने की हवाई पट्टी मौजूद है। राम गाइडेड मिसाइल का उपयोग करते थे और विष्णु के पास मल्टी-वारहेड्स थे।

एक दूसरे वक्ता और तथाकथित वैज्ञानिक, तमिलनाडु के डॉ के जे कृष्णन ने इसी कांग्रेस में महान वैज्ञानिकों आइजाक न्यूटन और अल्बर्ट आइंस्टीन के बारे में नयी जानकारी उजागर की कि इन लोगों को भौतिक विज्ञान की जरा भी जानकारी नहीं थी। इनसे बड़े वैज्ञानिक तो प्रधानमंत्री मोदी और विज्ञान मंत्री डॉ हर्षवर्धन हैं। कृष्णन तो इन दोनों के विज्ञान के प्रति समर्पण से इतने प्रभावित थे कि यह सुझाव भी दे डाला, गुरुत्वाकर्षण तरंगों को “नरेंद्र मोदी तरंग” और चंद्रशेखर वेंकट रमन के नाम पर रखे गए “रमन प्रभाव” को “हर्षवर्धन प्रभाव” का नाम देना चाहिए।

हरेक देश अपने प्राचीन ज्ञान का आदर करता है और उस ज्ञान के भण्डार को आधुनिक विज्ञान के साथ जोड़कर आगे बढता है। इतना तो सभी मानते है कि प्राचीन ज्ञान तत्कालीन आबादी और परिस्थितियों के लिए प्रेरक रहा होगा और आधुनिक विज्ञान आज की परिस्थितियों को सुगम बनाता है| वर्तमान में संभवतः भारत ही इकलौता देश होगा जहाँ सरकार आधुनिक विज्ञान और वैज्ञानिकों की उपेक्षा कर प्राचीन ग्रंथों में विज्ञान खोजने में लगी है। पर, यहाँ के पूरे सरकारी  तंत्र को यह पता ही नहीं है कि इसकी प्रेरणा भी उन्हें आधुनिक विज्ञान ही दे रहा है। कल्पना कीजिये, आधुनिक विज्ञान ने इंटरनेट नहीं दिया होता, हवाई जहाज नहीं होते, रॉकेट नहीं होते, परमाणु परीक्षण नहीं होते, राडार नहीं होते, प्लास्टिक सर्जेरी नहीं होती – तो फिर हमारे नेता और कुछ वैज्ञानिक किस चीज को आधार मान कर बयान देते?

मई 2017 में राजस्थान हाई कोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश ने एक ऐसा ज्ञान दिया जिसे सुनकर यह यकीन करना आसान हो जाता है कि अपने देश में लोगों को न्याय क्यों नहीं मिलता। न्यायाधीश महेश चन्द्र शर्मा के अनुसार मोर आजीवन ब्रह्मचारी रहता है और मोरनी तब गर्भ धारण करती है जब वह मोर के आंसू पीती है| गायों पर भी उनकी विशेष टिप्पणी थी। गायों में 33 करोड़ देवी देवता वास करते है और गौ-मूत्र सेवन बुढापे को भगाने का सबसे आसान तरीका है। गायें सांस छोड़तीं हैं तब भी ऑक्सीजन गैस उत्सर्जित होती है। न्यायाधीश शर्मा के अनुसार गायें इतने रोगों का इलाज करती हैं कि इन्हें मोबाइल क्लिनिक कहा जा सकता है।

त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने तो महाभारत काल में इन्टरनेट खोज लिया था। यही नहीं, उनके अनुसार उनके वक्तव्य का मजाक उड़ानेवाले पूरे त्रिपुरा का मजाक उड़ायेंगे। बिप्लब देब को यह मालूम होना चाहिए कि मुख्यमंत्री के बेवक़ूफ़ होने का मतलब यह नहीं है कि पूरी जनता बेवक़ूफ़ होगी। बिप्लब देब ने शायद सोचा ही नहीं होगा कि आज इंटरनेट है, इसीलिए वो यह बयान देने के काबिल हुए हैं। खैर, बिप्लब देब के अनुसार तो बत्तख के पानी में तैरने से पानी प्रदूषण मुक्त हो जाता है।

बीबीसी ने फगवाड़ा में आयोजित इंडियन साइंस कांग्रेस के बाद लिखा था कि इसके एजेंडा में पुरातनवादी और धार्मिक विज्ञान गहरी पैठ जमा चुका है। आधुनिक विज्ञान के बहुत लाभ हैं, पर इससे जिस तरह का अवैज्ञानिक लाभ हमारे राजनेता और कुछ वैज्ञानिक ले रहे हैं, उसकी शायद ही किसी ने कल्पना की हो। कुछ भी हो, पर इतना तो तय है कि अंतर्राष्ट्रीय मीडिया ऐसी खबरों को एक चुटकुले की तरह प्रकाशित करता है, भारत में विज्ञान किसी को तो हंसने का मौका दे रहा है, और यही भारतीय विज्ञान की एकमात्र उपलब्द्धि है। डॉ जयंत विष्णु नार्लीकर ने जिस वैज्ञानिक चेतना का उल्लेख किया था, वह तो हमारे समाज में कभी था ही नहीं।

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