नहाते वक्त पेशाब करने की आदत? जानिए ये हेल्थ के लिए कितनी खतरनाक साबित हो सकती है – जरूरी खबर
sabkuchgyan May 29, 2025 08:26 PM

नहाते वक्त पेशाब करने की आदत? जानिए ये हेल्थ के लिए कितनी खतरनाक साबित हो सकती है

कहीं नहाते हुए आप भी पेशाब करने की आदत रखते हैं? अगर हां, तो ये खबर आपके लिए बेहद जरूरी है। यह आदत देखने में भले ही आम लगे, लेकिन इसके पीछे छिपे खतरे बहुत गंभीर हो सकते हैं। कई बार लोग सुबह-सुबह बाथरूम में समय बचाने या आलस की वजह से नहाते वक्त ही पेशाब कर लेते हैं। हालांकि, डॉक्टर्स और हेल्थ एक्सपर्ट्स की मानें तो यह आदत लंबे समय में न केवल शरीर की आंतरिक कार्यप्रणाली पर असर डाल सकती है, बल्कि आपके मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव डालती है।

पेशाब करने की प्राकृतिक आदतें कैसे बनती हैं?

शरीर में मूत्र त्याग एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, जो मस्तिष्क और ब्लैडर के बीच तालमेल से नियंत्रित होती है। जब मूत्राशय भर जाता है, तो यह मस्तिष्क को संकेत भेजता है, जिससे व्यक्ति को पेशाब करने की जरूरत महसूस होती है। लेकिन जब कोई व्यक्ति बार-बार नहाते समय ही पेशाब करने लगता है, तो मस्तिष्क एक तरह की कंडीशनिंग विकसित कर लेता है। इससे व्यक्ति के दिमाग में यह धारणा बनने लगती है कि जैसे ही वह पानी में आता है या नहाने लगता है, पेशाब करने की जरूरत महसूस होनी चाहिए।

मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है यह आदत

न्यूरोलॉजिस्ट्स के अनुसार, यह आदत एक पावलोवियन रिफ्लेक्स बन जाती है, जहां मस्तिष्क ‘पानी के संपर्क’ को ‘पेशाब की जरूरत’ से जोड़ देता है। यह विशेष रूप से तब खतरनाक हो सकता है जब यह कंडीशनिंग इतनी गहरी हो जाए कि व्यक्ति को नहाने के अलावा तैरने, बर्फ में चलने, या बारिश में भीगने पर भी पेशाब करने की इच्छा होने लगे। इससे सामाजिक शर्मिंदगी के साथ-साथ मानसिक दबाव भी उत्पन्न हो सकता है।

महिलाएं और पुरुषों में इसके प्रभाव अलग

गायनोकोलॉजिस्ट्स का कहना है कि महिलाओं में यह आदत पेल्विक फर्श की मांसपेशियां को कमजोर बना सकती है। महिलाओं के शरीर की संरचना में पेशाब नियंत्रित करने वाली मांसपेशियां पुरुषों की तुलना में अधिक संवेदनशील होती हैं। नहाते वक्त बार-बार पेशाब करने से इन मांसपेशियों पर दबाव बनता है, जिससे उम्र बढ़ने के साथ-साथ Urinary Incontinence यानी पेशाब पर नियंत्रण खोने की समस्या पैदा हो सकती है।

वहीं पुरुषों में यह आदत Prostate Health को भी प्रभावित कर सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह आदत लंबे समय तक जारी रहती है, तो इससे ब्लैडर और प्रोस्टेट की कार्यप्रणाली असंतुलित हो सकती है।

संक्रमण का भी रहता है खतरा

अगर आप अक्सर बाथरूम में बिना फ्लश किए या साफ-सफाई का ध्यान न रखते हुए नहाते समय पेशाब करते हैं, तो इससे यूटीआई (Urinary Tract Infection) का खतरा भी बढ़ सकता है। नहाने की जगह यदि पर्याप्त साफ न हो, तो बैक्टीरिया आसानी से फैल सकते हैं। नमी और गर्म वातावरण बैक्टीरियल ग्रोथ को बढ़ावा देता है, जिससे मूत्रमार्ग संक्रमित हो सकता है।

शरीर की पोजीशन भी है अहम

जब आप खड़े होकर नहाते वक्त पेशाब करते हैं, तो ब्लैडर पूरी तरह खाली नहीं हो पाता। इसके विपरीत बैठकर पेशाब करने से ब्लैडर ज्यादा अच्छी तरह से खाली होता है। लगातार खड़े होकर पेशाब करने से मूत्राशय की दीवारों पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे भविष्य में पेशाब के समय जलन, बार-बार पेशाब आना या अधूरी पेशाब की शिकायत हो सकती है।

आदत छोड़ना क्यों है जरूरी?

यदि यह आदत एक बार बन जाती है, तो इससे छुटकारा पाना आसान नहीं होता। कई बार लोग बिना नहाए पेशाब रोकने की कोशिश करते हैं, जिससे शरीर में विषैले पदार्थ इकट्ठा हो सकते हैं। यह किडनी की कार्यप्रणाली पर भी बुरा असर डाल सकता है। इसलिए इस आदत को शुरुआत में ही पहचानकर रोकना बेहतर होता है। हेल्थ एक्सपर्ट्स सलाह देते हैं कि पेशाब करने के लिए हमेशा तय समय और जगह का पालन करें, ताकि शरीर की प्राकृतिक प्रणाली सही ढंग से काम करती रहे।

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

मनोचिकित्सक और यूरोलॉजिस्ट इस आदत को ‘वातानुकूलित पेशाब प्रतिक्रिया ‘ कहते हैं, जो लंबे समय में स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, नहाते समय पेशाब करने की आदत से मस्तिष्क और मूत्राशय के बीच असामान्य तालमेल बन सकता है, जो कि शरीर की जैविक घड़ी के लिए सही नहीं है। साथ ही यह आदत बार-बार पेशाब की समस्या, सामाजिक असहजता और यहां तक कि डिप्रेशन का कारण भी बन सकती है।

समाधान क्या है?

इस आदत से छुटकारा पाने के लिए सबसे पहला कदम है — जागरूकता। व्यक्ति को खुद पर नजर रखनी चाहिए कि क्या वह नियमित रूप से नहाते समय पेशाब करता है। इसके बाद एक रूटीन बनाएं, जहां आप नहाने से पहले टॉयलेट का उपयोग करें। साथ ही पेल्विक मंजिल व्यायाम और सही हाइड्रेशन से मूत्र प्रणाली को संतुलित रखा जा सकता है। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर या काउंसलर की मदद लेने में भी हिचकिचाना नहीं चाहिए।

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