हरियाणा का नाम सुनते ही दिमाग में एक मजबूत, अनुशासित और जुझारू समाज की तस्वीर बनती है, और उस तस्वीर को और गहराई से उकेरता है कैथल जिले का एक छोटा-सा गांव — गुलियाणा। यह गांव कैथल जिला मुख्यालय से करीब 28 किलोमीटर दूर स्थित है, लेकिन इसका नाम आज देशभर में जाना जाता है, वजह है — यहां के युवाओं का सरकारी नौकरी और विशेषकर भारतीय सेना के प्रति समर्पण।
गांव जहां सरकारी नौकरी है परंपरागुलियाणा गांव को आज लोग “सरकारी नौकरी वाला गांव” भी कहने लगे हैं। यहां लगभग हर घर में एक न एक सदस्य सरकारी सेवा में कार्यरत है। बीते 6 वर्षों में गांव के 250 से अधिक युवाओं ने सेना, पुलिस, वायुसेना, नौसेना, बीएसएफ, दिल्ली और हरियाणा पुलिस जैसी सरकारी सेवाओं में चयन प्राप्त किया है।
गांव में कुल लगभग 1200 परिवार हैं, जिनमें से 700 से अधिक परिवारों में कोई न कोई सदस्य सरकारी नौकरी में है। यह अपने आप में एक मिसाल है, जो आज के युवाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी है।
ड्रिंक और डीजे पर है सख्त पाबंदीगुलियाणा की यह सफलता केवल किस्मत का खेल नहीं, बल्कि गांव द्वारा अपनाई गई अनुशासित जीवनशैली और कठोर सामाजिक नियमों का नतीजा है। यहां डीजे बजाने पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। गांव में शराब की बिक्री और सेवन पर भी पाबंदी है।
अगर कोई व्यक्ति दो बोतल से ज्यादा शराब लाता है, तो उसे ₹11,000 का जुर्माना देना पड़ता है। अब तक कई लोग इस जुर्माने का भुगतान कर चुके हैं। यह कोई सरकारी आदेश नहीं है, बल्कि गांव की पंचायत और लोगों द्वारा मिलकर बनाए गए सामाजिक नियम हैं, जिन्हें सभी स्वेच्छा से मानते हैं।
गांव के बुजुर्गों का मानना है कि युवाओं के भविष्य को बेहतर बनाने के लिए गांव का माहौल शुद्ध और अनुशासित होना चाहिए। इसी सोच के तहत इन नियमों को लागू किया गया।
सेना में भर्ती की तैयारी है मिशनगांव में युवाओं के लिए फिजिकल ट्रेनिंग की विशेष व्यवस्था है। यहां की खाली पड़ी जमीनों को ट्रेंनिंग ग्राउंड में बदला गया है। जहां 24 घंटे, हर मौसम में, 300 से अधिक युवा प्रतिदिन फिजिकल ट्रेनिंग लेते हैं। यह ट्रेनिंग कोई प्रोफेशनल कोच नहीं बल्कि गांव के ही वे युवा देते हैं जो पहले ही सेना में भर्ती हो चुके हैं।
गुलियाणा का यह ट्रेनिंग सिस्टम इतना असरदार है कि कोई भी सेना या पुलिस भर्ती आती है, तो उसमें गांव के कई युवाओं का चयन निश्चित होता है। यहां सुबह-सुबह खेतों में दौड़ती युवाओं की टोलियां इस गांव की एक आम तस्वीर बन चुकी हैं।
पढ़ाई में भी पीछे नहींगुलियाणा सिर्फ फिजिकल ट्रेनिंग पर ही नहीं, बल्कि शैक्षणिक तैयारी पर भी उतना ही जोर देता है। गांव में युवा क्लब और 'जयहिंद क्लब' बनाए गए हैं, जहां युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करवाई जाती है। कोचिंग, गाइडेंस और किताबों की व्यवस्था इन क्लबों द्वारा की जाती है। इस व्यवस्था के चलते यहां के युवा SSC, रेलवे, पुलिस, बैंकिंग और अन्य सरकारी भर्तियों में भी सफल हो रहे हैं।
गांव की एकजुटता है असली ताकतगुलियाणा की असली ताकत है गांववासियों की एकजुटता और सामूहिक सोच। यहां के लोग व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर गांव के बच्चों के भविष्य के लिए सोचते हैं। शादी-ब्याह में भी सादगी को प्राथमिकता दी जाती है, ताकि फिजूलखर्ची न हो और संसाधनों का सही उपयोग हो सके।
गांव का हर परिवार दूसरे परिवार के बच्चों की सफलता को अपनी सफलता मानता है। यही वजह है कि यहां स्पर्धा नहीं, सहयोग की भावना देखने को मिलती है।
निष्कर्ष: एक अनुशासित गांव, एक आदर्श उदाहरणगुलियाणा गांव भारत के उन कुछ विशेष गांवों में से एक है जो यह साबित करता है कि अगर समाज मिलकर निर्णय ले तो बदलाव मुमकिन है। यहां के युवा सिर्फ नौकरी नहीं पा रहे, बल्कि देश की सेवा में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। अनुशासन, मेहनत, सामूहिक सोच और सकारात्मक माहौल — यही गुलियाणा की पहचान है।
आज जब देशभर में बेरोजगारी एक बड़ी समस्या बनी हुई है, गुलियाणा जैसे गांव हमें एक नई दिशा दिखाते हैं — कि यदि सही सोच, मेहनत और सामूहिक प्रयास हो, तो हर घर से देशभक्त निकल सकता है।