महाभारत की कहानी केवल एक युद्ध की नहीं है, बल्कि इसमें शामिल हर पात्र की गहराई, उनके कार्य और निर्णयों का गहरा अर्थ है। इनमें से एक महत्वपूर्ण पात्र था शकुनि, जिसकी चतुराई और चालाकियों ने कुरुक्षेत्र के युद्ध को प्रभावित किया। शकुनि के जादुई पासों ने न केवल पांडवों को पराजित किया, बल्कि द्रौपदी चीरहरण जैसी घटनाओं को भी जन्म दिया। लेकिन युद्ध के बाद एक सवाल उठता है – शकुनि के जादुई पासों का क्या हुआ? आइए इस रहस्य को समझते हैं।
शकुनि, गांधार के राजा सुबल का पुत्र था। उसकी बहन गांधारी का विवाह अंधे राजा धृतराष्ट्र से हुआ, जिससे वह बहुत नाराज हुआ। अपने परिवार के साथ हुए अन्याय का बदला लेने के लिए उसने कुरु वंश के विनाश की प्रतिज्ञा की। राजा सुबल ने अपनी मृत्यु से पहले उसे कहा कि उसकी हड्डियों से पासे बनाकर हमेशा अपने पास रखे। उनका मानना था कि ये पासे उसकी आत्मा के मार्गदर्शन से भरे होंगे। शकुनि ने ऐसा किया और ये पासे उसके जीवन का सबसे बड़ा हथियार बन गए।
इन हड्डियों से बने पासों की खासियत थी कि वे सिर्फ शकुनि के आदेशों पर चलते थे। जब पांडवों ने अपने हिस्से के राज्य की मांग की, तो शकुनि ने उन्हें चौसर के खेल में फंसाने की योजना बनाई। दुर्योधन को शक था, लेकिन शकुनि ने उसे विश्वास दिलाया कि वह हर बार जीत दिला सकता है। इस खेल में शकुनि ने चालाकी से पांडवों को एक-एक कर अपनी संपत्ति, राज्य, और अंत में द्रौपदी तक को हारने पर मजबूर कर दिया। यही घटना युद्ध की नींव बनी।
महाभारत युद्ध में शकुनि ने दुर्योधन का साथ दिया और कई योजनाएँ बनाई, लेकिन अंततः उसे अपने धोखे से भरे जीवन का परिणाम भुगतना पड़ा। युद्ध के 18वें दिन सहदेव ने शकुनि का वध कर दिया। साथ ही, उसके तीनों पुत्र भी युद्ध में मारे गए। शकुनि की मृत्यु के बाद दुर्योधन भाग निकला और पांडवों ने विजय प्राप्त की। लेकिन शकुनि के पासों का रहस्य वहीं रह गया।
श्रीकृष्ण जानते थे कि ये पासे कितना बड़ा आध्यात्मिक और सामाजिक खतरा बन सकते हैं। उन्होंने पांडवों से कहा कि इन पासों को नष्ट कर दिया जाए। भीम यह कार्य करना चाहते थे, लेकिन अर्जुन ने यह जिम्मेदारी ली। उन्होंने जल्दबाजी में बिना श्रीकृष्ण की बात पूरी सुने पासों को उठाया और नदी में फेंक दिया। जब अर्जुन ने लौटकर श्रीकृष्ण को बताया, तो श्रीकृष्ण बोले – “हे पार्थ! तुमने बहुत बड़ी भूल की है। ये पासे केवल जल में फेंककर नष्ट नहीं होते। अगर ये किसी गलत हाथ लग गए, तो संसार में फिर से पतन शुरू हो जाएगा।”
कहा जाता है कि अर्जुन द्वारा फेंके गए पासे नदी में बहते हुए किसी सामान्य मानव के हाथ लग गए। वहीं से कलियुग में जुए और छल-कपट का खेल फिर से शुरू हुआ। आज जो भी जुए, धोखाधड़ी और लालच के रूप देखने को मिलते हैं, वे कहीं न कहीं शकुनि के पासों का प्रभाव हैं। महाभारत केवल धर्म और अधर्म की लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह चेतावनी भी थी कि यदि हम समय रहते बुराई के बीज को नष्ट न करें, तो वह कलियुग तक समाज को ग्रसित कर सकता है। यह कथा आज के युग में धोखाधड़ी और लालच की प्रवृत्तियों पर एक गहरा संकेत भी है – कि शकुनि के पासे भले ही नदी में बहा दिए गए हों, उनका असर आज भी हमारे समाज में जीवित है।