भारत की बड़ी कंपनियों का नियंत्रण किसके हाथ में? NSE की रिपोर्ट ने दिखाया बड़ा बदलाव!
et June 01, 2025 12:42 AM
नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने रिपोर्ट में बताया है कि भारत की बड़ी कंपनियों (जो NSE में लिस्टेड हैं) में सबसे ज्यादा हिस्सा (करीब 32.5%) अभी भी उनके मालिकों यानी प्रमोटर्स के पास है. यानी कह सकते हैं कि 'बिग बॉस' तो वही हैं लेकिन अब तस्वीर धीरे-धीरे बदल रही है. अब सिर्फ बड़े बिजनेस घराने ही नहीं, बल्कि म्यूचुअल फंड्स और आम लोग भी इन कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ा रहे हैं.



मतलब जो लोग SIP या शेयर मार्केट में थोड़ा-थोड़ा पैसा लगाते हैं, वो भी अब इन कंपनियों के छोटे-छोटे मालिक बन रहे हैं. पहले लगता था कि कंपनियों के मालिक बस अमीर लोग होते हैं लेकिन अब आप, मैं और हमारे जैसे लाखों लोग भी इस लिस्ट में शामिल हो रहे हैं. यानी अब भारत की कंपनियों पर कंट्रोल सिर्फ बड़े लोगों का नहीं रहा, आम निवेशक भी अपनी पकड़ मजबूत कर रहे. NSE ने यह रिपोर्ट मार्च 2025 के डेटा के अनुसार जारी किया है.

प्रमोटर की हिस्सेदारी अब 50.1% रह गई

यह तीसरी बार है जब प्रमोटर की हिस्सेदारी कम हुई है, जो 50.1% पर आ गई है. इसमें निजी भारतीय प्रमोटर का हिस्सा 32.5% और सरकार का 9.9% हिस्सा शामिल है. इसका मतलब है कि कंपनियों में प्रमोटर का पूरा नियंत्रण धीरे-धीरे कम हो रहा है.

डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशन की बढ़ी ताकत

घरेलू म्यूचुअल फंड्स की हिस्सेदारी अब 10.4% हो गई है, क्योंकि लोगों ने लगातार SIP के जरिए निवेश करना जारी रखा. इसमें 8.4% हिस्सा एक्टिव फंड्स का और 2% हिस्सा पैसिव फंड्स का है. इसके अलावा, बीमा कंपनियां, बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान मिलकर 5.6% हिस्सेदारी रखते हैं. इसी वजह से डोमेस्टिक इंस्टीट्यूशन की कुल हिस्सेदारी पहली बार 2003 के बाद विदेशी निवेशकों से ज्यादा हो गई है.

विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी स्टेबल

फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (FPIs) ने अपनी हिस्सेदारी थोड़ी बढ़ाकर 17.5% कर ली है, जो दिसंबर 2024 में 13 साल के निचले स्तर से सुधार है. वहीं, विदेशी प्रमोटर अपनी 8.1% हिस्सेदारी बनाए हुए हैं.

रिटेल निवेशकों की बढ़ी हिस्सेदारी

रिटेल निवेशकों की सीधे हिस्सेदारी 9.5% तक पहुंच गई है, जबकि म्यूचुअल फंड की हिस्सेदारी सहित उनका कुल हिस्सा अब रिकॉर्ड 18.2% हो गया है. यह दिखाता है कि भारतीय परिवारों की शेयर बाजार में दिलचस्पी बढ़ रही है. पिछले पांच सालों में शेयरों से परिवारों की संपत्ति में करीब 46 लाख करोड़ रुपए की बढ़ोतरी हुई है.

सेक्टोरल और मार्केट कैप पसंद

विदेशी निवेशक अभी भी बैंक और फाइनेंस सेक्टर में भरोसा दिखा रहे हैं, लेकिन वे खाने-पीने की चीजें और कच्चे माल वाले सेक्टर में थोड़ा सावधान हैं. वहीं, घरेलू म्यूचुअल फंड्स ने बैंक और रोजमर्रा की जरूरतों की चीजों में अपनी हिस्सेदारी कम की है, लेकिन उन सेक्टरों में निवेश बढ़ा रहे हैं जो लोग मनमर्जी के लिए खरीदते हैं, जैसे फैशन या मनोरंजन. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि बड़ी और पॉपुलर कंपनियों के शेयरों में इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर्स ज्यादा निवेश कर रहे हैं.



हालांकि निजी भारतीय प्रमोटर अभी भी सबसे ज्यादा शेयर रखते हैं, लेकिन घरेलू म्यूचुअल फंड और आम निवेशकों की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ रही है, जिससे कंपनियों के मालिकाना हक में ज्यादा लोग शामिल हो रहे हैं और यह पहले से ज्यादा डायवर्सिफाइड रहा है.

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