डूबा तो लाइबेरियाई जहाज, पर संकट में हम: कंटेनर में भरे रासायनिक पदार्थ बन सकते हैं तबाही का कारण!
Navjivan Hindi June 01, 2025 12:42 AM

लाइबेरियाई कंटेनर जहाज केरल के अलपुजा तट पर थोतापल्ली से कोई 14.6 समुद्री मील दूर समुद्र में डूबने के बाद सारे क्षेत्र में गंभीर पर्यावरणीय संकट खड़ा हो गया है। यह शनिवार 24 मई को एक तरफ झुकना शुरू हुआ और रविवार 25 मई की सुबह लगभग 07ः50 बजे पूरी तरह से डूब गया।  भारतीय तटरक्षक दल ने तो तत्परता से जहाज पर सवार सभी लोगों को सुरक्षित बचा लिया लेकिन समुद्र कैसे बचे, इसके लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। जहाज में भरा तेल और भट्टी में जलाने के काम आने वाला तेल तो सागर के जैविक संसार के लिए खतरनाक है ही, उसमें लदे कंटेनर में भरे रासायनिक पदार्थ लंबे समय तक तबाही का कारण बन सकते हैं।

इस जहाज में कुल 640 कंटेनर लदे थे। इस लेख को लिखे जाने तक  कम-से-कम 54 कंटेनर कोल्लम (43), तिरुवनंतपुरम (9) और अलप्पुझा (2) के समुद्र तटों पर बह कर आए हैं। इसके बावजूद, केरल के तट के पास उच्च समुद्र की लहरों से क्षतिग्रस्त कंटेनरों का मलबा केरल के दक्षिणी समुद्र तटों पर आ सकता है। तिरुवनंतपुरम के तट पर छोटे-छोटे प्लास्टिक और पॉलीथीन के दाने बह कर आए हैं जो लंबे समय तक माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण का खतरा बन सकते हैं। अधिकारियों का कहना है कि रबर सॉल्यूशन समुद्र के पानी के साथ प्रतिक्रिया कर चुका है, जिसके कारण प्लास्टिक के ये दाने पाए जा रहे हैं। अभी तक इनके सुरक्षित तरीके से निपटाने का कोई स्पष्ट समाधान नहीं है।

राज्य सरकार ने इसे प्रादेशिक स्तर की आपदा घोषित कर स्वयंसेवकों की मदद से समुद्र तट की सफाई शुरू की है। कैल्शियम कार्बाइड वाले पांच कंटेनर, जो एक और प्रदूषण का खतरा हैं, समुद्र के तल पर पड़े हैं और इन्हें सुरक्षित तरीके से निपटाना आवश्यक है ताकि वे नुकसान न करें।

मुख्य चिंता यह है कि जो चीजें लदी थीं, उनमें से 13 को 'खतरनाक कार्गो' के रूप में वर्गीकृत किया गया था और 12 में कैल्शियम कार्बाइड था। इसके अलावा, जहाज में 84.44 मीट्रिक टन डीजल और 367.1 मीट्रिक टन फर्नेस तेल भी है। ये कंटेनर कोई तीन किलोमीटर की गति से समुद्र में बह रहे हैं और कहा नहीं जा सकता कि कौन-सा कंटेनर किस दिशा में कहां जाए और क्या-क्या नुकसान करें।

केरल सरकार ने भी नुकसान कम करने, इसका आकलन करने की दिशा में कुछ फौरी कदम उठाए हैं। 20 समुद्री मील की दूरी तक मछली पकड़ने पर रोक लगा दी गई है। ड्रोन से निगरानी करने के साथ सफाई करने के खयाल से हर 100 मीटर पर वॉलिंटियर लगाए गए हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नेतृत्व में रैपिड रेस्पॉन्स टीम तैनात करने के अलावा तेल रिसाव की स्थिति पर नजर रखी जा रही। केन्द्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (सीएमएफआरआई) ने समुद्री पर्यावरण पर जहाज दुर्घटना के प्रभाव का आकलन करने के लिए एक अध्ययन शुरू किया है। जांच के लिए टीमें प्रत्येक जिले में 10 स्थलों से नियमित अंतराल पर जल, फाइटोप्लांकटन और तलछट के नमूने एकत्र कर रही हैं। जल गुणवत्ता के मापदंडों में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा, पीएच (पावर ऑफ हाइड्रोजन), पोषक तत्व आदि का अध्ययन किया जा रहा है।

इन्स्टीट्यूट के निदेशक डॉ. ग्रिन्सन जॉर्ज का कहना है कि रिसाव का सही आकलन करने पर ही पता चल सकता है कि इसका क्या पारिस्थितिकीय और पर्यावरणीय प्रभाव होगा। वैश्विक तौर पर जाने-माने डिजास्टर और केमिकल विशेषज्ञ डॉ. मुरली थुमुरकुडू, वर्ल्ड मेरिटाइम यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर डॉ. ओलॉफ लिडेन, पर्यावरणीय प्रभाव की दृष्टि से अर्थ विशेषज्ञ शांताकुमार, पेट्रोलियम रासायनिक विश्लेषण विशेषज्ञ डॉ. बाबू पिल्लई भी आकलन, बचाव, राहत आदि में लगे हुए हैं।

दरअसल, मानसून समय से पहले आ गया है और मुख्य चिंता यह है कि यह समय समुद्री जीवों, खासकर मछलियों का प्रजनन काल होता है। ऐसे में तेल और खतरनाक रसायन का रिसाव समुद्री उत्पादकता को नुकसान पहुंच सकता है। ज्यादा और गंभीर रिसाव होने पर समुद्री जीवों का दम घुट सकता है जिससे दूरगामी नुकसान की आशंका है।

शुरुआती आकलन यह है कि इस जहाज में लदे कैल्शियम कार्बाइड से भरे कंटेनरों से सबसे भयावह नुकसान की आशंका है। कैल्शियम कार्बाइड की पानी के साथ प्रतिक्रिया से जल में ऑक्सीजन का स्तर कम हो सकता है जिससे समुद्री जीवों को सांस लेने में कठिनाई हो सकती है। यह एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील रसायन है और जब यह पानी के संपर्क में आता है, तो एसिटिलीन गैस और कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड तेजी से बनती है। एसिटिलीन अत्यधिक ज्वलनशील गैस है। यदि बड़ी मात्रा में यह गैस समुद्र के भीतर या तटीय क्षेत्रों में जमा होती है, तो यह आग या विस्फोट का कारण बन सकती है। कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड के कारण पानी की क्षारीयता बढ़ जाएगी। समुद्र के पानी में पीएच स्तर में अचानक वृद्धि समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बिगाड़ सकती है। यह मछली के गलफड़ों, प्रवाल भित्तियों (उनके पंखों में मौजूद खास नुकीली, बोनी किरणों और कांटों) और जलीय जानवरों के अंडों को नुकसान पहुंचा सकता है। कई प्रजातियां तो इन रासायनिक परिवर्तनों में जीवित भी नहीं रह सकतीं। इससे प्रजनन स्थल नष्ट हो सकते हैं और स्थानीय मत्स्यपालन प्रभावित हो सकता है।

जहाज की ईंधन टंकी  में रखे डीजल की बड़ी मात्रा का रिसाव भी समुद्र के लिए घातक है। असल में, वैसे में तेल की एक मोटी परत समुद्र के ऊपर फैल जाएगी और इससे पानी के भीतर ऑक्सीजन का प्रवाह रुक जाएगा। इसके अलावा समुद्री पक्षियों, समुद्री स्तनधारियों (जैसे डॉल्फिन और व्हेल), मछलियों और अकशेरूकीय जीवों (जैसे केंकड़े और घोंघे) के शरीर को तेल की परत ढक सकती है। इससे उनके पंख या फर चिपक जाएंगे जिससे वे तैरने, उड़ने या अपना तापमान नियंत्रित करने में असमर्थ हो जाएंगे। डीजल में कई विषैले यौगिक होते हैं जो समुद्री जीवों के लिए हानिकारक होते हैं। ये रसायन उन्हें बीमार कर सकते हैं, उनके प्रजनन को प्रभावित कर सकते हैं या उनकी मृत्यु का कारण बन सकते हैं। तेल अगर समुद्र तटों, मैंग्रोव जंगलों और दलदली भूमि पर जमा हो गया, तो यह संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्रों को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचा सकता है।

जहाज में लदा फर्नेस तेल वेरी लो सल्फर फ्यूल ऑयल (वीएलएसएफओ) कहलाता है। पेट्रोलियम के इस उत्पाद का उपयोग जहाजों के इंजन में ईंधन के रूप में किया जाता है। इसमें गंधक की मात्रा कम  होती है लेकिन कुप्रभाव डीजल की तरह ही होता है। पिछले साल फरवरी में मॉरीशस में वाकाशिओ जहाज डूब गया था। उसके बाद किए गए अध्ययन से पता चला कि वीएलएसएफओ लंबे समय तक  तलछट और मैंग्रोव में मौजूद रह सकता है और इससे पारिस्थितिकी तंत्र को लंबे समय तक नुकसान होता है।

इस किस्म की दुर्घटना को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समुद्री आपदा की दूसरी श्रेणी की घटना कहा जाता है। कैल्शियम कार्बाइड के साथ समुद्री जहाज की दुर्घटना की यह दुनिया की दूसरी घटना ही है। 18 फरवरी 1997 को फ्रांस में ब्रेस्ट के समुद्री त्यात से कोई 60 मील दूर  अलबीओन-2 नामक जहाज 114 टन कैल्शियम कार्बाइड के साथ समुद्र में डूब गया था। इसमें  जहाज के मालिक को 15 साल की सजा हुई थी।

भारत के दक्षिणी समुद्री तट पर मंडरा रहा यह संकट पर्यावरण के साथ-साथ लाखों लोगों की रोजी-रोटी से भी जुड़ा है। केरल में मत्स्यपालन क्षेत्र राज्य की कुल आबादी के लगभग 2.98 प्रतिशत को आजीविका प्रदान करता है। इनमें से 8 लाख मछुआरे मछली पकड़ते हैं। राज्य में मछली उत्पादों की वार्षिक घरेलू बिक्री लगभग 600 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। यदि तेल और रासायनिक पदार्थों का रिसाव गंभीर हो गया, तो पहले से गिरावट का शिकार मछली पालन उद्योग घुटनों पर आ जाएगा। केरल में 2022-23 में कुल समुद्री उत्पादन 6.90 लाख टन था जो 2023-24 में घटकर 5.8 लाख टन हो गया। इस कमी के बावजूद, केरल अब भी समुद्री मछली पकड़ने में देश में दूसरे स्थान पर है।

केन्द्र सरकार भारतीय जल क्षेत्रों में संचालित जहाजों की उम्र तय करने पर विचार कर रही हैं । जल यान विभाग के महानिदेशक श्याम जगन्नाथन के मुताबिक, जहाज की उम्र अंतरराष्ट्रीय मानकों के अंतर्गत कोई  बंधन नहीं हैं लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए निरीक्षण व्यवस्था को मजबूत करने की आवश्यकता है कि भारतीय जल क्षेत्रों में संचालित जहाज समुद्री मानदंडों का पालन करें। उन्होंने कहा, "हमें कुछ पुराने जहाजों को लेकर चिंता है जो भारतीय जल क्षेत्रों में संचालित हो रहे हैं।"

पंकज चतुर्वेदी पर्यावरण विषयों पर नियमित तौर पर लिखते हैं।

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