बीमा फ्रॉड-हत्याकांड: संभल से बड़ा खुलासा, 12 राज्यों में फैला नेटवर्क, कई गिरफ्तार
Samachar Nama Hindi June 04, 2025 05:42 PM

उत्तर प्रदेश के संभल जिले से एक हैरान कर देने वाली धोखाधड़ी की कहानी सामने आई है, जिसे लोग अब 'जिंदा-मर्दा जामताड़ा' कहकर बुला रहे हैं। यह कहानी न केवल प्रशासनिक लापरवाही की पोल खोलती है बल्कि यह भी दर्शाती है कि फर्जीवाड़े के लिए अपराधी किस हद तक जा सकते हैं। यहां मृतकों के नाम पर फर्जी बीमा पॉलिसी बनवाकर करोड़ों रुपये का बीमा क्लेम किया जा रहा है, और वह भी बड़े ही सुनियोजित तरीके से।

क्या है ‘जिंदा-मर्दा जामताड़ा’?

'जामताड़ा' शब्द आपने पहले भी सुना होगा — झारखंड का वह इलाका जो साइबर फ्रॉड के लिए कुख्यात है। लेकिन अब संभल जिले ने एक नया ट्रेंड सेट कर दिया है। यहां 'जिंदा' लोगों को 'मर्दा' यानी मृत घोषित कर के उनके नाम पर बीमा कंपनियों से लाखों रुपये का क्लेम लिया जा रहा है। यही नहीं, कुछ मामलों में मृत व्यक्ति के नाम पर फर्जी गवाह, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और अंतिम संस्कार प्रमाण पत्र तक बनाए गए हैं।

कैसे सामने आया यह घोटाला?

इस घोटाले की परतें तब खुलीं जब बीमा कंपनियों ने संदेह के आधार पर कुछ मामलों की जांच करवाई। जांच में यह सामने आया कि कुछ क्लेम ऐसे व्यक्तियों के नाम से किए गए हैं जो या तो अभी भी जीवित हैं या वर्षों पहले उनकी मृत्यु हो चुकी थी।

पुलिस की छानबीन के बाद खुलासा हुआ कि यह काम किसी एक व्यक्ति का नहीं बल्कि एक संगठित गिरोह का है, जिसमें बीमा एजेंट, अस्पताल कर्मी, कुछ पंचायत सदस्य और स्थानीय गुर्गे शामिल हैं। इस गिरोह ने ऐसे लोगों की सूची बनाई थी जिनकी मृत्यु हो चुकी थी लेकिन उनके मृत्यु प्रमाण पत्र अपडेट नहीं हुए थे या रिकॉर्ड नहीं थे।

बीमा कंपनियों को कैसे बनाया गया शिकार?

इस गिरोह ने सबसे पहले बीमा पॉलिसी बनवाई और फिर कुछ महीनों बाद व्यक्ति को मृत घोषित कर दिया। उनके पास फर्जी पोस्टमार्टम रिपोर्ट, मौत का कारण, और यहां तक कि गवाहों के झूठे बयान भी होते थे। कई बार गांव में चुपचाप अंतिम संस्कार कर दिया जाता और उसकी फर्जी तस्वीरें भी तैयार की जातीं। फिर बीमा कंपनी में दावा किया जाता कि व्यक्ति की आकस्मिक मृत्यु हुई और अब नॉमिनी को बीमा की राशि दी जाए।

कितने लोगों का हो चुका है बीमा?

पुलिस रिकॉर्ड और बीमा कंपनियों की सूचना के अनुसार, अब तक 40 से अधिक ऐसे मामले सामने आ चुके हैं। इन सभी में लगभग 3 करोड़ रुपये तक की बीमा राशि क्लेम की गई है। इस घोटाले में शामिल गिरोह के 7 से अधिक सदस्य गिरफ्तार हो चुके हैं जबकि बाकी की तलाश की जा रही है।

स्थानीय प्रशासन की चुप्पी?

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि इतनी बड़ी संख्या में फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र और पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनने के बावजूद स्थानीय प्रशासन की आंखें बंद रहीं। इससे यह भी सवाल खड़ा होता है कि कहीं प्रशासनिक अधिकारी भी इस पूरे खेल में शामिल तो नहीं?

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि मामले की उच्चस्तरीय जांच की जा रही है और जल्द ही अन्य दोषियों को भी गिरफ्तार किया जाएगा।

जनता का क्या कहना है?

स्थानीय लोग इस घोटाले से बेहद नाराज़ हैं। एक ग्रामीण ने कहा, “हम सोच भी नहीं सकते थे कि गांव के ही कुछ लोग मर चुके व्यक्तियों की आड़ में बीमा कंपनी को चूना लगाएंगे। ये तो इंसानियत के खिलाफ है।”

सरकार और बीमा कंपनियों की प्रतिक्रिया

सरकार ने इस घोटाले को गंभीरता से लिया है और सभी बीमा पॉलिसियों की दोबारा जांच कराने के आदेश दे दिए हैं। वहीं बीमा कंपनियों ने भी अब नए क्लेम को प्रोसेस करने से पहले मृत्यु प्रमाण पत्र, पोस्टमार्टम रिपोर्ट और स्थानीय थाने की जांच रिपोर्ट अनिवार्य कर दी है।

निष्कर्ष:

'जिंदा-मर्दा जामताड़ा' सिर्फ एक घोटाले की कहानी नहीं, बल्कि यह हमारे सिस्टम की कमजोरियों और लालच में अंधे हो चुके लोगों की मानसिकता का प्रतिबिंब है। जब तक सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही नहीं होगी, ऐसे घोटाले बार-बार सामने आते रहेंगे। अब वक्त है कि प्रशासन और आम जनता मिलकर ऐसे अपराधों के खिलाफ एकजुट होकर खड़े हों, ताकि समाज में भरोसे की नींव मजबूत हो सके।

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