वट पूर्णिमा 2025: पति की लंबी उम्र और सौभाग्य के लिए विशेष पूजा विधि: वट सावित्री व्रत, जिसे वट पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है, हर वर्ष महिलाओं में एक विशेष उत्साह का संचार करता है। यह पर्व पति की दीर्घायु और अटूट सौभाग्य की कामना के लिए मनाया जाता है। 2025 में यह पर्व 10 जून को ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाया जाएगा, और विशेष रूप से महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत की महिलाएं इस दिन वट वृक्ष की पूजा के लिए उत्सुक रहती हैं। आइए, इस पवित्र व्रत के शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसके महत्व को विस्तार से समझते हैं, ताकि आप इस खास दिन को और भी खास बना सकें।
वट पूर्णिमा 2025 का शुभ मुहूर्त
10 जून 2025 को वट पूर्णिमा का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:
अभिजित मुहूर्त: सुबह 11:53 से दोपहर 12:49 तक। यह समय पूजा के लिए सबसे उत्तम माना जाता है।
लाभ मुहूर्त: सुबह 10:36 से दोपहर 12:21 तक। इस समय पूजा करने से लाभ और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
अमृत मुहूर्त: दोपहर 12:21 से 2:05 तक। यह समय आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा होता है।
शुभ मुहूर्त: दोपहर 3:50 से शाम 5:34 तक। इस दौरान पूजा करने से सौभाग्य में वृद्धि होती है।
इन मुहूर्तों में पूजा करने से न केवल आपकी प्रार्थनाएं सुनी जाएंगी, बल्कि आपके परिवार में सुख-शांति का वास भी होगा।
वट पूर्णिमा पूजा विधि
वट पूर्णिमा का व्रत और पूजा करना बेहद सरल लेकिन प्रभावशाली है। सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और मन में यह संकल्प लें कि आप यह व्रत अपने पति की लंबी उम्र और परिवार की खुशहाली के लिए रख रही हैं। इसके बाद, वट वृक्ष के पास जाएं और पूजा की थाली सजाएं। थाली में रोली, चंदन, फूल, धूप, दीप और मिठाई जरूर रखें।
वट वृक्ष के नीचे बैठकर सावित्री और सत्यवान की कथा सुनें। यह कथा सुनना इस व्रत का सबसे भावनात्मक हिस्सा है, जो हर महिला के दिल को छू जाता है। कथा के बाद वट वृक्ष की सात परिक्रमा करें और हर परिक्रमा में वृक्ष पर मौली (लाल धागा) लपेटें। अंत में, गरीबों को दान दें और अपने व्रत का पारण करें। इस विधि को अपनाकर आप न केवल परंपरा को निभाएंगी, बल्कि अपने परिवार के लिए सौभाग्य का आशीर्वाद भी प्राप्त करेंगी।
वट पूर्णिमा का महत्व
वट सावित्री व्रत का महत्व करवा चौथ से कम नहीं है। यह व्रत पति की लंबी आयु और वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि के लिए रखा जाता है। बरगद का पेड़, जिसे वट वृक्ष कहते हैं, इस व्रत का केंद्र है। मान्यता है कि वट वृक्ष में त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—का वास होता है। इसलिए, इसकी पूजा से अखंड सौभाग्य और परिवार में सुख-शांति का आशीर्वाद मिलता है। सावित्री की तरह, जो अपने पति सत्यवान को यमराज से वापस लाई थीं, यह व्रत हर महिला को अपने परिवार की रक्षा के लिए शक्ति और विश्वास देता है।
अपने व्रत को बनाएं और खास
वट पूर्णिमा का यह पर्व न केवल आध्यात्मिक है, बल्कि यह परिवार और प्यार का उत्सव भी है। इस दिन को और खास बनाने के लिए अपने परिवार के साथ समय बिताएं, सावित्री-सत्यवान की कथा को बच्चों को सुनाएं और उन्हें इस परंपरा का महत्व समझाएं। साथ ही, पूजा के बाद अपने पति के साथ कुछ पल जरूर बिताएं, क्योंकि यह व्रत प्यार और विश्वास का प्रतीक है।