बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यादव ने 2 पृष्ठों के पत्र की एक प्रति भी साझा की जिसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि आरक्षण बढ़ाने संबंधी नए विधेयकों को पारित करने के लिए विधानसभा का एक विशेष सत्र बुलाया जाना चाहिए तथा इसके बाद इन्हें संविधान की 9वीं अनुसूची में डालने का प्रयास किया जाना चाहिए जिससे इन्हें न्यायिक पड़ताल से संरक्षण मिल सके।
विधेयक को पटना उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था : राजद नेता ने कहा कि बिहार विधानसभा द्वारा 2023 में पारित इसी तरह के विधेयक को संवैधानिक चुनौतियों के कारण पटना उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया था। यादव ने कहा कि अगर नीतीश कुमार और राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के अन्य सहयोगी जैसे (केंद्रीय मंत्री) चिराग पासवान और जीतन राम मांझी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से यह मांग पूरी नहीं करवा सकते तो उन्हें गठबंधन में रहने पर शर्म आनी चाहिए।ALSO READ:
अब केंद्र सरकार की पोल खुल गई है : राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज कुमार झा ने भी इस मुद्दे पर आरोप लगाया कि ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य सरकार की समाज के वंचित वर्गों के प्रति अच्छी मंशा नहीं है। झा ने कहा कि हमारे (राजद) सुप्रीमो लालू प्रसाद हमेशा से लोगों को भाजपा और उसकी मातृ संस्था आरएसएस के खिलाफ चेतावनी देते रहे हैं। अब केंद्र सरकार की पोल खुल गई है। जाति जनगणना की मांग के आगे झुकने के बाद, ऐसा लगता है कि वह आंकड़े बताने से इंकार करके इस कवायद को निरर्थक बनाने पर आमादा है।ALSO READ:
वहीं जद (यू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने पलटवार करते हुए राजद पर बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले कुछ लाभ हासिल करने के लिए जाति जनगणना के मुद्दे का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। उन्होंने विपक्षी पार्टी को यह भी याद दिलाया कि जब वह 15 साल तक राज्य में सत्ता में थी तो जातियों का कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ बल्कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा कराए गए सर्वेक्षण से दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों की जनसंख्या प्रतिशत में वृद्धि सामने आई।(भाषा)
Edited by: Ravindra Gupta