उत्तर भारत में ठंड और कोहरे के चलते रेल सेवाएं एक बार फिर चरमरा गई हैं। हर रोज कई ट्रेनें रद्द हो रही हैं, और जो चल भी रही हैं, वे घंटों देरी से अपने गंतव्य तक पहुंच रही हैं। कुछ यात्रियों के लिए यह रोज़ की कहानी बन चुकी है कि उन्हें स्टेशन पर घंटों ट्रेन का इंतजार करना पड़ता है। लेकिन इसी दुनिया में एक ऐसा देश भी है, जहां ट्रेन अगर 20 सेकंड पहले या बाद में चल जाए, तो उसे भी लेट माना जाता है। जी हां, हम बात कर रहे हैं जापान की एक ऐसा देश, जहां "समय" केवल घड़ी की सुई नहीं, बल्कि एक संस्कृति है।
भारत में ट्रेनें कब समय पर चलेंगी?
भारत में रेल का इतिहास भले ही 1853 में शुरू हो गया हो, लेकिन समय के साथ रेलवे सेवाओं में जिस सुधार की उम्मीद की गई थी, वह आज भी अधूरी लगती है। खासतौर पर उत्तर भारत में सर्दियों के मौसम में ट्रेनें घंटों तक लेट रहती हैं। कोहरा, सिग्नल फेल, ट्रैक क्लीयरेंस जैसे कारण आम हैं। एक यात्री को अगर दिल्ली से पटना की यात्रा करनी है, तो वह यही सोच कर चलता है कि 12 घंटे की जगह उसे 18 घंटे लग सकते हैं।
रेलवे द्वारा समय-समय पर तकनीकी सुधारों की बात की जाती है, लेकिन ऑन ग्राउंड स्थिति वही पुरानी है। स्टेशन पर लगे समय-सूचक बोर्ड पर "Expected Time" को देखकर यात्री अब भरोसा नहीं करते। यही कारण है कि भारतीय रेलवे को समयबद्धता के मामले में वैश्विक रैंकिंग में बहुत पीछे रखा जाता है।
जापान: जहां ट्रेन 36 सेकंड से ज़्यादा कभी लेट नहीं होतीअब ज़रा जापान की ओर नजर डालिए। जापान की ट्रेनें अपने समय के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं। यहां की बुलेट ट्रेन "शिंकासेन" के नाम यह रिकॉर्ड है कि वह कभी 36 सेकंड से अधिक देरी से नहीं चली। यह केवल तकनीक का चमत्कार नहीं, बल्कि एक समर्पित व्यवस्था, ज़िम्मेदार कर्मचारी और अनुशासित समाज का परिणाम है।
जापानी लोग समय को बेहद गंभीरता से लेते हैं। स्कूल हो, ऑफिस हो या रेलवे – हर जगह समय का पालन सख्ती से किया जाता है। यदि कोई ट्रेन कुछ सेकंड की देरी से चलती है, तो रेलवे कर्मचारियों को यात्रियों से सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ती है। इतना ही नहीं, यात्रियों को विलंब प्रमाणपत्र (Delay Certificate) भी दिया जाता है, ताकि वे अपने ऑफिस या संस्था में यह साबित कर सकें कि देरी उनकी गलती नहीं थी।
एक वाकया: जब ट्रेन 20 सेकंड पहले खुल गईनवंबर 2020 में जापान के टोक्यो शहर में त्सुकुबा एक्सप्रेस लाइन की एक ट्रेन 9:44:40 की बजाय 9:44:20 पर रवाना हो गई। सुनने में यह फर्क बहुत कम लगता है, लेकिन जापानी रेलवे ने इसे एक गंभीर चूक माना और रेलवे अधिकारियों ने माफ़ी जारी की। कुछ यात्रियों की ट्रेन छूट गई और कुछ अगले स्टेशन पर ट्रेन पकड़ने से चूक गए। इस घटना ने एक बार फिर जापानी रेलवे की "Time Ethics" को पूरी दुनिया के सामने उदाहरण के रूप में पेश किया।
क्या भारत भी ऐसा कर सकता है?सवाल उठता है – क्या भारत भी जापान जैसी समयबद्धता हासिल कर सकता है? उत्तर है – हां, लेकिन इसके लिए सिर्फ तकनीकी सुधार काफी नहीं हैं। इसके लिए रेलवे व्यवस्था में नीचे से ऊपर तक अनुशासन, ईमानदारी और जवाबदेही की जरूरत है।
भारत में रेलवे स्टाफ की कमी, ओवरलोडेड नेटवर्क, पुरानी तकनीक और वित्तीय समस्याएं समयबद्धता में सबसे बड़ी बाधा हैं। लेकिन जापान ने यह साबित कर दिया है कि अगर इच्छा हो, तो तकनीक और मानव संसाधन के सहारे चमत्कार किया जा सकता है।
समय का मूल्य समझना ज़रूरीभारतीय समाज में समय के प्रति गंभीरता की कमी भी एक बड़ी वजह है। जब आम जनता ट्रेन के लेट होने को “नॉर्मल” मान लेती है, तो सिस्टम भी सुधार के प्रति लापरवाह हो जाता है। इसके विपरीत, जापान में अगर ट्रेन देर से आती है, तो पूरा सिस्टम शर्मिंदा होता है। यही मानसिकता की असली जीत होती है।
जापान से क्या सीख सकते हैं हम?तकनीकी निवेश: हाई-स्पीड ट्रेनों के संचालन के लिए सिग्नल सिस्टम, ट्रैक मॉनिटरिंग, और ट्रेन ऑटोमेशन को प्राथमिकता देनी होगी।
स्टाफ ट्रेनिंग: भारतीय रेलवे को जापान की तरह कर्मचारियों को समय और सुरक्षा की ट्रेनिंग देनी चाहिए।
जवाबदेही तय करना: अगर ट्रेन लेट हो, तो जिम्मेदार अधिकारियों से स्पष्टीकरण और कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए।
यात्री अधिकारों की सुरक्षा: विलंब प्रमाणपत्र जैसी व्यवस्था अपनाकर यात्रियों को समय की गारंटी दी जा सकती है।
समय-संस्कृति को बढ़ावा: स्कूल और कॉलेज से ही समय की अहमियत को समझाने की पहल होनी चाहिए।
जापान की ट्रेनें केवल एक यातायात साधन नहीं हैं, बल्कि वहां की संस्कृति, अनुशासन और जिम्मेदारी की प्रतीक हैं। भारत जैसे विशाल देश में समय पर ट्रेनों का संचालन करना निश्चित रूप से चुनौतीपूर्ण है, लेकिन असंभव नहीं। जरूरत है केवल इच्छाशक्ति की, सुधार की और समय की कीमत समझने की।
जब तक हम समय को केवल घड़ी की टिक-टिक समझते रहेंगे, हम जापान से बहुत पीछे रहेंगे। लेकिन जिस दिन हम समय को "जीवन की गुणवत्ता" मान लेंगे, भारत की ट्रेनें भी समय पर चलने लगेंगी।