ईरान और इज़राइल के बीच जारी टकराव अब खतरनाक मोड़ पर पहुंच चुका है। 13 जून को इज़राइली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने पुष्टि की कि उनकी सेना ने ईरान के नतांज़ परमाणु संयंत्र पर हमला किया है, जिसे ईरान की परमाणु समृद्धि का केंद्र माना जाता है। इसी दिन ईरानी सरकारी मीडिया ने यह घोषणा की कि ईरान के दो सबसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी—जनरल होसेन सलामी और जनरल मोहम्मद बाघेरी—मारे गए हैं। इन दो अहम घटनाओं ने ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को लेकर लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को और अधिक उग्र बना दिया है।
परमाणु कार्यक्रम को लेकर बढ़ती चिंता
इस पूरे संघर्ष के केंद्र में एक सवाल है—क्या ईरान परमाणु हथियार बनाने के बेहद करीब पहुंच चुका है? ईरान का दावा है कि उसका परमाणु कार्यक्रम केवल ऊर्जा और चिकित्सा अनुसंधान जैसे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है, लेकिन मई 2025 में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की रिपोर्ट इस दावे को झुठलाती है। रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के पास अब 9,247 किलोग्राम समृद्ध यूरेनियम का भंडार है, जो 2015 के परमाणु समझौते JCPOA में तय 300 किलोग्राम सीमा से 45 गुना अधिक है। इसमें से 408 किलोग्राम तक यूरेनियम को 60% शुद्धता तक समृद्ध किया गया है, जो हथियार-ग्रेड 90% से थोड़ा ही कम है।
हालांकि ईरान ने अभी तक 90% तक समृद्ध करने की आधिकारिक घोषणा नहीं की है और न ही हथियार निर्माण कार्यक्रम को सक्रिय किया है, लेकिन IAEA के निरीक्षकों ने पहले 83.7% तक समृद्ध यूरेनियम कण पाए थे। ईरान की पारदर्शिता में आई कमी और निरीक्षणों पर लगी रोक ने वैश्विक चिंता को और बढ़ा दिया है।
इज़राइली हमले और क्षेत्रीय अस्थिरता
नतांज़ पर यह हमला इज़राइल की उस व्यापक रणनीति का हिस्सा है जिसमें वह ईरान के परमाणु कार्यक्रम को एक अस्तित्वगत खतरा मानता है। यह स्थल भूमिगत और सतही दोनों प्रकार की अत्याधुनिक सेंट्रीफ्यूज श्रृंखलाओं से लैस है। 2021 में भी यहां एक हमला हुआ था, जिसके लिए इज़राइल को जिम्मेदार ठहराया गया था। फोर्दो, इस्फहान और खोंदाब जैसे अन्य परमाणु स्थल भी लंबे समय से जांच के घेरे में हैं। विशेष रूप से फोर्दो में 2023 में मिले 83.7% समृद्ध यूरेनियम कणों ने चिंता और बढ़ा दी है।
इसके साथ ही, ईरान ने डार्खोविन और सिरिक में परमाणु ऊर्जा उत्पादन के लिए नई परियोजनाएं शुरू की हैं, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है। ये परियोजनाएं सैन्य नहीं बल्कि ऊर्जा उत्पादन के लिए हैं, लेकिन इनसे जुड़ी पारदर्शिता को लेकर भी संदेह बना हुआ है।
सलामी और बाघेरी की मौत के साथ-साथ अन्य सैन्य और वैज्ञानिक अधिकारियों की भी संभावित हत्या से यह साफ है कि इज़राइल अब ईरान की परमाणु क्षमता को रोकने के लिए और आक्रामक नीति अपना रहा है। लगातार बढ़ते यूरेनियम भंडार, सीमित निरीक्षण और जवाबी सैन्य कार्रवाइयों के बीच पूरा क्षेत्र एक बड़े परमाणु टकराव की दहलीज़ पर खड़ा नजर आता है।
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