पश्चिम एशिया एक बार फिर युद्ध की लपटों में झुलसने लगा है। इस बार संघर्ष की जड़ में हैं दो कट्टर विरोधी देश—इजरायल और ईरान। दोनों देशों के बीच छिड़े ताजा संघर्ष ने न सिर्फ भू-राजनीतिक संतुलन को हिला दिया है, बल्कि हवाई यातायात को भी पूरी तरह प्रभावित किया है। जैसे ही दोनों देशों के बीच हवाई हमलों की शुरुआत हुई, मिडिल ईस्ट क्षेत्र में उड़ान भरने वाली अंतरराष्ट्रीय एयरलाइनों के सामने नई समस्याएं खड़ी हो गईं। कई देशों ने एहतियात के तौर पर अपना हवाई क्षेत्र पूरी तरह बंद कर दिया है, जिससे न केवल एयरलाइनों को नुकसान हो रहा है, बल्कि यात्रियों को भी भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
2. इजरायल और ईरान ने बंद किया हवाई क्षेत्रइस क्षेत्रीय युद्ध की सबसे बड़ी झलक विमानन सुरक्षा में देखने को मिली है। इजरायल ने अगले आदेश तक अपने ऊपर से सभी उड़ानों को रोकने का फैसला लिया है। दूसरी तरफ, ईरान ने तेहरान स्थित अपने मुख्य हवाई अड्डे पर सभी नागरिक उड़ानों को निलंबित कर दिया है और देश भर के हवाई अड्डों पर उच्च सुरक्षा अलर्ट घोषित कर दिया गया है। इस कदम का सीधा असर अंतरराष्ट्रीय एयरलाइनों पर पड़ा है, जो मिडिल ईस्ट के हवाई क्षेत्र से गुजरती थीं। अब उन्हें वैकल्पिक मार्ग अपनाने पड़ रहे हैं या कई बार उड़ानों को रद्द करना पड़ रहा है। इससे हवाई यातायात व्यवस्था चरमरा गई है। मिडिल ईस्ट क्षेत्र का हवाई मार्ग वैश्विक विमानन के लिए एक प्रमुख रूट है, जहां से होकर यूरोप, एशिया और अफ्रीका के बीच की ज्यादातर फ्लाइटें गुजरती हैं। ऐसे में इस एयरस्पेस के बंद हो जाने का असर न केवल स्थानीय बल्कि वैश्विक उड़ानों पर भी पड़ा है।
3. एयरलाइंस कंपनियों पर बढ़ा दबाव और यात्रियों की परेशानीइस संघर्ष के कारण एयरलाइनों को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्हें अपने मेन रूट को छोड़कर वैकल्पिक और लंबे रूट से उड़ान भरनी पड़ रही है। इससे उनकी ईंधन लागत में तेज़ी से इज़ाफा हो रहा है और उड़ानों की कुल अवधि भी बढ़ रही है। एयरलाइंस कंपनियां न केवल आर्थिक दबाव में आ रही हैं, बल्कि उन्हें अपने क्रू शेड्यूल, लॉजिस्टिक्स और यात्रियों की सुविधाओं का पुनर्गठन भी करना पड़ रहा है।
दूसरी ओर, यात्रियों को भी इस संघर्ष के कारण काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। कई उड़ानों को बीच रास्ते से वापस लौटना पड़ा है, तो कई को टेकऑफ से ठीक पहले कैंसिल कर दिया गया। खासकर भारत से मिडिल ईस्ट और यूरोप के लिए जाने वाली कई फ्लाइट्स इस जंग के प्रभाव में आ गई हैं। एयर इंडिया, इंडिगो और विदेशी एयरलाइनों की कुछ उड़ानें या तो वापस लौटीं या फिर वैकल्पिक रूट से लंबा रास्ता अपनाने के कारण काफी देर से पहुंचीं। एयरपोर्ट्स पर यात्री घंटों इंतजार में खड़े नजर आए और कई लोगों की ट्रांजिट फ्लाइट्स भी छूट गईं। ऐसे में एयरपोर्ट अथॉरिटी और एयरलाइंस कंपनियों को यात्रियों की मदद के लिए अतिरिक्त व्यवस्थाएं करनी पड़ रही हैं।
4. वैश्विक विमानन पर पड़ेगा दीर्घकालिक असरविशेषज्ञों का मानना है कि यदि इजरायल और ईरान के बीच यह युद्ध लम्बा खिंचता है, तो इसका दीर्घकालिक असर वैश्विक विमानन उद्योग पर देखने को मिलेगा। एक ओर जहां एयरलाइनों की लागत बढ़ेगी, वहीं दूसरी ओर उड़ानों की संख्या कम हो सकती है या किराए बढ़ सकते हैं। इसके साथ ही, सुरक्षा कारणों से कुछ देशों में पर्यटन और व्यवसायिक यात्राएं भी प्रभावित हो सकती हैं। इस संघर्ष ने एक बार फिर दिखा दिया है कि अंतरराष्ट्रीय राजनीति और सैन्य तनाव किस प्रकार से आम नागरिकों और वैश्विक सेवाओं को प्रभावित कर सकते हैं। हवाई यातायात जैसी जीवन रेखा पर भी युद्ध का साया गहरा सकता है।