ईरान के युद्धों का इतिहास: ईरान की युद्धों की कहानी केवल रक्तपात और विस्फोटों की नहीं है, बल्कि यह संस्कृति, राजनीति और शक्ति के संघर्ष की भी दास्तान है। इस देश ने सदियों से अनेक आक्रमणों का सामना किया है, कभी विजय प्राप्त की तो कभी हार का सामना किया। वर्तमान में जब ईरान और इजरायल के बीच युद्ध का खतरा मंडरा रहा है, तब इतिहास के पन्नों को पलटा जा रहा है, जो दर्शाते हैं कि यह भूमि पहले भी कई बार युद्धों का साक्षी रही है। अरबों, मंगोलों और तुर्कों ने इस पर आक्रमण किया, लेकिन ईरान ने अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने में सफलता पाई है।
सातवीं सदी में ईरान सासानी साम्राज्य के अधीन था, जो एक शक्तिशाली साम्राज्य माना जाता था। लेकिन अरबों ने इस पर आक्रमण करना शुरू किया। Battle of Dhi Qar में सासानी सेना को पराजय का सामना करना पड़ा, जिसने अरब सेनाओं का मनोबल बढ़ाया। इसके बाद Battle of al-Qadisiyyah में फारसी सेनापति रुसतुम और अरब सेनापति साद इब्न अबी वक़्क़ास के बीच निर्णायक युद्ध हुआ। सासानी राजधानी कटेसिफ़ोन के पतन के साथ ही फारसी सत्ता का अंत होने लगा।
अरबों ने ईरान पर कब्जा कर लिया, लेकिन धीरे-धीरे फारसी संस्कृति का प्रभाव इस्लामी शासन पर हावी होता गया। प्रशासन, भाषा और साहित्य में फारसी रंग घुल गया। यही वह समय था जब शिया इस्लाम की नींव पड़ी, जिसने ईरान को इस्लामी दुनिया में एक विशेष पहचान दी।
11वीं सदी में तुर्की मूल के सेल्जूक तुर्कों ने फारसी सत्ता को चुनौती दी। Battle of Dandanaqan में उन्होंने गज़नवी शासक मसूद को हराया और ईरान के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। उन्होंने फारसी भाषा को दरबारी भाषा बनाए रखा। विद्वान उमर खय्याम, अल-ग़ज़ाली और निज़ाम अल-मुल्क इसी दौर में उभरे। इस काल को फारसी-इस्लामी संस्कृति का स्वर्ण युग माना जाता है।
13वीं सदी में मंगोल शासक चंगेज खान ने ईरान पर धावा बोला। 1219 से 1260 के बीच भयंकर तबाही मची। निशापुर जैसे शहर में लाखों लोगों की हत्या हुई। बाद में हुलागू खान ने अब्बासी खलीफा को मारकर इलखानिद साम्राज्य की स्थापना की। हालांकि, मंगोल भी फारसी संस्कृति को अपनाने लगे और इस्लाम स्वीकार किया।
22 सितंबर 1980 को इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन ने ईरान पर हमला कर दिया। यह आठ साल तक चलने वाला एक भयंकर युद्ध था। लाखों बेगुनाह मारे गए। दिलचस्प बात यह रही कि इस दौरान इजरायल ईरान के साथ खड़ा था। 7 जून 1981 को इजरायल ने बगदाद के पास इराक के न्यूक्लियर रिएक्टर पर हमला किया, जिससे वह पूरी तरह बर्बाद हो गया।
इतिहास ने यह साबित किया है कि राजनीति में कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता। "यहां न कोई स्थाई दोस्त है, न ही दुश्मन। सबके अपने हित हैं।" कभी अमेरिका ईरान के खिलाफ इराक के साथ था, आज वही अमेरिका ईरान को घेरने की रणनीति बना रहा है। कल को यही देश दोस्त भी बन सकते हैं।