मजदूरी को छोड़ शुरू किया किचन गार्डन, जैविक खेती से किसान की चमकी किस्मत Kitchen garden Plant – अभी पढ़ें ये खबर
Rahul Mishra (CEO) June 20, 2025 03:26 PM

किचन गार्डन प्लांट: कहते हैं कि अगर मन में कुछ कर दिखाने का जज़्बा हो, तो परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, इंसान मंज़िल पा ही लेता है. हरियाणा के करनाल जिले के सुरेंद्र सिंह की कहानी कुछ ऐसी ही है. पहले मजदूरी कर पेट पालने वाले सुरेंद्र, अब अपने किचन गार्डन से जैविक सब्जियां उगाकर खुद को आत्मनिर्भर बना चुके हैं.

2020 से शुरू किया बदलाव का सफर

सुरेंद्र ने बताया कि साल 2020 में डॉक्टर राजेंद्र सिंह के मार्गदर्शन में उन्होंने किचन गार्डन की शुरुआत की. शुरुआत में मजदूरी के साथ-साथ जैविक खेती को अपनाया, और धीरे-धीरे इसे एक नियमित काम बना लिया. आज वे करनाल जिले के 100 से ज्यादा गांवों में महिलाओं को किचन गार्डन के लिए जागरूक कर रहे हैं.

खुद के लिए उगाते हैं जहरी मुक्त सब्जियां

सुरेंद्र का कहना है कि वह पिछले दो वर्षों से अपने किचन गार्डन में जैविक तरीकों से सब्जियां उगा रहे हैं, जिससे हर महीने रसोई का खर्च काफी कम हो गया है. सबसे बड़ी बात यह है कि उनके परिवार को जहर मुक्त और ताजी सब्जियां मिल रही हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद हैं.

प्राकृतिक खेती की ली विशेषज्ञ ट्रेनिंग

सुरेंद्र ने कुरुक्षेत्र, करनाल NDRI और घरौंडा स्थित सब्जी उत्कृष्ट केंद्र से प्राकृतिक खेती की ट्रेनिंग ली है. उनके प्रयासों को पहचान भी मिली. 29 मई से 12 जून 2024 तक चले ‘विकसित भारत कृषि अभियान’ के तहत NDRI के डायरेक्टर खुद उनके गार्डन को देखने पहुंचे.

200 गज के प्लॉट में उगाई हल्दी और सब्जियां

सुरेंद्र ने अपने 200 गज के प्लॉट में 60 गज हिस्से में हल्दी की खेती शुरू की और उसी कमाई से एक इलेक्ट्रिक स्कूटी खरीदी. इसके अलावा वे शिमला मिर्च, घीया, तोरी और गन्ने की भी खेती कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि उन्होंने हल्दी की तीन किस्में, जिनमें से एक केरल से मंगाई गई, लगाई हैं.

काली हल्दी से उम्मीदें और भी ज्यादा

इस बार सुरेंद्र ने काली हल्दी भी लगाई है, जो औषधीय गुणों के कारण अधिक लाभदायक मानी जाती है. उनका मानना है कि यदि उचित देखभाल की गई, तो इससे अच्छी आमदनी हो सकती है.

मजदूरी आज भी करते हैं, लेकिन सब्जी से बदल गई जिंदगी

सुरेंद्र बताते हैं कि वे आज भी जरूरत पड़ने पर मजदूरी करते हैं, लेकिन अब उन्हें सब्जी के लिए पैसे नहीं खर्च करने पड़ते. उनकी जरूरत की सब्जियां अब उनके अपने गार्डन से मिलती हैं. कभी-कभी पड़ोसियों को भी मुफ्त में सब्जी दे देते हैं.

बिक्री से भी हो रही कमाई

उन्होंने बताया कि कई जगहों पर सब्जी बेचते हैं और वैज्ञानिकों के संपर्क में रहकर उन्हें सीधे घर तक ऑर्डर भी मिलते हैं. इससे उन्हें अच्छे दाम मिलते हैं और स्वास्थ्य भी बेहतर बना रहता है.

अब ठेके पर जमीन लेकर करना चाहते हैं विस्तार

सुरेंद्र अब ठेके पर जमीन लेकर अपने किचन गार्डन को बड़े स्तर पर शुरू करने की योजना बना रहे हैं. वे चाहते हैं कि उनका सपना भी सरकारी स्तर पर पहचाना जाए, ताकि और लोग इससे प्रेरणा लें.

कोरोना काल बना बदलाव की वजह

डॉ. राजेंद्र सिंह, जिन्होंने सुरेंद्र को मार्गदर्शन दिया, बताते हैं कि कोरोना काल में जब रोजगार की स्थिति बिगड़ी, तब उन्होंने महिलाओं को खेती के लिए बीजों के पैकेट बांटे. इससे खर्च भी बचा और घर के सभी सदस्य खेती से जुड़ पाए.

100 से ज्यादा महिलाएं कर रही हैं किचन गार्डनिंग

डॉ. राजेंद्र बताते हैं कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं खेती में अधिक रुचि ले रही हैं. वर्तमान में लगभग 100 महिलाएं छोटी जगहों पर सब्जियां उगा रही हैं, जिससे उन्हें न केवल संपूर्ण पोषण मिल रहा है, बल्कि आर्थिक रूप से भी मदद मिल रही है.

प्रेरणास्रोत बन रहे हैं सुरेंद्र

आज सुरेंद्र सिंह की कहानी सिर्फ खुद की नहीं, बल्कि उन हजारों लोगों की प्रेरणा बन गई है, जो सोचते हैं कि कम संसाधनों में कुछ बड़ा नहीं किया जा सकता. उन्होंने यह साबित किया है कि मेहनत, प्रशिक्षण और संकल्प से कोई भी अपना सपना साकार कर सकता है.

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