साधना से लेकर आध्यात्मिक शांति तक… आत्मा से साक्षात्कार करता है योग
TV9 Bharatvarsh June 21, 2025 01:42 PM

आज यूरोप, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया आदि सभी जगह स्कूलों में योग सिखाया जाता है. 2014 की 11 दिसंबर को संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाए जाने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी. 21 जून इसलिए भी क्योंकि इस तिथि को उत्तरी गोलार्ध में दिन सबसे लंबा होता है. योग भी जीवन को लंबा करता है. इसलिए वैश्विक स्तर पर योग दिवस मनाए जाने के लिए 21 जून की तिथि तय हुई.

योग की उत्पत्ति चूंकि भारत से हुई. महर्षि पतंजलि को योग का जनक माना जाता है. इसलिए अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का प्रस्ताव भारत ही संयुक्त राष्ट्र में लाया था और 90 दिन में ही 177 देशों ने इस प्रस्ताव पर सहमति दी. पहला योग दिवस 21 जून 2015 को आयोजित हुआ था. तब से यह हर वर्ष 21 जून को यह दिवस मनाया जाता है.

शरीर और मन के बीच सामंजस्य

योग युज से बना है अर्थात् जुड़ना, मिलना, एकजुट होना. मनुष्य और प्रकृति तथा शरीर एवं मन के बीच सामंजस्य ही योग है. योग का संबंध भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद से भी है क्योंकि योग शरीर में वात, पित्त और कफ को नियंत्रित करता है. संस्कृत में कहा गया है, यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे यानी जैसा हमारा शरीर है वैसा ही ब्रह्मांड अथवा सृष्टि है. अध्यात्म का इतनी गहराई के साथ अध्ययन भारत के ऋषि-मुनियों ने किया है. अब तो आधुनिक वैज्ञानिक भी कहते हैं, ब्रह्मांड में पृथ्वी जैसा ही क्वांटम वातावरण है, यानी मनुष्य के शरीर और ब्रह्मांड में एकरूपता है. जो भी प्रकृति की इस समानता को अनुभव करने लगता है तब उसे योगी कहा जाता है. महाभारत में कृष्ण को योगेश्वर कहा गया है. पुराणों में भगवान शिव को आदियोगी बताया गया है. आत्मा से साक्षात्कार करना योग का उद्देश्य है.

चित्त की वृत्तियों का निरोध योग है

टोरंटो में योग सेंटर चला रहे आचार्य संदीप त्यागी बताते हैं, कि योग का दर्शन है- योगश्चित्तवृत्ति निरोधः अर्थात् चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है. चित्ति का तात्पर्य चेतना से है अर्थात् जहां पर चित्ति की उपस्थिति हो, जहां चित्ति रहती हो उस क्षेत्र को चित्त कहा जाता है. चित्त में रहने वाली वृत्ति अर्थात् वृत्त में या गोलाकार स्थिति में रहने वाली प्रकृति /स्वभाव वस्तु या स्थिति को वृत्ति कहते हैं. अभिप्राय यह है कि चेतनाक्षेत्र में रहने वाली वृत्तियों के निरोध को योग कहते हैं. अवरोध या विरोध बाहरी दिशा या तत्वों के द्वारा होता है लेकिन जो रुकावट हमारे अपने भीतर से ही उपजती यहां उसको निरोध कहते हैं. अपने भीतर से ही चित्त की वृत्तियों के लिए जब रुकावट उत्पन्न हो जाती है तो उसे योग कहते हैं.

वृत्तियां बुद्धि का ह्रास करती हैं

यहां पर वृत्तियां चेतना को अधोपतन की ओर ले जाने वाली, हमारे भीतर ही मन व इन्द्रियों के असन्तुलन से पैदा होने वाली, बुद्धि के ह्रास से उत्पन्न होने वाली विकृति से है. इसके कारण सब कुछ असन्तुलित हो जाने से साधक स्वयं को संभाल नहीं पाता है. इसीलिए गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि समत्त्वं योगमुच्यते अर्थात् समत्त्व (समकक्षता) या सन्तुलन ही योग है. आकाश में उड़ते हुए युद्धक हवाई जहाज़ में तेल भरने के लिए आए दूसरे हवाई जहाज़ की स्पीड भी उतनी ही होगी जितनी कि युद्धक विमान की होगी. रिफ्यूलिंग संभव तब ही संभव है. ठीक उसी प्रकार समकक्षता को समझने की आवश्यकता है समकक्षता का तात्पर्य समानता बिल्कुल भी नहीं होता है. समानता बराबरी का भाव है जबकि समकक्षता एकदम भिन्न.

महर्षि हिरण्यगर्भ योग के संस्थापक

ध्यान रखा जाए कि योग के प्रथम या आदि संस्थापक महर्षि हिरण्यगर्भ हैं. महर्षि पतंजलि योग के प्रवर्तक हैं विस्तारक या उद्धारक हैं आरम्भ करने वाले नहीं हैं. योग प्राचीन भारतीय पद्धति है. महाभारत, भगवत् गीता, महापुराण में ‘हिरण्यगर्भ’ को योग का वक्ता कहा गया है. हिरण्य का अर्थ होता है सोना. इसका भावार्थ सोने के समान चमकने वाली किसी भी वस्तु, व्यक्ति या स्थान से है. गर्भ का तात्पर्य है निर्माण केन्द्र अर्थात् स्वर्ण के समान आभा के निर्माण का केन्द्र जिसको सूर्य, आत्मा, तेजस् अर्थात् भगवान् शिव, महर्षि हिरण्यगर्भ आदि कहा जा सकता है.

सांख्यस्य वक्ता कपिल: परमर्षि स उच्यते।
हिरण्यगर्भो योगस्य वक्ता नान्य: पुरातन:।।

वेदों में भी योग का उल्लेख

योग का उद्भव वेदों से है. हिरण्यगर्भ ही योग के आदि प्रवर्तक हैं. श्रुति परम्परा के अनुसार भगवान शिव, योग परंपरा के आदि गुरु हैं. श्रीमद् भगवद्गीता में भगवान कृष्ण ने योग की परंपरा के बारे में बताया है कि- मैंने यह योग सूर्य को सूर्य ने मनु को और मनु ने राजा इक्ष्वाकु को योग विद्या से अवगत कराया. पुनः श्रीकृष्ण ने योग का उपदेश अर्जुन को दिया. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने हिमालय में स्थित कांति सरोवर झील के तट पर योग का संपूर्ण ज्ञान सप्त ऋषियों को दिया था. इन सात ऋषियों ने योग का ज्ञान पूरी दुनिया में फैलाया. मज़े की बात कि एशिया, अफ़्रीका, अमेरिका, आस्ट्रेलिया का आदिवासी समाज भी योग की क्रियाएं अपनी परंपरा में करता है.

जैन परंपरा में त्रिगुप्ति का सिद्धांत

लाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर अनिकेत जैन बताते हैं कि जैन परंपरा में त्रिगुप्ति का सिद्धांत योग विद्या का प्राण है. मन गुप्ति, वचन गुप्ति और काय गुप्ति अर्थात् मन वाणी और काया की क्रिया पर पूर्ण नियंत्रण. शास्त्रों में मन के संदर्भ में कहा गया है- मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः। बन्धाय विषयासक्तं मुक्त्यै निर्विषयं स्मृतम्॥ अर्थात्- मन ही मानव के बन्ध और मोक्ष का कारण है, वह विषयासक्त हो तो बन्धन कराता है और निर्विषय हो तो मुक्ति दिलाता है.

प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव योग विद्या के प्रवर्तक

जैन परंपरा के अनुसार प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने सर्वप्रथम योग का उपदेश दिया. भगवान ऋषभदेव योग विद्या के आदि प्रवर्तक माने जाते हैं. उसहो जोगो उत्तं, पढ़मो कारीअ आसणतवझाणम, लहीअ सुद्धाप्पं य, अप्पा मे संवरो जोगों अर्थात् प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने सर्वप्रथम योग विद्या का उपदेश दिया। आसन, ताप, ध्यान किया और शुद्ध आत्मा को प्राप्त किया. तथा उपदेश दिया कि आत्मा ही संवर और योग है.

स्वाभाविक अभिव्यक्ति में अवरोध

डॉ. अनिकेत जैन इसकी व्याख्या करते हैं कि वर्तमान में डिप्रेशन एक ऐसी बीमारी है जिसका गहरा संबंध हमारे मन और अवचेतन मन से है. यह बीमारी एक दिन में विकसित नहीं होती. इसमें एक लंबा समय लगता है. जब यह विकराल रूप धारण कर लेती है तब हमें थोड़ा पता चलता है और पूरा पता तब चलता है जब इसके दुष्प्रभाव झेलने में आते हैं. इसके हजारों कारण हैं. उनमें से एक कारण है असहज जीवन को ही सहज समझने की लगातार भूल. डिप्रेशन की अनेक वजहों में एक बड़ी वजह स्वाभाविक अभिव्यक्ति में आने वाली लगातार कमी भी है. आपको जब गुस्सा आ रहा हो और आप सिर्फ इसीलिए अभिव्यक्त न कर पाएं कि कोई फ़ोन रिकॉर्ड कर लेगा, विडियो बना लेगा. सीसीटीवी में कैद हो जायेगा. ये सब डिप्रेशन के कारण हैं.

बौद्धों में शील, समाधि और प्रज्ञा ही योग

बौद्ध दर्शन में योग साधना की एक पद्धति है. इससे मन स्थिर होता है और आध्यात्मिक शांति मिलती है. शील, समाधि और प्रज्ञा ही योग है. वहां ध्यान को प्रमुखता दी जाती है. बौद्ध धर्म के अनुसार जीवन दुःख है और दुःख से मुक्ति योग दिलाता है. इसलिए उनके यहां योग त्रिरत्न है. बौद्ध धर्म में ध्यान का बहुत महत्त्व है. विपश्यना योग केंद्रों में ध्यान पर ही जोर दिया जाता है. दुनिया भर में जितनी भी बुद्ध प्रतिमाएं मिली हैं, उन सब में भगवान बुद्ध ध्यानमग्न हैं. बुद्धचर्या में जो अष्टांग मार्ग है, वह योग के आठ अंग हैं. उनके यहाँ योग से निर्वाण की प्राप्ति होती है. अष्टांग मार्ग के माध्यम से बौद्ध साधक इच्छाओं का शमन करता है. दिमाग़ एकाग्र होता है और मन पर नियंत्रण रहता है.

स्वामी विवेकानंद योग को विश्व के समक्ष लाए

आधुनिक काल में स्वामी विवेकानंद ने योग को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता दिलवाई. 1893 में जब वे शिकागो की धर्म संसद में गए तब उन्होंने योग की व्यापकता को विश्व के धर्म गुरुओं के समक्ष रखा था. सभी लोग उनके व्याख्यान से प्रभावित हुए. तिरुमलाई कृष्णमाचार्य ने 20 वीं सदी में योग की उपयोगिता और क्रियाएं बताईं. उन्हें आधुनिक योग का जनक कहा जाता है. महर्षि रमण, महेश योगी, परमहंस योगानंद, वीकेएस आयंगर का भी योग को जनता के समक्ष लाने में बड़ा योगदान है. 21 वीं सदी की शुरुआत में बाबा रामदेव ने योग को आम जनता के बीच लोकप्रिय बनाया. योग की इस लोकप्रियता के चलते ही यूनस्को ने हर वर्ष 21 जून को योग दिवस मनाने का आह्वान किया.

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