व्हाट्सएप चैट साक्ष्य: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में पति को पत्नी के व्हाट्सएप चैट को फैमिली कोर्ट में सबूत के रूप में पेश करने की अनुमति दी है. इससे पहले फैमिली कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे गलत बताया. कोर्ट ने कहा कि गोपनीयता का अधिकार पूर्ण नहीं होता, और धारा 14 के अनुसार यदि चैट प्रासंगिक हो तो उसे स्वीकार किया जाना चाहिए.
कोर्ट ने साफ कहा कि अगर हर निजी जानकारी को गोपनीयता के नाम पर खारिज कर दिया जाए, तो फैमिली कोर्ट अधिनियम की धारा 14 का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा. फैमिली कोर्ट को विवाह, तलाक, बच्चों की कस्टडी जैसे संवेदनशील मामलों में प्रासंगिक साक्ष्य को महत्व देना चाहिए.
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि गोपनीयता का अधिकार मौलिक है लेकिन यह निरपेक्ष नहीं है. जब न्याय के लिए किसी साक्ष्य की जरूरत हो और वह मामले से सीधे जुड़ा हो, तो वह कोर्ट में पेश किया जा सकता है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अवैध तरीकों से एकत्र साक्ष्य भी स्वीकार्य हो सकते हैं, यदि वे मामला सुलझाने में सहायक हों.
मामले की शुरुआत 2016 में हुई शादी और फिर 2017 में बच्ची के जन्म से होती है. पति ने पत्नी पर व्यभिचार और क्रूरता का आरोप लगाते हुए हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत तलाक का मुकदमा दायर किया. इसके समर्थन में उसने पत्नी की व्हाट्सएप चैट को सबूत के तौर पर पेश करने की मांग की.
पति ने बताया कि उसने एक ऐसा मोबाइल एप्लिकेशन इंस्टॉल किया था, जिससे पत्नी की चैट्स अपने आप उसके फोन पर फॉरवर्ड हो जाती थीं. उसने दलील दी कि यह चैट्स दिखाती हैं कि पत्नी के किसी तीसरे व्यक्ति से अवैध संबंध हैं.
पत्नी की ओर से दलील दी गई कि पति ने बिना सहमति मोबाइल में ऐप इंस्टॉल किया, जो पूरी तरह गैरकानूनी है. यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है. इसलिए इस तरह के अवैध तरीके से जुटाए गए सबूत को कोर्ट में स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए.
पत्नी के वकील ने यह भी कहा कि यह मामला सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 43, 66 और 72 का उल्लंघन करता है, जो कि डाटा चोरी और बिना अनुमति डिवाइस में घुसपैठ से संबंधित है.
पति के वकील ने कहा कि फैमिली कोर्ट अधिनियम की धारा 14 इस बात की अनुमति देता है कि प्रासंगिक साक्ष्य, चाहे वे भारतीय साक्ष्य अधिनियम में स्वीकार्य हों या नहीं, फैमिली कोर्ट में मान्य हो सकते हैं. इस मामले में व्हाट्सएप चैट सीधे व्यभिचार से जुड़ी हुई हैं.
हाई कोर्ट ने आर.एम. मलकानी बनाम महाराष्ट्र राज्य और राज्य बनाम नवजोत संधू केस का हवाला दिया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अवैध तरीकों से प्राप्त टेप रिकॉर्डिंग को भी सबूत के रूप में स्वीकार किया था. कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य की प्रासंगिकता ज्यादा अहम है, न कि उसे किस तरीके से इकट्ठा किया गया.
अंततः हाई कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट में किसी भी सबूत की स्वीकार्यता का मापदंड उसकी प्रासंगिकता है, न कि गोपनीयता की आपत्ति. अगर चैट्स पत्नी के आचरण को उजागर करती हैं और मुकदमे से जुड़ी हैं, तो उन्हें पेश किया जा सकता है.