ब्रिटिश रेलवे ट्रैक: भारत को स्वतंत्र हुए 77 साल से अधिक समय बीत चुके हैं, लेकिन देश में एक ऐसा रेलवे ट्रैक मौजूद है जिस पर आज भी भारत सरकार का नहीं बल्कि ब्रिटेन की एक प्राइवेट कंपनी का अधिकार है. यह ऐतिहासिक ट्रैक महाराष्ट्र में स्थित ‘शकुंतला रेलवे ट्रैक’ है, जो आज भी ब्रिटिश कालीन व्यवस्था के अधीन है.
शकुंतला रेलवे ट्रैक लगभग 190 किलोमीटर लंबा है और यह अमरावती से मुर्तजापुर तक फैला हुआ है. अंग्रेजों के शासनकाल में महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में कपास की खेती होती थी और उस कपास को मुंबई पोर्ट तक पहुंचाने के लिए इस ट्रैक का निर्माण किया गया था.
इस ट्रैक का निर्माण ब्रिटेन की ‘क्लिक निक्सन एंड कंपनी’ ने करवाया था, जिसके लिए उन्होंने सेंट्रल प्रोविंस रेलवे कंपनी (CPRC) की स्थापना की. 1903 में शुरू हुआ निर्माण कार्य 1916 में पूरा हुआ. यह एक स्टीम इंजन पर आधारित संकीर्ण गेज रेलवे ट्रैक था, जो बाद में डीजल इंजन में बदला गया.
इस ट्रैक पर चलने वाली ट्रेन को ‘शकुंतला पैसेंजर’ कहा जाता था. पहले इस ट्रेन में केवल 5 डिब्बे होते थे और इसे स्टीम इंजन से चलाया जाता था. 1994 के बाद इसमें डीजल इंजन लगाया गया और बोगियों की संख्या भी 7 तक कर दी गई. आज भी इस रूट पर मौजूद स्टेशन, सिग्नल, और अन्य संरचनाएं ब्रिटिश काल की याद दिलाती हैं.
यह ट्रेन अमरावती से मुर्तजापुर के बीच करीब 6-7 घंटे का सफर तय करती थी और अचलपुर, यवतमाल समेत कुल 17 स्टेशनों पर रुकती थी. इस क्षेत्र के लोगों के लिए यह ट्रेन एक जीवनरेखा जैसी थी.
जब भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ, तब भी इस ट्रैक का स्वामित्व ब्रिटिश कंपनी के पास ही रहा. भारतीय रेलवे ने इस कंपनी के साथ एक समझौता किया, जिसके तहत हर साल उसे रॉयल्टी का भुगतान किया जाता है. रिपोर्ट्स के अनुसार, हर वर्ष करीब ₹1.20 करोड़ की रॉयल्टी ब्रिटेन स्थित कंपनी को दी जाती है.
भारतीय रेलवे ने इस ट्रैक को खरीदने के लिए कई बार प्रस्ताव दिए, लेकिन आज तक इसपर कोई सहमति नहीं बन पाई. इस कारण अब तक यह ट्रैक ब्रिटिश कंपनी के स्वामित्व में ही बना हुआ है.
ट्रैक की खस्ताहाल स्थिति के कारण 2020 में शकुंतला पैसेंजर का संचालन बंद कर दिया गया. इस ट्रैक पर ट्रेन की रफ्तार महज 20 किमी प्रति घंटे थी. पिछले 60 वर्षों से इस ट्रैक की कोई मरम्मत नहीं करवाई गई, जिससे इसका संचालन मुश्किल हो गया.
इस क्षेत्र के हजारों लोगों के लिए शकुंतला ट्रेन ही मुख्य यातायात साधन थी. अब स्थानीय लोगों की मांग है कि इस ट्रेन को फिर से शुरू किया जाए, ताकि उन्हें आवागमन की सुविधा मिल सके और ऐतिहासिक धरोहर भी बनी रहे.
भारत में आजादी के बाद भी अंग्रेजों के कब्जे में यह ट्रैक एक विरासत और विडंबना दोनों बन चुका है. जहां एक ओर यह ब्रिटिश शासन के इंजीनियरिंग कौशल को दर्शाता है, वहीं दूसरी ओर यह सवाल उठाता है कि क्यों अब तक इसे भारत सरकार के अधीन नहीं लाया गया?