शहरों की कुछ गलियों में स्वाद की ऐसी कहानियाँ छुपी होती हैं, जो पीढ़ियों तक याद रखी जाती हैं। बनारस के लंका इलाके में ‘चाची की कचौड़ी’ की दुकान सिर्फ एक दुकान नहीं, बल्कि हिम्मत, स्वाद और विरासत की एक जीती-जागती मिसाल है।
यह कहानी आज से 50 साल पहले एक महिला के संघर्ष से शुरू हुई थी। पति के निधन के बाद जब परिवार की ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर आई, तो उन्होंने अपनी रसोई के हुनर को ही अपनी ताकत बनाया। एक छोटे से ठेले पर उन्होंने गरमा-गरम कचौड़ी और आलू की सब्ज़ी बेचना शुरू किया। उनका स्वाद इतना अनोखा और घर जैसा था कि धीरे-धीरे पूरा बनारस उनका दीवाना हो गया और प्यार से लोग उन्हें ‘चाची’ बुलाने लगे।
‘चाची की कचौड़ी’ का स्वाद ऐसा है कि यह केवल आम लोगों तक ही सीमित नहीं रहा। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन तक, कई बड़ी हस्तियों ने इस सादे से स्वाद का लुत्फ़ उठाया है। कहते हैं कि जो भी एक बार यहाँ की कचौड़ी खा लेता है, वह इसका स्वाद कभी नहीं भूल पाता।
आज चाची तो नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत को उनके बेटे और पोते उसी लगन और स्वाद के साथ आगे बढ़ा रहे हैं। यह दुकान आज भी बनारस की पहचान का एक अहम हिस्सा है, जो हमें सिखाती है कि सच्ची लगन और स्वाद कभी पुराने नहीं होते।