नई दिल्ली। इस्राइल और ईरान के बीच बीते 11 दिनों से जारी संघर्ष का असर अब पूरे पश्चिम एशिया में दिखने लगा है। खासकर अमेरिका की तरफ से ईरान में घुसकर उसके परमाणु ठिकानों को निशाना बनाने की घटना के बाद तनाव अपने चरम पर है। जहां अमेरिका का दावा है कि उसने ईरान के इन परमाणु केंद्रों को तबाह कर दिया तो वहीं ईरानी सेना और सरकार ने कहा था कि इस हमले के बाद पलटवार का पूरा अधिकार उसके पास है। जिसके बाद सोमवार देर रात ईरान ने कतर, इराक और सीरिया में मौजूद सैन्य ठिकानों को निशाना बनाया है।
इस्राइल-अमेरिका और ईरान के बीच शुरू हुए इस संघर्ष और परमाणु ठिकानों पर हुए जबरदस्त हमलों के बाद तेहरान की धमकियों को काफी गंभीरता से लिया जा रहा है। अमेरिका ने इसके चलते ही विदेश जा रहे अपने नागरिकों के लिए एडवायजरी जारी की है। ईरान की ड्रोन-मिसाइलों और उसकी खुफिया क्षमताओं को देखा जाए तो यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले दिनों में पूरे पश्चिम एशिया में हालात बिगड़ सकते हैं।
इस बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर ईरान के पास अमेरिका के खिलाफ कार्रवाई के क्या-क्या विकल्प मौजूद हैं? सैन्य स्तर पर ईरान की तरफ से अमेरिका को कितना नुकसान पहुंचाया जा सकता है? अगर ईरान अपने सैन्य अभियान को नहीं बढ़ाता तो वह अमेरिका के खिलाफ किस तरह से सीधी कार्रवाई कर सकता है?
अमेरिका पर हमले के क्या-क्या विकल्प?
ईरान की तरफ से अब तक यह नहीं बताया गया है कि वह अमेरिका पर किस तरह से पलटवार कर सकता है। हालांकि, उसके पास अमेरिका को जवाब देने के लिए कई तरीके हैं। इनमें- पश्चिम एशिया में तैनात अमेरिकी सैन्य ठिकानों पर हमले का विकल्प सबसे बड़ा है। इसके अलावा होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करना, पश्चिम एशियाई क्षेत्र में अपने सहयोगियों, जिन्हें ईरान की प्रतिरोध की धुरी (Axis of Resistance) को सक्रिय करना, या परमाणु हथियारों को विकसित करना अमेरिका के खिलाफ बड़ा कदम हो सकता है।
सैन्य स्तर पर अमेरिका को कितना नुकसान पहुंचा सकता है ईरान?
ईरान के रेवोल्यूशनरी गार्ड्स कोर (आईआरजीसी) ने रविवार को परमाणु ठिकानों पर अमेरिकी हमले के बाद कहा था कि उसने पहचान कर ली है कि अमेरिकी एयरक्राफ्ट कहां से आए थे और अब वह जगहें हमारी निगरानी में हैं। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि अमेरिका के पश्चिम एशिया में मौजूद सैन्य ठिकाने मजबूती का नहीं, आसानी से भेदे जा सकने वाले बिंदु हैं।
गौरतलब है कि पश्चिम एशिया में अमेरिका के कई सैन्य ठिकाने हैं। इनमें सबसे प्रमुख ठिकाने कुवैत, बहरीन, कतर और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) में हैं। यह सभी देश ईरान से सिर्फ फारस की खाड़ी के फासले पर मौजूद हैं और इस्राइल के मुकाबले ज्यादा नजदीक हैं। बताया जाता है कि इन सैन्य ठिकानों पर अमेरिका की उन्नत हवाई रक्षा प्रणाली तैनात है, हालांकि ईरान की सैन्य ताकत और उसके पास मिसाइल-ड्रोन्स की भरमार होने और प्रतिक्रिया के लिए कम समय होने की वजह से यह सिस्टम नाकाम भी हो सकते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि करीब दो हजार किलोमीटर दूर इस्राइल भी ईरान के एक साथ दागे गए ड्रोन्स और मिसाइलों को रोकने में नाकाम रहा है।
पश्चिम एशिया में कहां-कितने अमेरिकी सैनिक मौजूद?
अमेरिका की तरफ से पश्चिम एशिया में पहली बार जुलाई 1958 में सैनिक तैनात किए गए थे। तब अमेरिका ने लेबनान संकट को रोकने के लिए बेरूत में अपनी सेनाएं भेजी थीं। लेबनान संकट के बढ़ने के दौरान वहां 15 हजार मरीन्स और सैनिक तैनात थे।
2025 के मध्य तक पश्चिमी एशिया में अमेरिका के 40 हजार से 50 हजार सैनिक मौजूद हैं। इनमें से कुछ क्षेत्र में पहुंचे युद्धपोत और सैन्य बेड़े का हिस्सा हैं। अमेरिकी थिंक टैंक काउंसिल ऑफ फॉरेन रिलेशंस के मुताबिक, मौजूदा समय में अमेरिका पश्चिम एशिया में स्थायी और अस्थायी मिलाकर 19 लोकेशन पर सैन्य ठिकाने स्थापित कर चुका है। इनमें से आठ स्थायी बेस हैं, जो कि बहरीन, मिस्र, इराक, जॉर्डन, कुवैत, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में हैं।
1. अल-उदैद एयरबेस, कतर
अमेरिका का पश्चिम एशिया में सबसे बड़ा सैन्य बेस 1996 में स्थापित किया गया था। यह बेस 60 एकड़ के इलाके में फैला है और यहां एक बार में 100 एयरक्राफ्ट खड़े किए जा सकते हैं। इस बेस में करीब 10 हजार सैनिक भी तैनात हैं, जो कि अमेरिकी सेंट्रल कमांड (CENTCOM) का हिस्सा हैं और इराक, सीरिया और अफगानिस्तान में अमेरिकी सैन्य अभियानों की रीढ़ रहे हैं।
2. नेवल सपोर्ट एक्टिविटी (एनएसए), बहरीन
अमेरिका का बहरीन में मौजूद यह नौसैनिक बेस एक समय ब्रिटिश नौसेना के ठिकाने- एचएमएस जुफैर पर बना है। इस बेस में अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के 9000 कर्मी तैनात हैं। इनमें सैनिक और नागरिक अधिकारी भी शामिल हैं। यह बेस अमेरिकी नौसेना के पांचवें बेड़े का ठिकाना है। इसके जरिए अमेरिका क्षेत्र में अपने जहाजों, एयरक्राफ्ट्स और बाकी छोटे-छोटे ठिकानों की निगरानी और आपूर्ति करता है।
3. कैंप आरिफजान, 4. अली अल-सलेम एयरबेस, कुवैत
कुवैत में मौजूद अमेरिका का यह कैंप अरिफजान कुवैत के मुख्य शहर से 55 किलोमीटर दूर स्थित है। इसका निर्माण 1999 में किया गया था और यह मुख्यतः लॉजिस्टिक्स (परिवहन), सप्लाई (आपूर्ति) और कमांड हब के तौ पर इस्तेमाल किया जाता है। पश्चिम एशिया में जारी अमेरिकी अभियानों के लिए यह CENTCOM के अंतर्गत आता है।
वहीं अली अल-सलेम बेस में अमेरिका की 386वीं एयर एक्सपीडशनरी विंग तैनात है, जिसे अलग-अलग देशों में एयरलिफ्ट अभियान और संघर्ष के दौरान हमले के लिए हथियार पहुंचाने को तैनात किया जाता है। अमेरिका ने कुवैत में ही अपने खतरनाक एमक्यू-9 रीपर ड्रोन्स को तैनात किया है।
5. अल-दाफरा एयरबेस, संयुक्त अरब अमीरात
अमेरिका के खुफिया और जासूसी मिशनों के लिए यूएई में मौजूद यह सैन्य ठिकाना काफी अहमियत रखता है। इसके अलावा इस एयरबेस पर अमेरिका ने हवाई हमलों के लिए कमांड सेंटर स्थापित किया है। यहां अमेरिका के सबसे आधुनिक एफ-22 रैप्टर स्टेल्थ फाइटर तैनात हैं। इसके अलावा कई निगरानी विमान, ड्रोन्स और अवाक्स भी इसी बेस पर मौजूद हैं।
6. इरबिल, 7. अल-असद एयर बेस, इराक
अमेरिकी वायुसेना इन एयरबेस को हवाई अभियानों के लिए इस्तेमाल करती है। यह ठिकाना उत्तरी इराक और सीरिया में अभियान चलाने के लिए अहम है। अमेरिका इसके जरिए इन क्षेत्रों में मौजूद कुर्दिश लड़ाकों और इराकी सेना की मदद करती है। 2003 से 2011 के बीच इन एयरबेसों पर अमेरिका के 1 लाख 70 हजार सैनिक पहुंच चुके थे। साथ ही इनके अलावा इराक में तब अमेरिका के 505 बेस हुआ करते थे। हालांकि, 2024 के बाद से अब यहां इस्लामिक स्टेट के खिलाफ लड़ने के लिए अमेरिका ने सिर्फ 2500 सैनिक ही छोड़े हैं, जो कि अंतरराष्ट्रीय सेनाओं के साथ अभियान में हिस्सा लेती हैं। ईरान समर्थित समूहों ने गाजा संघर्ष शुरू होने के बाद इस क्षेत्र में मौजूद अमेरिकी सैनिकों को निशाना बनाया था।
8. प्रिंस सुल्तान एयरबेस, सऊदी अरब
सऊदी अरब में स्थित प्रिंस सुल्तान एयरबेस अमेरिका के लिए इराक में अभियान चलाने का एक बेहद अहम जरिया रहा है। यहां अमेरिकी वायुसेना समय-समय पर सक्रिय दिखती है।
1. होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद कर के
अमेरिकी हमले से भड़के ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य (फारस की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ने वाला संकीर्ण समुद्री मार्ग) को नौवहन के लिए बंद करने की धमकी दी है, ताकि अपने दुश्मनों पर दबाव बना सके। सामरिक मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि अगर ऐसा होता है तो भारत और चीन की ऊर्जा खरीद के साथ ही वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर इसका महत्वपूर्ण असर पड़ेगा।
होर्मुज जलडमरूमध्य दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण चोकपॉइंट्स में से एक है, जिसके माध्यम से वैश्विक तेल और गैस आपूर्ति का पांचवां हिस्सा दुनियाभर में पहुंचता है। यह फारस की खाड़ी को अरब सागर और हिंद महासागर से जोड़ता है। सबसे संकरे इलाके में लगभग 33 किमी चौड़ी यह संकरी नहर ईरान (उत्तर) को अरब प्रायद्वीप (दक्षिण) से अलग करती है।
जलमार्ग में शिपिंग लेन (जहाज के लिए मार्ग) और भी संकरी हैं। यह प्रत्येक दिशा में महज 3 किमी चौड़ी है। इससे यह हमलों और बंद होने के खतरों के प्रति संवेदनशील हो जाती है। वैश्विक तेल का लगभग 30 प्रतिशत व दुनिया की एक तिहाई एलएनजी (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) की प्रतिदिन इस जलडमरूमध्य से होकर ढुलाई होती है। इसके बंद होने से वैश्विक आपूर्ति में तत्काल कमी आएगी, जिससे कीमतें बढ़ेंगी।
क्षेत्र में अमेरिका की करीबी महाशक्तियों जैसे- सऊदी अरब, इराक, यूएई, कतर, ईरान और कुवैत से तेल निर्यात का बड़ा हिस्सा इस संकीर्ण जलमार्ग से होकर गुजरता है। एक वक्त था, जब इस पर पश्चिम मुख्य रूप से अमेरिका और यूरोप निर्भर था। इन पर फारस की खाड़ी के ऊर्जा प्रवाह में व्यवधान का सबसे ज्यादा असर पड़ता रहा है।
2. अमेरिकी सहयोगियों को नुकसान पहुंचाकर
ईरान खुद और अपने सहयोगियों के जरिए पश्चिम एशिया में अमेरिका के सहयोगियों को नुकसान पहुंचा सकता है। ईरान इन देशों में प्रमुख तेल और गैस के भंडारों और केंद्रों पर हमले कर सकता है, जिससे अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचना तय है। 2019 में हूतियों ने सऊदी अरब के दो तेल भंडारों पर ड्रोन हमला किया था, जिससे सऊदी का तेल उत्पादन आधा हो गया था और उसे भीषण नुकसान उठाना पड़ा था।
3. पूरे क्षेत्र में अपने सहयोगियों को सक्रिय कर के
ईरान पूरे पश्चिम एशिया में अपनी प्रतिरोध की धुरी (एक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस) को खड़ा करने के लिए जाना जाता रहा है। 7 अक्तूबर 2023 को जब हमास ने इस्राइल पर गाजा पट्टी के जरिए हमला किया था, तब इसके पीछे ईरान की खुफिया जानकारी को ही वजह माना जाता था। इसके बाद कथित तौर पर ईरान की शह पर ही लेबनान से हिज्बुल्ला और यमन से हूतियों ने इस्राइल और लाल सागर में अमेरिकी युद्धपोतों पर जबरदस्त हमले किए।
अब अमेरिका के एक बार फिर ईरान के साथ संघर्ष में शामिल होने से ईरान अपने इन सहयोगियों को फिर से सक्रिय कर सकता है। हिज्बुल्ला और हूतियों के पास ड्रोन्स और मिसाइल के इस्तेमाल की भी खास क्षमता है, जिससे वे अमेरिका को निशाना बना सकते हैं।
4. अलग-अलग देशों में गुपचुप हमलों के जरिए
ईरान के पास फिलहाल ऐसे हथियार नहीं है, जो कि अमेरिका तक पहुंच सकें। ऐसे में अमेरिकी खुफिया एजेंसी एफबीआई ने खतरा जताया है कि ईरान देश में मौजूद अपने स्लीपर सेल्स को सक्रिय कर के उसके लिए बड़ा खतरा पैदा कर सकता है। अमेरिका लंबे समय से ईरान पर चरमपंथी हमले का आरोप लगाता रहा है। इस बार भी अमेरिकी गृह मंत्रालय ने अपने एजेंट्स के जरिए ईरान की किसी भी हरकत पर नजर रखने के लिए निगरानी बढ़ा दी है।
5. परमाणु हथियार की तरफ कदम
अमेरिका की तरफ से परमाणु ठिकानों पर हमले के बाद ईरान ने साफ कर दिया है कि वह अपने कार्यक्रमों को लेकर बातचीत की मेज पर नहीं आएगा। कई विश्लेषकों ने अंदाजा लगाया है कि अमेरिका और इस्राइल के हमलों के बाद ईरान परमाणु संवर्धन को गुप्त रूप से तेज कर सकता है। हाल ही में जब ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अरागची रूस पहुंचे थे तब रूस के प्रमुख नेता और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के करीबी दिमित्री मेदवेदेव ने कहा था कि कई देश ईरान को परमाणु हथियार देने के लिए तैयार हैं। हालांकि, उन्होंने यह खुलासा नहीं किया था कि यह देश कौन से हो सकते हैं।
दूसरी तरफ ईरान ने संकेत दिए हैं कि वह परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) से बाहर हो सकता है। इस संधि के हस्ताक्षरकर्ता देश परमाणु पदार्थों का इस्तेमाल सिर्फ ऊर्जा के लिए कर सकते हैं, न कि हथियार बनाने के लिए। हालांकि, अमेरिकी हमले के बाद ईरान अगर इस संधि से बाहर हुआ तो वह परमाणु संवर्धन कार्यक्रम को आगे बढ़ा सकता है। इससे पहले उत्तर कोरिया भी इस संधि से 2003 में बाहर हो चुका है। इसके तीन साल बाद 2006 में उत्तर कोरिया ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था।