ट्रंप ने युद्धविराम का श्रेय लेते हुऐ कहा कि इजराइल और ईरान लगभग एक साथ मेरे पास आए और शांति की बात कही। ट्रंप ने कहा कि दोनों ही देशों ने इस पल की गंभीरता को पहचाना है। उन्होंने इस घटनाक्रम को देशों ही देशों की जीत के रूप में पेश किया। इसी तरह का श्रेय ट्रंप भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान भी लेने की कोशिश की थी। भारत ने लगातार इसका खंडन किया था, लेकिन पाकिस्तान ने हमेशा ट्रंप के सुर में सुर मिलाया। इसे भी ट्रंप का नोबेल पुरस्कार वाला दांव ही माना जा रहा है। हालांकि वे इसमें कितना सफल होंगे कोई नहीं जानता है। भारत-पाकिस्तान वाले मामले में तो वे मुंह की खा ही चुके हैं। ALSO READ: क्या टूट जाएगा सीजफायर? ईरान ने इजराइल पर फिर दागीं मिसाइलें, चिंता में अमेरिका और इजराइल
ट्रंप ने एक अन्य पोस्ट में कहा था- सभी को बधाई। इजराइल और ईरान के बीच पूरी तरह से सहमति बन गई है कि 6 घंटे के भीतर एक पूर्ण और समग्र युद्धविराम लागू होगा। पहले 12 घंटे ईरान युद्धविराम का पालन करेगा, फिर इजराइल। इसके 24 घंटे बाद यह युद्ध समाप्त माना जाएगा। दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप खुद को दुनिया का 'डीलमेकर' सिद्ध करना चाहते हैं। हालांकि अपनी दूसरी पारी में ट्रंप की शुरुआत ही 'डील' से हुई है। चीन, कनाडा, भारत या फिर कोई और देश हो, वे लगातार ट्रेड डील और टैरिफ की बातें ही कर रहे हैं।
ईरान हुआ आक्रामक : दूसरी ओर, ईरान ने अमेरिकी एयरबेस पर हमले के बाद आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया है। ईरान ने दावा किया है कि ट्रंप ने युद्धविराम करने के लिए 'भीख' मांगी थी। ईरान के सरकारी समाचार चैनल IRINN ने युद्धविराम की घोषणा करते हुए कहा कि कतर में अमेरिकी बेस पर ईरान के सफल हमले के बाद यह सीजफायर लागू किया गया है। हालांकि सीजफायर फायर को ट्रंप की मजबूरी भी माना जा रहा है। वे अपने ही घर में घिरते दिखाई दे रहे थे। ALSO READ: Israel Iran War : ईरान ने कतर में अमेरिकी एयरबेस पर दागी मिसाइलें, कहा- ये हमारा बदला
अमेरिका में ट्रंप की आलोचना : अमेरिकी सीनेटर चक शूमर ने ट्रंप को निशाने पर लेते हुऐ कहा कि किसी भी राष्ट्रपति को देश को एकतरफा युद्ध में झोंकने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। इसी तरह प्रतिनिधि सभा की पूर्व अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी ने कहा कि ट्रंप ने सीनेट की अनुमति के बिना एकतरफा सेना की तैनाती कर संविधान की अनदेखी की है। उन्होंने ट्रंप प्रशासन से इस अभियान के लिए जवाब मांगते हुए कहा कि यह अमेरिकी लोगों के जीवन को खतरे में डालता है।
रूस-चीन की एंट्री ने बढ़ाई मुश्किल : हालांकि ईरान और इजराइल के युद्ध में सबसे अहम मोड़ तब आया, जब रूस और अमेरिका ने ईरान का सपोर्ट कर दिया। चीन पर तो यह भी आरोप लगे थे कि उसने ईरान को कार्गो विमान के जरिए हथियार भेजे हैं। दूसरी ओर, रूस ने भी विदेश मंत्री अरागची के दौरे के समय ईरान को मदद की पेशकश कर दी थी। अमेरिका को इस बात का भी डर था कि यदि रूस ईरान की मदद के लिए आगे आता है तो यह युद्ध और भड़क सकता है। साथ ही मुस्लिम देश भी धीरे-धीरे ईरान के समर्थन में खड़े हो रहे थे। यदि मामला बढ़ता तो अमेरिका को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है।