बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली सरकार ने सामाजिक और आर्थिक न्याय की दिशा में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। राज्य में कराई गई जाति आधारित गणना के आधार पर चिह्नित 94 लाख परिवारों को दो-दो लाख रुपये की उद्यमिता सहायता प्रदान करने के उद्देश्य से विकास आयुक्त की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय कमेटी गठित करने का निर्णय लिया गया है। मंगलवार को मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी गई।
इस ऐतिहासिक निर्णय के तहत सरकार का उद्देश्य आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों को स्वरोजगार और उद्यमिता के लिए प्रोत्साहित करना है, जिससे उनकी आजीविका के साधन मजबूत हों और वे आत्मनिर्भर बन सकें।
कमेटी की जिम्मेदारी:
विकास आयुक्त की अध्यक्षता वाली इस समिति में विभिन्न विभागों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे, जो इस सहायता योजना की रूपरेखा, क्रियान्वयन प्रक्रिया, पात्रता मानदंड और निगरानी प्रणाली तैयार करेंगे। यह समिति यह भी तय करेगी कि किस प्रकार से लाभार्थियों की पहचान की जाए, राशि का वितरण किस माध्यम से किया जाए और योजना के प्रभाव का मूल्यांकन कैसे किया जाए।
जातिगत गणना का उपयोग:
गौरतलब है कि बिहार सरकार द्वारा कराई गई जाति आधारित गणना देश में अपनी तरह की पहली पहल रही है, जिसमें सामाजिक-आर्थिक स्थिति का गहराई से विश्लेषण किया गया है। इस गणना के आंकड़ों का उपयोग कर सरकार अब targeted योजना लागू कर रही है, ताकि विकास का लाभ उन वर्गों तक पहुंच सके जो दशकों से उपेक्षित रहे हैं।
नीतीश कुमार का विजन:
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बार-बार इस बात पर बल दिया है कि सिर्फ सामाजिक न्याय नहीं, बल्कि आर्थिक न्याय भी उतना ही जरूरी है। इस योजना के ज़रिए सरकार युवाओं और गरीब परिवारों को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करना चाहती है ताकि वे किसी पर निर्भर न रहें और अपनी पहचान खुद बना सकें।
राजनीतिक और सामाजिक असर:
यह निर्णय राजनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह बड़ी संख्या में वंचित और पिछड़े वर्गों को सीधा लाभ पहुंचाने वाली योजना है। विपक्ष भले ही इसे आगामी चुनावों से जोड़कर देख रहा हो, लेकिन सरकार का कहना है कि यह निर्णय सामाजिक समावेशन और समग्र विकास के लिए है।