दिल्ली और आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों के फेफड़ों में गंभीर समस्याएं सामने आई है. दिल्ली की एक लैब ने इन इलाकों में रहने वाले युवाओं के फेफड़ों की जांच की है. साल 2024 में की गई इस जांच में करीब 4,000 युवाओं को शामिल किया गया. फेफड़ों की CT स्कैन की जांच में करीब 29% लोगों के फेफड़ों में स्थायी बदलाव पाए गए, जिनमें ब्रॉन्किइक्टेसिस, इम्फाइसीमा, फाइब्रोसिस और ब्रोंकियल वॉल मोटी होने जैसी गंभीर स्थितियां पाई गई हैं.
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह ट्रेंड सिर्फ दिल्ली ही नहीं, बल्कि शहरी भारत की एक व्यापक स्वास्थ्य समस्या को दिखाता है. दिल्ली जैसे शहरों में जहां वायु गुणवत्ता पहले से ही खराब है, वहां स्मोकिंग, इनडोर प्रदूषण और समय पर इलाज न मिल पाने से यह स्थिति और बिगड़ सकती है. ऐसे माहौल में, स्मोकिंग चाहे खुद करें या दूसरों का धुआं लें (पैसिव स्मोकिंग), फेफड़ों की हालत और भी खराब हो सकती है.
यह कोई औपचारिक स्टडी नहीं है, लेकिन डायग्नोस्टिक रिपोर्ट्स के आधार पर एक जरूरी एनालिसिस है. खास बात यह है कि अगर सामान्य इन्फेक्शन और ट्यूमर जैसे मामलों को हटा दिया जाए, तब भी फेफड़ों में बदलाव की संख्या और भी ज्यादा देखी गई. समय पर जांच, धूम्रपान से बचाव, और साफ हवा में सांस लेना हमारी सेहत के लिए बेहद जरूरी है. जवान लोगों में भी फेफड़ों की स्क्रीनिंग और जांच की जरूरत है. कई बार फेफड़ों की बीमारियां बिना लक्षण के बढ़ती हैं और जब तक पता चलता है, तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है.
इन फेफड़ों की बीमारियों के पीछे कई कारण हो सकते हैं:
फेफड़ों की बीमारियों के पीछे कई कारण होते हैं, जो व्यक्तिगत जीवनशैली से लेकर पर्यावरणीय समस्याओं तक फैले होते हैं. फेफड़ों की बीमारियां धीरे-धीरे पनपती हैं और जब तक पता चलता है, तब तक नुकसान हो चुका होता है. इसलिए जरूरी है कि हम इन कारणों को समझें और बचाव करें. नीचे कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं जो फेफड़ों की सेहत को नुकसान पहुंचा सकते हैं:
वायु प्रदूषण
संक्रमण (इन्फेक्शन)
स्मोकिंग या वेपिंग जैसी जीवनशैली की आदतें
पैसिव स्मोकिंग: दूसरों के धुएं के संपर्क में रहना
घर के अंदर का प्रदूषण
सांस की बीमारियों का देर से पता चलना
शहरों में ट्रैफिक, फैक्ट्री और निर्माण कार्यों से निकला धुआं
लैब की रिपोर्ट में बताया गया है कि हर तीन में से एक CT चेस्ट स्कैन में ऐसे बदलाव दिख रहे हैं जो पहले बुजुर्गों में दिखाई देते थे. जैसे कि ब्रॉन्किइक्टेसिस और इम्फाइसीमा. ये ऐसे बदलाव हैं जो अक्सर स्थायी होते हैं और समय पर ध्यान न देने पर आगे चलकर गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा कर सकते हैं.