एक जैसी दिखने वाली कांजीवरम और बनारसी साड़ी में क्या है फर्क? इन 10 प्वाइंट्स से समझें
TV9 Bharatvarsh June 26, 2025 06:42 PM

जब भी पारंपरिक साड़ियों की बात होती है तो बनारसी और कांजीवरम साड़ी का नाम सबसे पहले आता है. दोनों ही बेहद खूबसूरत, रॉयल लुक देने वाली और शादियों या खास मौकों के लिए पहली पसंद मानी जाती हैं. कई बार इनकी चमक, जरी वर्क और डिजाइन इतनी मिलती-जुलती होती है कि पहली नजर में पहचानना मुश्किल हो जाता है कि कौन सी साड़ी बनारसी है और कौन सी कांजीवरम.

खासकर जब बाजार में दोनों की डुप्लीकेट वर्जन भी मिलने लगे हों, तो असली फर्क समझना और भी जरूरी हो जाता है. देखने में एक जैसी लगने वाली ये दोनों साड़ियां असल में अपनी बनावट, बुनाई, डिजाइन और परंपरा के लिहाज से काफी अलग हैं. तो चलिए आज आपको इन दोनों साड़ियों के बीच 10 अंतर बताते हैं ताकि अगली बार आप इन्हें खरीदते समय ये जान सकें कि आप कांजीवरम साड़ी खरीद रही हैं या बनारसी.

इन 10 प्वाइंट से समझे कांजीवरम और बनारसी साड़ी में फर्क

कांजीवरम वर्सेस बनारसी साड़ी

1.ओरिजन

बनारसी साड़ी उत्तर प्रदेश के वाराणसी (बनारस) की देन है और इसका इतिहास मुघल काल से जुड़ा हुआ है. वहीं कांचीवरम साड़ी तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर की है, जहां इसे पारंपरिक तमिल ब्राह्मण बुनकर बनाते हैं.

2. सिल्क की क्वालिटी

बनारसी साड़ियां मुख्य रूप से ‘कतान’ रेशम से बनाई जाती हैं जो बेहद सॉफ्ट और हल्की होती हैं. वहीं, दूसरी तरफ कांचीवरम साड़ियों में दक्षिण भारत का शुद्ध मलबेरी सिल्क इस्तेमाल होता है, जो मोटा, टिकाऊ और थोड़ा भारी होता है.

3. डिजाइन और मोटिफ

बनारसी डिजाइन में आपको मुघल शैली जैसे जालीदार पैटर्न, बेल-बूटे, पत्तियां और फूल मिलते हैं. वहीं कांचीवरम में मंदिर, हाथी, मोर, और पारंपरिक दक्षिण भारतीय डिजाइन देखने को मिलते हैं।. कांचीवरम के बॉर्डर और पल्लू पर गहरा आर्टवर्क किया जाता है.

4. बुनाई की तकनीक

बनारसी साड़ी ब्रोकैड तकनीक से बनती है जिसमें सोने या चांदी जैसी जरी से डिजाइन बुनी जाती है. जबकि कांचीवरम साड़ियों में बॉडी और पल्लू अलग-अलग बुने जाते हैं और बाद में विशेष तकनीक से जोड़े जाते हैं जिसे “कोरवाई” कहा जाता है.

5. रंग और टेक्सचर

बनारसी साड़ियां आमतौर पर मुलायम रंगों और सटल ग्लो के साथ आती हैं, जैसे लाल, गुलाबी, क्रीम आदि. कांचीवरम साड़ियां ज्यादा चटकदार रंगों और कंट्रास्ट बॉर्डर में होती हैं, जैसे लाल-हरे, नीले-सुनहरे रंगों का कॉन्ट्रास्ट.

6. कंफर्ट के लिहास से

बनारसी साड़ी हल्की होती है इसलिए इसे पहनना आसान होता है, खासकर गर्मियों में. दूसरी ओर, कांचीवरम भारी होती है और शादी या बड़े त्योहारों के लिए बेहतर मानी जाती है.

7. जरी का काम

बनारसी साड़ियों में ज्यादातर नकली जरी का इस्तेमाल होता है, हालांकि कुछ शुद्ध जरी वर्ज़न भी मिलते हैं. वहीं कांचीवरम साड़ियों में असली चांदी की जरी का उपयोग ट्रेडिशनल रूप से किया जाता है, जिससे ये काफी महंगी भी हो सकती हैं.

8. वैरायटी

बनारसी साड़ियों में कटान, तनचोई, जामदानी, जॉर्जेट जैसी कई वैरायटी होती हैं. कांचीवरम में पारंपरिक पल्लू बॉर्डर, ब्राइडल चेक्स, और फ्लोरल मोटिफ्स वाले डिजाइन ज्यादा देखने को मिलते हैं.

9. कीमत में अंतर

बनारसी साड़ियों की कीमत 2000 रुपये से 70,000 रुपये तक हो सकती है, डिजाइन और सिल्क की क्वालिटी के अनुसार इसकी कीमत तय होती है. वहीं कांचीवरम साड़ियां 5000 रुपये से 1 लाख+ तक जा सकती हैं, खासकर अगर उसमें शुद्ध सिल्वर जरी वर्क किया गया हो.

10. कब पहनें किसे?

बनारसी साड़ियां हल्की होने के कारण फंक्शन, पूजा या हल्दी जैसी रस्मों में पहनी जाती हैं. वहीं, कांचीवरम साड़ियां दुल्हनों और बड़ी पारंपरिक रस्मों जैसे शादी, गृह प्रवेश, या दीवाली के लिए परफेक्ट मानी जाती हैं.

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