हवाई सफर के खतरे हज़ार, नियम-कायदे ठेंगे पर, देखने वाला कोई नहीं
Navjivan Hindi June 29, 2025 04:42 AM

अहमदाबाद में 12 जून को एयर इंडिया की उड़ान एआई-171 की दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के बाद नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) कठघरे में है। इस पर एयरलाइनों को गलत छूट देने और अपने ही नियम-कानूनों को लागू करने में ढिलाई बरतने के आरोप लग रहे हैं। सरकार भी बजट कम करने और डीजीसीए में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति करने में ढिलाई बरतने की दोषी लगती है। विभिन्न हवाई अड्डों के इर्द-गिर्द अवैध इमारतों के अतिक्रमण और उनकी ऊंचाई पर लगी रोक में विफलता के मामले पर अब सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई है।

2018 और 2023 के बीच डीजीसीए ने लगातार छह निगरानी रिपोर्ट प्रकाशित कीं, जिनमें एयरलाइनों द्वारा सुरक्षा उल्लंघनों की एक लंबी सूची थी, जिसके केन्द्र में रखरखाव के फर्जी आंकड़े, अप्रशिक्षित कर्मचारी, अवधि बीत जाने के बावजूद इस्तेमाल हो रहे सुरक्षा उपकरण और बुनियादी विमानन मानदंडों के नियमित उल्लंघन की बातें थीं। लेकिन इतने गंभीर निष्कर्षों के बावजूद न तो किसी एयरलाइन का नाम लिया गया, न कोई जुर्माना हुआ। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ कि कोई व्यवस्थित सुधार अनिवार्य किया गया हो। 2023 के बाद तो डीजीसीए ने पारदर्शिता को पलीता लगाते हुए सुरक्षा ऑडिट प्रकाशित करना बंद किया ही, किसी घटना की रिपोर्ट अपलोड करने की परंपरा भी खत्म कर दी।

व्यापक विस्तार

विमानन क्षेत्र में आशातीत तेजी से विस्तार हुआ है। 2014 में 66 मिलियन यात्रियों से बढ़कर 2024 में 161 मिलियन यात्री तो हो गए लेकिन क्या यात्री वृद्धि का यह आंकड़ा नियामक क्षमता से भी मेल खाता है! शायद नहीं। बजट में भारी कटौती हुई है, नागरिक उड्डयन मंत्रालय का पूंजीगत व्यय महज एक साल में 91 प्रतिशत गिरा है। इससे महत्वपूर्ण पदों पर रिक्तियों की स्थिति गंभीर हो गई, जिनमें एयर ट्रैफिक कंट्रोलर सिस्टम में 30 प्रतिशत की कमी शामिल है। इसने डीजीसीए की निगरानी क्षमता पर असर डाला है।

संसद में पेश आंकड़े बताते हैं कि 2020 से जनवरी 2025 के बीच, भारतीय घरेलू एयरलाइनों ने 2,461 तकनीकी खराबियों की सूचना दी, जिनमें से आधे से अधिक इंडिगो एयरलाइंस की थीं। एयर इंडिया और उसकी सहायक कंपनियों ने 389 खराबियों की जानकारी दी, जिनमें अंतरराष्ट्रीय उड़ानों में गैर-योग्य व्यक्ति को चालक दल में शामिल करने जैसे गंभीर सुरक्षा उल्लंघन भी थे। इनके बावजूद, नियम-कानून को लागू करना कमजोर रहा और बजट में कटौती जारी है।

2023 में तो एक अत्यंत गंभीर उदाहरण सामने आया जब एयर इंडिया को प्रमुख हवाई अड्डों पर अनधिकृत कर्मियों द्वारा हस्ताक्षरित जाली दस्तावेजों और निरीक्षण न किए जाने के बावजूद प्रमुख हवाई अड्डों पर आंतरिक सुरक्षा ऑडिट की फर्जी रिपोर्ट बनाने का दोषी पाया गया। किसी ने एयरलाइनों द्वारा किए जा रहे इस गोरखधंधे और इन पर नियंत्रण में डीजीसीए के विफल रहने की सूचना सार्वजनिक भी की लेकिन कुछ भी नहीं हुआ।

पिछले कुछ सालों में सुधार की मांग ने और जोर पकड़ा है। विमानन सुरक्षा विशेषज्ञ और हितधारक ऐसे स्वतंत्र नागरिक विमानन प्राधिकरण (सीएए) बनाने की मांग कर रहे हैं, जिसे  वैधानिक स्वायत्तता, प्रवर्तन शक्तियां तो हासिल हों ही, यह राजनीति और उद्योग के असर से मुक्त रहे। ऐसे संरचनात्मक सुधार के बिना, ऑडिट महज दिखावा रह जाएगा, जो भरोसा बहाल करने या भविष्य की त्रासदियों को रोकने में बाधक होगा। सुरक्षा से जुड़े उपायों को लागू करने में पायलटों और उड़ानों से जुड़े लोगों को शामिल करने की सलाह भी दी गई लेकिन अधिकारियों ने उन पर कान ही नहीं दिया।

उल्लंघनों की भरमार

2020 से 2025 के बीच, मुंबई के छत्रपति शिवाजी महाराज अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के इर्दगिर्द ऊंचाई संबंधी नियमों को धता बताकर किए गए अनधिकृत निर्माण से विमानन सुरक्षा के साथ हो रहे खिलवाड़ पर अंकुश लगाने के कानूनी और प्रसासनिक प्रयास भी हुए। निर्धारित ऊंचाई सीमा से ज्यादा वाली अनेक इमारतें उड़ान भरने और उतरने के दौरान खतरा पैदा करती हैं। विमानन सुरक्षा ऐक्टिविस्ट यशवंत शेनॉय ने 2019 में एक जनहित याचिका दायर करते हुए इस खतरे की ओर ध्यान खींचते हुए बंबई हाईकोर्ट से ऐसी खतरनाक संरचनाएं हटाने का निर्देश देने का आग्रह किया।

समस्या का स्तर चौंकाने वाला है। संसद में पेश आंकड़ों के अनुसार, भारत के हवाई अड्डों पर इमारतों से लेकर मोबाइल टावर तक ऊंचाई मानकों का खुला उल्लंघन करने वाली 1,800 से अधिक बाधाएं हैं। अकेले मुंबई में ही 400 से अधिक ऐसे निर्माण हैं। ये अतिक्रमण न सिर्फ विमानन सुरक्षा से समझौता हैं, बल्कि यात्रियों और चालक दल के जीवन के लिए भी सीधा खतरा पैदा करते हैं।  

2017 में डीजीसीए ने ऐसी 49 बाधाएं ध्वस्त करने के आदेश दिए थे, जो 2010 और 2011 के बीच मुंबई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा लिमिटेड (एमआईएएल) और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (एएआई) द्वारा किए गए सर्वेक्षणों में चिह्नित 110 से अधिक संरचनाओं की एक लंबी सूची का हिस्सा थीं। लेकिन इसे लागू करने में कोताही हुई और कई इमारतें अब भी बनी हुई हैं। कुछ इमारत स्वामियों ने कोर्ट में अपील दायर कर दी है। इससे भी देरी हो रही है।

बंबई हाईकोर्ट ने 2022 में निगरानी बढ़ाते हुए जुलाई में मुंबई उपनगरीय जिला कलेक्टर को एयरपोर्ट के पास की 48 इमारतों के अनधिकृत हिस्से हटाने का निर्देश दिया। इसके बाद, अगस्त और सितंबर 2022 में प्रभावित इमारतों के निवासियों के साथ विस्तृत सुनवाई की गई, जिनमें फैज सीएचएसएल, ऑलविन अपार्टमेंट सीएचएसएल, फजल हाउस सीएचएसएल, कुर्ला में फरजान अपार्टमेंट सीएचएस, रिजवी नगर को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी में दो संरचनाएं और सांताक्रूज (पश्चिम) में धीरज हेरिटेज परिसर आदि शामिल थे। कुर्ला के डिप्टी कलेक्टर ने कार्रवाई के तौर पर इन इमारतों से सात कमरे ध्वस्त करने, मोबाइल एंटीना टावरों की ऊंचाई कम करने और इन इमारतों से 19 सिंटेक्स टैंक और पांच से अधिक ओवरहेड पानी के टैंक हटाने की सूचना अदालत को दी।

मार्च 2025 में बंबई हाईकोर्ट ने त्वरित कारवाई की जरूरत दोहराते हुए डीजीसीए को लंबित अपीलों पर फैसले में तेजी के साथ कलेक्टर तथा नगरपालिका अधिकारियों को अवैध संरचनाएं हटाना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। कलेक्टर ने आधी-अधूरी कारवाई के लिए मई 2025 में बिना शर्त माफी मांगी लेकिन बताया कि बृहन्मुंबई नगर निगम, मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण और एमआईएएल के समन्वय में प्रयास जारी हैं। महाराष्ट्र सरकार ने जून 2025 में अदालत को बताया  कि ‘आदेश अनुपालन के तहत’ सात संरचनाओं से अवैध हिस्से हटा दिए गए हैं।

फिलहाल यह मामला सर्वोच्च न्यायालय में है, जहां एक जनहित याचिका के जरिये तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि अधिकारियों की लापरवाही ने नागरिक उड्डयन के लिए, खासकर घनी आबादी वाले शहरी केन्द्रों  में एक खतरनाक माहौल बना दिया है। अदालत ने इस मुद्दे की गंभीरता को इंगित करते हुए डीजीसीए, एएआई और विभिन्न राज्य सरकारों से जवाब मांगा है। विमानन विशेषज्ञ चेतावनी देते रहे हैं कि उड़ान पथ में एक भी अवैध संरचना विनाशकारी हो सकती है, खासकर खराब दृश्यता या आपातकालीन स्थितियों में। अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन हवाई अड्डों के आसपास बाधा सीमा लेवल (ओएलएस) अनिवार्य बनाता है, लेकिन भारत में इसका प्रवर्तन सबसे खराब रहा है। नगर निगम के अधिकारियों, राज्य सरकारों और विमानन नियामकों के बीच समन्वय की कमी के कारण उल्लंघन धड़ल्ले से जारी है।

ग्रीनफील्ड सुविधाओं पर भी असर

अपेक्षाकृत नए हवाई अड्डे भी इस संकट से अछूते नहीं हैं। बेंगलुरु में केम्पेगौड़ा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा, एक आधुनिक ग्रीनफील्ड सुविधा है, जो कभी खुली हरित भूमि से घिरा था, लेकिन अब इसमें तेजी से बदलाव दिख रहा है। यह इलाका जो कभी कृषि भूमि और कम ऊंचाई वाले आवासों का बफर जोन होता था, आज शहर के उत्तर की ओर बढ़ने के साथ ही ऊंचे-ऊंचे आवासीय और वाणिज्यिक टावरों से भरा दिखने लगा है। शहरी योजनाकार चेतावनी दे रहे हैं कि जोनिंग नियंत्रण सख्ती से लागू न हुए तो सुरक्षा बफर के साथ डिजाइन किए गए हवाई अड्डों को भी वही चुनौतियां झेलनी पड़ेंगी जो पुराने हवाई अड्डों के सामने हैं।

शहर दर शहर खिलवाड़

एएआई डेटा के विश्लेषण से हवाई अड्डों के पास निर्माण ऊंचाइयों में व्यापक गड़बड़ियां सामने आती हैं। मसलन, हवाई अड्डे से 4 किलोमीटर की दूरी पर मुंबई में इमारत की अधिकतम स्वीकृत ऊंचाई केवल 17.87 मीटर है, जबकि विजयवाड़ा में यह 42.14 मीटर है। ऐसी विसंगतियां अहमदाबाद और लखनऊ-पटना तक, हर जगह मौजूद हैं।

यह सब अनुपालन को तो जटिल बनाता ही है, एक समान प्रवर्तन की बात बेमानी हो जाती है। नियामक विफलता और अतिक्रमण के दोहरे संकट तत्काल, प्रणालीगत सुधार की मांग करते हैं। विशेषज्ञ समितियों का गठन करने और विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआईबी) को मजबूत करने का सरकार का हालिया निर्णय सही दिशा में एक कदम भले हो, लेकिन आवश्यक व्यापक सुधार के लिए नाकाफी है।

विशेषज्ञों की सिफारिशः

  • नियमों को लागू करवाने और जांच प्राधिकरण सहित वैधानिक शक्तियों के साथ एक स्वतंत्र विमानन सुरक्षा निरीक्षण आयोग का गठन।

  • जोखिम-आधारित, पूरे विमानन पारिस्थितिकी तंत्र को कवर करने वाला एकीकृत ऑडिट सिस्टम लागू करना।

  • ऑडिट और घटना रिपोर्ट का नियमित रूप से प्रकाशन और प्रवर्तन कार्रवाइयों को पूरी पारदर्शिता के साथ अनिवार्य रूप से सार्वजनिक किया जाना।

  • हवाई अड्डों के आसपास ऊंचाई प्रतिबंध लागू करने में सख्ती, अवैध संरचनाएं तत्काल ध्वस्त कर उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाना।

  • सक्रिय निगरानी तंत्र को सक्षम करने के लिए डीजीसीए की जनशक्ति, प्रशिक्षण और डिजिटल प्रणालियों का आधुनिकीकरण।

  • अतिक्रमण रोकने और हटाने के लिए विमानन नियामकों, नगर निगमों और राज्य सरकारों के बीच समन्वय मजबूत करना।

अहमदाबाद दुर्घटना ने याद दिलाया है कि जब निगरानी फेल हो जाती है, तो विश्वास टूट जाता है और नतीजे भयावह होते हैं। केवल निर्णायक कार्रवाई, पारदर्शिता, स्वतंत्रता और सख्त प्रवर्तन के जरिए ही हमारा नागरिक विमानन क्षेत्र जनता का विश्वास बहाल करने और लाखों यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की उम्मीद कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट हवाई अड्डों के इर्द-गिर्द अतिक्रमण पर विचार कर रहा है और देश की इस पर कड़ी नजर है। इसका नतीजा न सिर्फ अवैध ढांचों का भाग्य तय करेगा, भारत में विमानन सुरक्षा के एक नए युग की शुरुआत भी कर सकता है - एक ऐसा युग जिसमें नियामक कठोरता और सार्वजनिक जवाबदेही पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

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