स्वामित्व नियम- भारत में संपत्ति को लेकर विवाद कोई नई बात नहीं है। अक्सर ऐसा देखने को मिलता है कि माता-पिता की वसीयत में किसी एक बेटे या बेटी को ज़्यादा संपत्ति दे दी जाती है और बाकियों को या तो नाममात्र कुछ दिया जाता है या बिल्कुल भी नहीं। ऐसे में सवाल उठता है – क्या ऐसा करना जायज़ है? क्या सभी बच्चों को बराबर का हक मिलना चाहिए? और अगर किसी को हक से वंचित किया गया है, तो वह क्या कर सकता है?
अगर आपको भी लगता है कि आपके साथ वसीयत में अन्याय हुआ है, तो घबराने की जरूरत नहीं। भारतीय कानून में आपके लिए पूरा रास्ता है जिससे आप न्याय पा सकते हैं। चलिए इसे आसान भाषा में समझते हैं।
वसीयत (Will) एक कानूनी दस्तावेज होता है, जिसे कोई भी व्यक्ति अपनी मृत्यु से पहले यह बताने के लिए बनाता है कि उसकी संपत्ति किसे और कैसे बांटी जाए। इसमें वह अपनी मर्ज़ी से किसी को भी ज़्यादा या कम दे सकता है। लेकिन वसीयत भी कानून के दायरे में होती है। अगर इसमें कोई गड़बड़ी है, तो इसे अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
कानून कहता है कि व्यक्ति अपनी संपत्ति की वसीयत किसी के भी नाम कर सकता है – चाहे वह बेटा हो, बेटी हो, पत्नी हो या कोई और। लेकिन अगर वसीयत धोखे, दबाव, मानसिक कमजोरी या ग़लत मंशा से बनाई गई हो, तो इसे रद्द भी करवाया जा सकता है।
अगर आपको लगता है कि आपके साथ नाइंसाफी हुई है, तो नीचे दिए गए आधारों पर वसीयत को कोर्ट में चैलेंज किया जा सकता है:
इनमें से कोई भी एक बात अगर साबित हो जाती है, तो कोर्ट वसीयत को रद्द कर सकता है।
अब सवाल उठता है – अगर आपके पास ये शक या सबूत है, तो क्या करें? तो इसका जवाब है – सिविल कोर्ट में केस फाइल करें। यहां जानिए आसान स्टेप्स:
कोर्ट कई मामलों में वसीयत को पूरी तरह से अमान्य घोषित कर चुका है, जैसे:
वसीयत को चैलेंज करने के लिए कोई तय समय सीमा नहीं होती, लेकिन बेहतर होता है कि इसे उस समय चुनौती दी जाए जब वसीयत को कोर्ट से प्रोबेट (प्रमाणीकरण) कराया जा रहा हो। यह प्रोबेट प्रक्रिया उस समय की जाती है जब वसीयत को कानूनी मान्यता दी जा रही हो।
अगर वसीयत कोर्ट द्वारा रद्द हो जाती है, तो उस व्यक्ति की संपत्ति उत्तराधिकार कानून के अनुसार सभी कानूनी वारिसों में बराबर बांटी जाएगी। यह एक निष्पक्ष व्यवस्था होती है जिसमें सभी का हिस्सा तय किया जाता है।
अगर आपके साथ वसीयत के जरिए अन्याय हुआ है, तो मायूस मत होइए। भारतीय कानून में आपको पूरा अधिकार दिया गया है कि आप कोर्ट में अपनी बात रखें और अपना हक हासिल करें। इसके लिए थोड़ा धैर्य, सही कानूनी जानकारी और एक अच्छे वकील की मदद की ज़रूरत होगी।
याद रखिए, वसीयत अंतिम नहीं है – अगर वह अनुचित है, गलत तरीके से बनाई गई है या किसी को जानबूझकर बाहर रखा गया है, तो उसे चुनौती देना आपका हक है।