पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा में मिलने वाला प्रसाद, जिसे महाप्रसाद कहा जाता है, अत्यंत पवित्र और दिव्य माना जाता है. इस प्रसाद को ग्रहण करने और इसका सही तरीके से उपयोग करने के कुछ विशेष नियम और मान्यताएं हैं. यह सामान्य प्रसाद से कहीं बढ़कर है, क्योंकि इसे स्वयं भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को अर्पित किया जाता है और उसके बाद देवी विमला को भी भोग लगाया जाता है, जिसके बाद ही यह “महाप्रसाद” कहलाता है.
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान और मंदिर परिसर में मिलने वाला कुछ प्रसाद, विशेषकर पकाया हुआ ‘अभिदा’ (चावल, दाल, सब्जियां आदि), भक्तों को वहीं पर ग्रहण करना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि इस महाप्रसाद को खाने से सभी पापों का नाश होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है, और व्यक्ति को आध्यात्मिक शुद्धि मिलती है. इसे जाति, पंथ या धर्म के भेदभाव के बिना सभी भक्त एक साथ ग्रहण करते हैं, जो समानता और एकता का प्रतीक है.
कुछ प्रकार के महाप्रसाद, जैसे सूखी मिठाइयां (खुज्जा, खजा) या सूखे चावल जिन्हें ‘निर्माल्य’ कहा जाता है, आप अपने घर ले जा सकते हैं. निर्माल्य भगवान जगन्नाथ का सूखा महाप्रसाद चावल है. यह अत्यधिक पवित्र माना जाता है. भक्त इसे भगवान के आशीर्वाद के प्रतीक के रूप में घर ले जाते हैं.
निर्माल्य को अपने घर के पूजा स्थान या अनाज के भंडार में रखना बहुत शुभ माना जाता है. इससे घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती है और घर में बरकत बनी रहती है. किसी भी शुभ कार्य या यात्रा पर निकलने से पहले निर्माल्य का एक छोटा सा दाना ग्रहण करना बहुत शुभ माना जाता है. कुछ लोग इसे मृत्यु शैया पर लेटे व्यक्ति को देते हैं, ऐसा माना जाता है कि इससे आत्मा को मोक्ष और स्वर्ग में स्थान मिलता है.
जगन्नाथ रथ यात्रा के रथ नीम की लकड़ी से बनाए जाते हैं. यात्रा के बाद यदि आपको रथ की लकड़ी का कोई छोटा टुकड़ा मिल जाए, तो उसे घर लाना भी शुभ माना जाता है. यह घर की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है. रथ यात्रा के दौरान तुलसी की माला प्रसाद में मिलना बहुत शुभ माना जाता है. यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर घर में सकारात्मकता लाती है.