वैश्विक अर्थव्यवस्था में इस समय कई उतार-चढ़ाव देखने को मिल रहे हैं. अमेरिका में उपभोक्ता खर्च में कमी आई है, जिससे वहां की अर्थव्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं. इसके साथ ही यूरोप में कारोबारी गतिविधियां ठप पड़ी हैं, जबकि चीन में औद्योगिक मुनाफा घट रहा है. भारत जैसे उभरते बाजारों पर भी इसका असर दिख रहा है.
अमेरिका की अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता खर्च पिछले कुछ समय से कमजोर पड़ रहा है. मई महीने में महंगाई को ध्यान में रखते हुए उपभोक्ता खर्च में जनवरी के बाद सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई. लोग अब बड़े सामान और सेवाओं पर खर्च करने में कटौती कर रहे हैं. खासतौर पर सेवा क्षेत्र में मांग कमजोर हुई है, जो महामारी के बाद से सबसे कमजोर तिमाही मानी जा रही है. इसका बड़ा कारण ट्रंप प्रशासन की आर्थिक नीतियों को लेकर अनिश्चितता है. लोग समझ नहीं पा रहे कि आने वाले समय में आर्थिक हालात कैसे होंगे.
इसके साथ ही अमेरिकी हाउसिंग मार्केट में भी ठंडक देखने को मिली. मई में नए घरों की बिक्री में 13.7% की गिरावट आई, जो पिछले तीन सालों में सबसे बड़ी गिरावट है. बिल्डर्स ने ग्राहकों को लुभाने के लिए कई तरह के ऑफर और छूट दिए, लेकिन फिर भी बाजार में मांग नहीं बढ़ी. इसका कारण है मॉर्गेज रेट्स का 7% के करीब बना रहना, सामग्री की लागत में इजाफा और श्रम बाजार में सुस्ती. बढ़ती लागत और ऊंची ब्याज दरों ने लोगों की जेब पर असर डाला है, जिससे घर खरीदने की उनकी क्षमता कम हुई है.
फेडरल रिजर्व की सतर्कताअमेरिका के केंद्रीय बैंक, फेडरल रिजर्व के अधिकारियों ने इस हफ्ते साफ कर दिया कि वे ब्याज दरों में जल्दी कटौती करने के मूड में नहीं हैं. उनका कहना है कि ट्रंप प्रशासन की नीतियों, खासकर टैरिफ (आयात शुल्क) की वजह से महंगाई बढ़ सकती है. फेड गवर्नर क्रिस्टोफर वॉलर और मिशेल बोमैन ने संकेत दिए कि अगर महंगाई नियंत्रण में रही, तो जुलाई में होने वाली फेड की बैठक में ब्याज दरों में कटौती पर विचार हो सकता है. लेकिन अभी के लिए वे और डेटा का इंतजार करना चाहते हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि महंगाई स्थायी रूप से नहीं बढ़ रही.
यूरोप में सुस्त कारोबारी माहौलयूरोप की बात करें तो वहां कारोबारी गतिविधियां लगभग ठप हैं. जून में प्राइवेट सेक्टर में मामूली बढ़ोतरी देखी गई, लेकिन अमेरिका की व्यापार नीतियों और मध्य पूर्व व यूक्रेन में चल रहे युद्धों की वजह से अनिश्चितता बनी हुई है. कंपनियां समझ नहीं पा रही हैं कि भविष्य में क्या होगा, जिसके चलते निवेश और विस्तार की योजनाएं रुकी हुई हैं.
जर्मनी में हालांकि कुछ सकारात्मक संकेत दिखे हैं. वहां की कंपनियां पिछले दो सालों में सबसे ज्यादा आशावादी हैं. इसका कारण है कि जर्मन सरकार जल्द ही सार्वजनिक खर्च बढ़ाने की योजना बना रही है. यह खर्च अर्थव्यवस्था को गति दे सकता है. लेकिन अमेरिकी टैरिफ और भू-राजनीतिक तनाव अभी भी चिंता का विषय बने हुए हैं.
ब्रिटेन में बढ़ती महंगाई की मारब्रिटेन में किराने की दुकानों में सामान की कीमतें आसमान छू रही हैं. मई में मक्खन, बीफ और चॉकलेट जैसे जरूरी सामानों की कीमतों में पिछले साल की तुलना में करीब 20% की बढ़ोतरी हुई. यह खाद्य महंगाई में फरवरी 2024 के बाद सबसे बड़ी उछाल है. इससे बैंक ऑफ इंग्लैंड की ब्याज दरों में कटौती की रफ्तार धीमी हो सकती है, क्योंकि महंगाई का दबाव कम होने का नाम नहीं ले रहा. इसके साथ ही ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में भी सुस्ती के संकेत दिख रहे हैं.
चीन में औद्योगिक मुनाफे में भारी गिरावटएशिया में चीन की अर्थव्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही है. मई में औद्योगिक कंपनियों का मुनाफा 9.1% गिरा, जो अक्टूबर के बाद सबसे बड़ी गिरावट है. अमेरिका के बढ़ते टैरिफ और घरेलू स्तर पर डिफ्लेशन (महंगाई में कमी) का दबाव इसकी वजह बना है. इससे कंपनियों का आत्मविश्वास डगमगा रहा है, और वे निवेश व नई भर्तियों में कटौती कर रही हैं. यह स्थिति चीन की अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं है, क्योंकि पहले से ही मांग में कमी देखी जा रही है.
जापान में बढ़ते किराए का असरजापान की राजधानी टोक्यो में अपार्टमेंट के किराए 30 सालों में सबसे तेज गति से बढ़ रहे हैं. अप्रैल और मई में किराए में 1.3% की बढ़ोतरी हुई, जो 1994 के बाद सबसे ज्यादा है. यह जापान की अर्थव्यवस्था में महंगाई के बढ़ते प्रभाव का संकेत है. बैंक ऑफ जापान के लिए यह एक अहम संकेत है कि देश में महंगाई अब गहराई तक फैल रही है. इससे जापान की मौद्रिक नीतियों पर भी असर पड़ सकता है.
मेक्सिको मंदी के कगार से बचने में कामयाबउभरते बाजारों में मेक्सिको के केंद्रीय बैंक ने अपनी बेंचमार्क ब्याज दर में आधा फीसदी की कटौती की, लेकिन भविष्य में छोटी कटौतियों की बात कही. इसका कारण है कि मेक्सिको की अर्थव्यवस्था मंदी के कगार से बचने में कामयाब रही, लेकिन अभी भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं. इसके अलावा, पैराग्वे, मोरक्को, हंगरी, थाईलैंड, चेक गणराज्य, ग्वाटेमाला और कोलंबिया जैसे देशों के केंद्रीय बैंकों ने अपनी ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया.
भारत पर भी पड़ सकता है वैश्विक आर्थिक माहौल का असरभारत जैसे उभरते बाजारों पर भी वैश्विक आर्थिक माहौल का असर पड़ रहा है. अमेरिका और यूरोप में मांग कम होने से भारत के निर्यात पर दबाव बढ़ सकता है. इसके साथ ही, चीन की आर्थिक सुस्ती का असर वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर पड़ रहा है, जिससे भारत में भी कुछ सेक्टर प्रभावित हो सकते हैं. हालांकि, भारत की घरेलू मांग अभी भी मजबूत बनी हुई है, और सरकार की नीतियां अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में मदद कर रही हैं.