World Doctors Day : कौन थीं डॉ. पार्वती गहलोत? राजस्थान की पहली महिला डॉक्टर, जिनकी वजह से बेटियों ने शिक्षा की ओर बढ़ाया कदम
aapkarajasthan July 01, 2025 06:42 PM

आज के दौर में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। हर मुश्किल में उनका साथ देती हैं और उनके साथ खड़ी रहती हैं। लेकिन आजादी से पहले महिलाओं या लड़कियों के लिए आजादी की खुली हवा में सांस लेना भी मुश्किल था। उन्हें अपने सपनों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक लड़ना पड़ता था। या फिर उन्हें अपने सपनों को छोड़कर खुद को गुमनामी के अंधेरे में छोड़ देना पड़ता था। लेकिन आजादी से पहले कई महिलाएं ऐसी भी रहीं जिन्होंने इस तरह की पहचान के खिलाफ आवाज उठाई और गुमनामी की जगह इतिहास के उजले पन्नों में अपनी सफलता की कहानी दर्ज कराई। ऐसी ही एक महिला राजस्थान की थीं, जिन्होंने दुनिया की हर बुराई को पीछे छोड़कर राज्य की पहली महिला डॉक्टर बनकर रेत के टीलों पर अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखवाया, डॉ. पार्वती गहलोत।

कौन हैं पार्वती गहलोत

पार्वती गहलोत का जन्म 21 जनवरी 1903 को बालू सिटी जोधपुर की गोद में हुआ था। उनके पिता एक समाज सुधारक थे, जिसकी वजह से उनमें भी हमेशा समाज के लिए कुछ करने का जज्बा रहा। इसी वजह से उन्होंने इंसानों की देखभाल करने और समाज में अपना योगदान देने के लिए डॉक्टर बनने का रास्ता चुना। लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, इसलिए उनके चाचा की मदद से उनका सपना पूरा हुआ। उनके चाचा एक व्यवसायी थे, जिन्होंने पार्वती की पूरी पढ़ाई का खर्च उठाया और उनके सपनों को पंख दिए।

दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से की एमबीबीएस की पढ़ाई
पार्वती गहलोत प्रसिद्ध इतिहासकार और समाज सुधारक जगदीश सिंह गहलोत की भतीजी भी थीं। 1928 में उन्होंने दिल्ली के लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद 1936 में वे चिकित्सा के क्षेत्र में उच्च शिक्षा के लिए विदेश चली गईं। वे काफी प्रतिभाशाली थीं और बाद में सरकारी सेवा में आ गईं। फिर वे जोधपुर के उम्मेद अस्पताल की अधीक्षक बनीं।

डॉक्टरों का काम 24 घंटे काम करना होता है
पार्वती गहलोत कहती थीं कि डॉक्टर की ड्यूटी का कोई समय नहीं होता। वे 24 घंटे और हफ्ते के सातों दिन मरीजों का इलाज करती थीं। पार्वती इलाज के साथ-साथ मरीजों की सेवा भी करती थीं। पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते थे। वे डॉक्टर की बजाय मां बनकर मरीजों की सेवा करती थीं। जोधपुर के महाराजा उन्हें 100 रुपये प्रतिमाह भत्ता देते थे। उन्होंने कई वर्षों तक स्थानीय उम्मेद अस्पताल में शिक्षिका के रूप में काम किया। उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया। राजस्थान की इस महान हस्ती का देहांत 27 अक्टूबर 1988 को हुआ।

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