सस्ते दाम, जल्दी डिलीवरी और ‘असली सौदा’…सेकेंड हैंड कार बाजार ने कभी भारत के ऑटो सेक्टर में तूफान खड़ा कर दिया था, लेकिन ताज़ा सर्वे कहता है कि अब वो भरोसा टूट रहा है. Park+ Research Labs की नई रिपोर्ट के मुताबिक, हर 10 में से 8 नए कार खरीदार अब सेकेंड हैंड कारों से किनारा कर रहे हैं.
क्या बदला है?भारत भर के 9000 से ज्यादा लोग जो पहली बार कार खरीदने वालों से बातचीत में कुछ चौंकाने वाली बातें सामने आईं:
जी हां! आपको हैरानी होगी, लेकिन आंकड़े कहते हैं कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर भरोसा कमजोर पड़ा है. Park+ के मुताबिक 53 प्रतिशत को लोकल डीलर से इंसानी जुड़ाव ज्यादा महसूस हुआ. वहीं 31 प्रतिशत ने कहा कि लोकल डीलर से मोलभाव कर सकते हैं. जबकि बड़ी कंपनियों पर ‘वादा ज़्यादा, डिलीवरी कम के आरोप लगे.
‘पुरानी कार, नया सिरदर्द’, ये हैं सबसे बड़े डरसर्वे में जो जवाब सामने आए, वो इस सेक्टर की खामियों की गवाही देते हैं:
Deloitte के मुताबिक, 90% सेकेंड हैंड कार डील ₹10 लाख के अंदर होते हैं, फिर भी 81% लोगों को लगता है कि पुरानी कार की कीमतें नई कारों जैसी या उससे भी ज़्यादा हो गई हैं. साथ ही अब नई कारों पर मिलने वाले फाइनेंस ऑप्शन और बेहतर आफ्टर-सेल्स सर्विस ने लोगों को नया वाहन खरीदने की ओर मोड़ा है.
अब क्या चाहिए?ग्राहकों की सीधी मांग है:
Park+ Research Labs का कहना है कि ये सर्वे ऑटो सेक्टर में बड़ी सोच की जरूरत का इशारा है. अगर सेकेंड हैंड मार्केट को फिर से पटरी पर लाना है, तो सिर्फ flashy ads नहीं, बिना झंझट वाला भरोसेमंद सिस्टम बनाना होगा.