हाल के दिनों में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर 'ये ठीक करके दिखाओ' हैशटैग तेजी से ट्रेंड कर रहा था। यह अभियान एक एक्स हैंडल द्वारा शुरू किया गया, जिसने राजस्थान के मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के निर्वाचन क्षेत्र में खराब सड़कों और जलजमाव की तस्वीरें साझा कीं। इस पर राठौड़ ने उस हैंडल के साथ बहस की, जिसके बाद यह एक व्यापक अभियान में बदल गया। धीरे-धीरे कई प्रमुख सोशल मीडिया हैंडल भी इसमें शामिल हो गए। लोगों से अनुरोध किया गया कि वे अपने क्षेत्र के बुनियादी ढांचे की समस्याओं की तस्वीरें साझा करें और स्थानीय नेताओं को टैग करें। इसके साथ ही, जियो लोकेशन के साथ तस्वीरें साझा करने की अपील की गई। 24 घंटे के भीतर यह प्रयास एक बड़े आंदोलन में तब्दील हो गया। एक प्रमुख हिंदी समाचार पत्र ने भी इसका समर्थन किया, लेकिन बाद में सभी तस्वीरें हटा दीं। इसके बावजूद, यह अभियान जारी रहा।
इस बीच, दिल्ली में एक जुलाई से 15 साल पुरानी पेट्रोल और 10 साल पुरानी डीजल गाड़ियों को जब्त करने की प्रक्रिया शुरू हो गई। पेट्रोल पंपों पर विशेष कैमरे लगाए गए और ट्रैफिक पुलिस को तैनात किया गया। सरकार या सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित उम्र सीमा पार कर चुकी गाड़ियों को ईंधन देना बंद कर दिया गया। इस पर भी सोशल मीडिया में एक नया अभियान शुरू हुआ, जिसमें लोगों ने सरकार पर आरोप लगाया कि वह कार निर्माताओं के दबाव में काम कर रही है। यह सवाल उठाया गया कि जिन गाड़ियों की प्रदूषण जांच हो चुकी है, उन्हें क्यों जब्त किया जा रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि सरकार 11 साल पुराने हवाई जहाज को उड़ने की अनुमति देती है, जबकि 10 साल पुरानी डीजल गाड़ी को जब्त कर लिया जाता है। यह भी ध्यान देने योग्य है कि टैक्सी में चलने वाली डीजल गाड़ियां एक साल में एक लाख किलोमीटर चल जाती हैं, जबकि निजी गाड़ियां इतनी दूरी तय नहीं करतीं। इसके बावजूद, दोनों को समान रूप से 10 साल बाद रिटायर किया जा रहा है। इस मुद्दे पर सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर चर्चा हो रही है, जिसमें मध्य वर्ग और भाजपा समर्थक भी शामिल हैं।
इस बीच, केंद्र सरकार ने कैब एग्रीगेटर्स जैसे ओला, उबर और रैपिडो के लिए नए नियम लागू किए हैं। जब दिल्ली में गाड़ियों की जब्ती हो रही थी, उसी समय सरकार ने इन कंपनियों के लिए नए नियमों को मंजूरी दी। अब कंपनियां पीक ऑवर में किराया 100% तक बढ़ा सकती हैं, जिससे मध्य वर्ग में नाराजगी बढ़ी है। लोग सरकार की इस नीति का विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने किराया कम करने की उम्मीद की थी।
मध्य वर्ग की निराशा का एक और कारण बैंकों की ब्याज दरों में कमी नहीं होना है। भारतीय रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में कटौती की है, लेकिन बैंकों ने इसका लाभ ग्राहकों को नहीं दिया है। सोशल मीडिया पर इस मुद्दे पर भी चर्चा हो रही है, और कई लोग बैंकों की इस कंजूसी के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।
सवाल यह है कि भाजपा की केंद्र सरकार मध्य वर्ग की चिंताओं की अनदेखी क्यों कर रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कहा था कि 95 करोड़ लोग सामाजिक सुरक्षा योजनाओं का लाभ ले रहे हैं। क्या भाजपा अपने कोर वोट बैंक की बजाय लाभार्थी मतदाताओं पर निर्भर हो गई है? यह स्थिति सोचने पर मजबूर करती है कि क्या भाजपा ने मध्य वर्ग को छोड़ दिया है।