मौजूदा समय में दुनिया पॉलिटिकली और इकोनॉमिकली काफी नाजुक दौर से गुजर रही है. जहां एक ओर यूक्रेन-रूस और ईरान-इजराइल के बीच टेंशन कम नहीं हुई है. वहीं दूसरी ओर अमेरिकी टैरिफ का जोर 9 जुलाई के बाद एक बार फिर से तेजी पकड़ने को तैयार है. जिसकी वजह से एक बार फिर से ट्रेड वॉर की आशंकाए बढ़ गई है. जिसकी वजह से ग्लोबली स्पलाई चेन के में व्यवधान के साथ टैक्स में भी इजाफा देखने को मिल सकता है. ऐसे में महंगाई में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है.
साथ ही कच्चे तेल की कीमतों में तेजी बनने की संभावना है. ऐसे में 22 देश सामने आए हैं, जोकि दुनिया के लिए मसीहा बन सकते हैं. खास कर ये 22 देश दुनिया को महंगाई से बचाने में कारगर साबित हो सकते हैं, वो भी ऐसे समय पर जब ग्लोबल इकोनॉमी पर टैरिफ और वॉर दोनों का संकट मंडरा रहा हो. अब सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये 22 देश कौन से है और ऐसा क्या करने वाले हैं, जोकि ये दुनिया के लिए किसी मसीहा से कम नहीं होंगे. आइए आपको भी बताते हैं.
ये 22 देश बन सकते हैं मसीहावास्तव में ओपेक प्लस जो ग्लोबली ऑयल प्रोड्यूसर्स का संगठन है, वो दुनिया के लिए किसी मसीहा से कम नहीं है. ये ऐसे देश हैं, जिनके पास ग्लोबल इकोनॉमी की ऐसी नब्ज है, जिसे छूकर वो या तो दुनिया के कई देशों को डुबा सकते हैं, या फिर टूटती रीढ़ को जोड़ने का काम कर सकते हैं. ओपेक प्लस जिसमें 22 देश शामिल हैं, अगस्त में पहले से नियोजित तेल उत्पादन की तुलना में तेजी से तेल उत्पादन बढ़ाएगा, आठ प्रमुख गठबंधन सदस्य प्रतिदिन 548,000 बैरल उत्पादन बढ़ाने पर सहमत हुए. ये फैसला एक वर्चुअल मीटिंग में लिया गया है.
यह मई, जून और जुलाई के लिए घोषित 411,000 बैरल की बढ़ोतरी से अधिक है, जो पहले से ही प्रारंभिक योजना से तीन गुना अधिक थी. व्यापारियों ने अगस्त के लिए भी इसी वृद्धि की उम्मीद की थी, जिससे नवीनतम कदम और भी तेज हो गया. सऊदी अरब के नेतृत्व में पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन और उसके भागीदारों ने अप्रैल से प्राइस कंट्रोल पर बाजार हिस्सेदारी को प्राथमिकता देकर अपना रुख बदल दिया है. समूह ने पहले से कटी हुई सप्लार्अ को पुनर्जीवित करना शुरू कर दिया है, जिससे व्यापारी आश्चर्यचकित हैं.
कितना सस्ता हो चुका है तेलराष्ट्रपति ट्रंप के ट्रेड वॉर और ग्लोबल इकोनॉमी पर इसके प्रभाव के बीच अतिरिक्त सप्लाई और डिमांड को लेकर चिंताओं के कारण 2025 में ब्रेंट क्रूड वायदा अब तक 8.5 फीसदी गिर गया है. फिर भी, प्रतिनिधियों ने कहा कि शॉर्ट टर्म डिमांड का आउटलुक काफी स्ट्रांग देखने को मिल रहा है, खासकर उत्तरी गोलार्ध की गर्मियों में ज्यादा देखी जा रही है. अमेरिकी रिफाइनर 2019 के बाद से इस समय सबसे ज़्यादा कच्चे तेल का प्रोसेसिंग कर रहे हैं, और डीजल की कीमतों में उछाल आया है.
रणनीति में अचानक बदलाव के लिए अलग-अलग कारण बताए गए हैं – गर्मियों में ईंधन की मांग को पूरा करने से लेकर ज़्यादा उत्पादन करने वाले सदस्यों को दंडित करने और अमेरिकी शेल ड्रिलर्स से खोई हुई बाज़ार हिस्सेदारी वापस पाने तक. अधिकारियों ने कहा कि सऊदी अरब जल्दी से निष्क्रिय क्षमता को फिर से शुरू करने का इच्छुक है. अगस्त में की गई बड़ी बढ़ोतरी ने ओपेक+ को सितंबर तक रुके हुए उत्पादन को 2.2 मिलियन बैरल प्रतिदिन पर वापस लाने की राह पर ला खड़ा किया है, जो कि मूल समय-सीमा से एक पूरा साल पहले है.
कम हो सकते हैं कच्चे तेल के दामअतिरिक्त बैरल राष्ट्रपति ट्रंप को खुश कर सकते हैं, जिन्होंने अमेरिकी इकोनॉमी को सहारा देने के लिए तेल की कीमतों में कमी लाने पर जोर दिया है और चाहते हैं कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों में कटौती करे. लेकिन इस वृद्धि से सप्लाई सरप्लस के बिगड़ने का भी खतरा है. चीन की मांग कमजोर होने और अमेरिका, गुयाना, कनाडा और ब्राजील में उत्पादन बढ़ने के कारण तेल भंडार में प्रतिदिन लगभग 1 मिलियन बैरल की वृद्धि हो रही है. पेरिस में अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी के अनुसार, इस साल के अंत में बाजारों में बड़े सरप्लस का सामना करने की संभावना है. जेपी मॉर्गन और गोल्डमैन सैक्स जैसे बैंकों का अनुमान है कि चौथी तिमाही तक कीमतें 60 डॉलर प्रति बैरल या उससे भी कम हो सकती हैं.
चुनौतियां भी कम नहींपिछले महीने ईरान और इज़राइल के बीच संघर्ष के दौरान कीमतों में उछाल आया था, लेकिन जैसे ही यह स्पष्ट हो गया कि तेल सप्लाई प्रभावित नहीं हुई है, कीमतें फिर से गिर गईं. सऊदी अरब को अब गिरती कीमतों के प्रभाव के साथ हाई एक्सपोर्ट वॉल्यूम को संतुलित करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. राज्य पहले से ही बढ़ते बजट घाटे से जूझ रहा है और उसे क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की प्रमुख परियोजनाओं पर खर्च में कटौती करनी पड़ी है.
इस बीच, ओपेक प्लस के दूसरे अहम लीडर रूस बिगड़ते आर्थिक आउटलुक और बैंकिंग संकट के खतरे से जूझ रहा है, क्योंकि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का यूक्रेन के खिलाफ युद्ध संसाधनों को खत्म करना जारी रखता है. गिरती कीमतें अमेरिकी शेल उत्पादकों को भी प्रभावित कर रही हैं. अमेरिकी शेल अधिकारियों के एक हालिया सर्वे से पता चला है कि अब उन्हें उम्मीद है कि वे 2025 की शुरुआत में अपनी योजना से बहुत कम कुएं खोदेंगे, क्योंकि ट्रंप की टैरिफ नीतियों के कारण तेल की कीमतें कमज़ोर हैं और अनिश्चितता है.
महंगाई होगी कमअगर कच्चे तेल की कीमतों में कमी आएगी, तो ग्लोबली महंगाई में गिरावट देखने को मिलेगी. साथ आम लोगों को भी काफी राहत मिलती हुई दिखाई देगी. जिससे दुनिया के तमाम सेंट्रल बैंकों को ब्याज दरों में कटौती करने की एक बड़ी विंडो मिलेगी, जिसके लिए अमेरिकी राष्ट्रपति काफी उत्साहित हैं. जानकारों की मानें तो पेट्रोल और डीजल की कीमतों में गिरावट आने से सिर्फ भारत ही नहीं दुनिया के बाकी देशों को काफी राहत मिलती हुई दिखाई दे सकती है. वैसे भारत में करीब डेढ़ साल पहले पेट्रोल और डीजल की कीमतों में गिरावट देखने को मिली थी. तब सरकार ने पेट्रोल और डीजल की कीमत में 2 रुपए प्रति लीटर की फ्लैट कटौती की थी.