बैंक न्यूनतम शेष नियम: मिनिमम बैलेंस ना रखने पर लगने वाली पेनाल्टी लंबे समय से बैंक ग्राहकों की परेशानी का कारण रही है। कई बार ग्राहक की जेब से बिना जानकारी के शुल्क कट जाता है। लेकिन अब बड़ी राहत की खबर है। देश के 5 प्रमुख बैंकों ने अपने सेविंग अकाउंट्स पर मिनिमम बैलेंस मेंटेन करने की अनिवार्यता खत्म कर दी है। यानी अब ग्राहकों को खाते में न्यूनतम राशि न होने पर कोई चार्ज नहीं देना पड़ेगा।
बैंक ऑफ बड़ौदा (BOB) ने घोषणा की है कि 1 जुलाई 2025 से उसके सभी स्टैंडर्ड सेविंग अकाउंट्स पर मिनिमम बैलेंस चार्ज खत्म कर दिए गए हैं। अब यदि ग्राहकों का बैलेंस तय सीमा से कम भी होता है, तब भी कोई जुर्माना नहीं लगेगा। हालांकि, यह सुविधा प्रीमियम सेविंग स्कीम्स पर लागू नहीं होगी। यह बदलाव आम ग्राहकों को राहत देने के उद्देश्य से किया गया है।
Indian Bank ने भी अपने सभी Savings Account ग्राहकों के लिए एक बड़ी राहत की घोषणा की है। 7 जुलाई 2025 से बैंक ने मिनिमम बैलेंस मेंटेन न करने पर लगने वाला चार्ज पूरी तरह समाप्त कर दिया है। इसका मतलब है कि अब ग्राहक बैलेंस कम होने की चिंता के बिना अकाउंट का उपयोग कर सकते हैं।
Canara Bank ने मई 2025 में ही स्पष्ट कर दिया था कि उसके सभी सेविंग अकाउंट्स — रेगुलर, सैलरी और NRI अकाउंट्स — पर अब AMB (Average Monthly Balance) बनाए रखना अनिवार्य नहीं रहेगा। यह फैसला बैंक ने ग्राहकों की सुविधा और वित्तीय समावेशन को ध्यान में रखते हुए लिया है। इससे छोटे खाताधारकों को बड़ी राहत मिली है।
PNB (Punjab National Bank) ने भी अपने सभी सेविंग्स अकाउंट्स से मिनिमम बैलेंस चार्ज खत्म कर दिया है। पहले, यदि किसी खाते में निर्धारित राशि से कम बैलेंस होता था, तो बैंक जुर्माना वसूलता था। अब यह नियम पूरी तरह से हटा लिया गया है, जिससे लाखों ग्राहकों को सीधी राहत मिलेगी।
देश का सबसे बड़ा बैंक SBI (State Bank of India) पहले ही मार्च 2020 में सभी सेविंग अकाउंट्स के लिए मिनिमम बैलेंस की अनिवार्यता को समाप्त कर चुका है। यानी अब SBI ग्राहकों को भी बैलेंस कम होने पर कोई चार्ज नहीं देना पड़ता है। यह कदम बैंक ने कोविड काल में ग्राहकों की सुविधा के लिए उठाया था, जो अब भी लागू है।
AMB यानी औसत मासिक बैलेंस वह न्यूनतम राशि होती है जिसे ग्राहक को महीने भर में खाते में बनाए रखना होता है। यदि यह राशि तय सीमा से नीचे जाती थी, तो बैंक पेनाल्टी चार्ज करता था। हालांकि अब कई बैंक इस नियम को हटाकर ग्राहकों को लचीलापन दे रहे हैं, ताकि वे अपनी आवश्यकताओं और स्थिति के अनुसार फंड का उपयोग कर सकें।
ध्यान देने वाली बात यह है कि कुछ बैंकों ने यह सुविधा केवल स्टैंडर्ड सेविंग अकाउंट्स तक सीमित रखी है। यानी प्रीमियम, स्पेशल स्कीम्स, या कॉर्पोरेट अकाउंट्स पर पुराने नियम अभी भी लागू हो सकते हैं। इसलिए ग्राहकों को अपने बैंक से कंफर्म कर लेना चाहिए।
भारत में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए बैंकों द्वारा उठाए गए इस तरह के कदमों को बेहद सकारात्मक माना जा रहा है। मिनिमम बैलेंस का डर हटने से अब ग्रामीण और निम्न आय वर्ग के लोग भी बैंकिंग प्रणाली से जुड़ने के लिए प्रेरित होंगे। इससे डिजिटल और कैशलेस ट्रांजैक्शन को भी बढ़ावा मिलेगा।