आयुर्वेद के मुताबिक स्वस्थ रहने के लिए शरीर में कफ, वात और पित्त इन तीनों का बैलेंस होना बहुत जरूरी है. लेकिन आजकल बदलते लाइफस्टाइल और गलत खान -पान का सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है. जैसे कि ऑयली और मसालेदार खाना शरीर में पित्त दोष को बिगाड़ सकता है. वैसे ही वात और कफ के साथ भी है. अगर इन तीनों में से शरीर में एक भी कम या ज्यादा हो जाए, तो इससे सेहत से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. इसमें हर दोष और व्यक्ति के शरीर के मुताबिक अलग-अलग लक्षण नजर दिखाई देते हैं.
शरीर में वात दोष बढ़ने से स्किन ड्राई होना, कब्ज या फिर जोड़ों में दर्द जैसी समस्या देखने को मिल सकती है. इसके अलावा भी बहुत से बदलाव महसूस हो सकते हैं. इसलिए शरीर में वात का बैलेंस होना बहुत जरूरी है. अब पित्त और कफ दोष के बारे में ज्यादातर लोग जानते हैं, लेकिन शरीर में वात क्यो बढ़ता है और इसे कैसे कम किया जा सकता है, इसके बारे में जानते हैं पतंजलि की किताब से…
योग गुरु बाबा रामदेव की तरफ से शुरू की गई पतंजलि का मुख्य उद्देश्य लोगों में आयुर्वेद के प्रति जागरूकता बढ़ाना है. आचार्य बालकृष्ण ने आयुर्वेद की जानकारी पहुंचाते हुए एक किताब लिखी है. जिसका नाम द साइंस ऑफ आयुर्वेदा है. इस किताब में वात दोष के बारे में भी बहुत जानकारी दी है. उनकी लिखी इस किताब से जानते हैं कि वात दोष शरीर में क्यों बिगड़ता है और इसे किस तरह कम किया जाता है.
वात दोषवात दोष आकाश और वायु इन दोनों तत्वों से मिलकर बना है. जो तीनों दोषों में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है. यह शरीर में मूवमेंट औरसर्कुलेशनको नियंत्रित करता है. चरक संहिता में वायु को ही पाचक अग्नि बढ़ाने वाला, सभी इन्द्रियों का इफेक्टर और उत्साह का केंद्र माना गया है. वात शरीर में पेट और आंत में होता है.
वात में जोड़ने का खास गुण होता है यानी कि यह दूसरे दोषों के साथ मिलाकर उनके गुणों की क्वालिटी को भी अपना लेता है. उदाहरण के तौर पर अगर यह वित्त दोष के साथ मिल जाएं, तो इसमें गर्मी वाले गुण आ जाते हैं और अगर यह कफ के साथ मिल जाएं, तो इसमें शीतलता के गुण आ जाते हैं.
वात पांच तरह के होता हैप्राण वात : इसे जीवन ऊर्जा या प्राण शक्ति श्वास के रूप में जाना जाता है. जो ब्रेन, लंग्स और हार्ट के कार्य को नियंत्रित करता है.
उदान वात : ये रेस्पिरेटरी सिस्टम और बोलने की क्षमता को नियंत्रित करता है.
समान वात : यह पाचन और मेटाबॉलिज्म में होता है. जो खाने को पचाने और पोषक तत्वों को अब्सॉर्ब करने और टॉक्सिन को शरीर से बाहर निकालने के कार्य में भूमिका निभाता है.
अपान वात : यह शरीर के निचले हिस्से, खासकर की पाचन तंत्र से निचले भाग रिप्रोडक्टिव ऑर्गन और बाउल मूवमेंट को नियंत्रित करने में मदद करता है.
व्यान वात : ये शरीर में ब्लड सर्कुलेशन और मसल्स मूवमेंट और नर्वस सिस्टम को नियंत्रित करता है. सभी अंगों को एक्टिव रखने के कार्य में इसका भी रोल होता है.
वात गुणों में ड्राई, कोल्ड, लाइट और सब्टल, मोबिलिटी, क्लियर और खुरदरा होता है. ये वात के प्राकृतिक गुण हैं. जब वात संतुलन में होता है, तो इसके गुण आमतौर पर महसूस नहीं होते हैं. इन्हें सिर्फ सांस लेने में परेशानी होना देखा जा सकता है. इससे ज्यादा होने पर ही ड्राईनेस जैसे लक्षण गुण दिखाई दे सकते हैं.
वात के दोष के गुणों के मुताबिक ही वात प्रकृति के लक्षण शरीर में नजर आते हैं. जैसे कि शरीर में रूखापन गुण यानी की ड्राइनेस होने के कारण आवाज भारी लगने लगती है, नींद में कमी, ज्यादा पतला होना और स्किन ड्राई जैसे लक्षण होते हैं. शीतलता गुण होने पर चीजों को सहन न कर पाना, शरीर कांपना या फिर जोड़ों से जुड़ी समस्या ज्यादा होने जैसे लक्षण होते हैं. तेजचलने में लड़खड़ाना जैसे लक्षण नजर आ सकते हैं. इसके अलावा बालों, स्किन, मुंह, दांत और हाथ-पैरों में ड्राईनेस नजर आना भी इसी के लक्षणों में आता है. वहीं वात प्रकृति के लोग बहुत जल्दी अपना निर्णय ले लेते हैं. उन्हें बहुत जल्दी गुस्सा आता है और चिढ़ जाते हैं. वहीं बातों को जल्दी समझना और जल्दी भूल जाना भी पित्त प्रकृति वाले लोगों का स्वाभाव हो सकता है, जो सिघर्मिता वात में दिखाई देते हैं.
शरीर में वात दोष बढ़ने के कारणशरीर में वात दोष बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें बढ़ती उम्र सबसे आम है. स्ट्रेस, थकान, डर और थकावट वात असंतुलन के मामले को बढ़ा सकते हैं. शरीर में वात बढ़ने का कारण यूरिन या फिर छींक को रोककर रखना भी हो सकता है.
शरीर में किसी भी तरह का बदलाव हमारी डाइट के कारण होता है. पहला खाया हुआ खाना पचने से पहले कुछ खाना या ज्यादा मात्रा में खाना, तीखा-कड़वा या फिर कसैला स्वाद ज्यादा खाना भी इसका कारण बन सकता है. इसके अलावा ज्यादा ड्राई फ्रूट्स खाना, ज्यादा ठंडा खाना और स्ट्रेस लेने जैसी मेंटल हेल्थ प्रॉब्लम के कारण भी शरीर में वात दोष बढ़ सकता है. पूरी नींद न लेना और अपनी क्षमता से ज्यादा मेहनत करना इसके अलावा बरसात का मौसम भी शरीर में वात बढ़ने का कारण हो सकता है.
शरीर में दिखाई देते हैं ये लक्षणशरीर में जब वात दोष बढ़ता है तो इस दौरान ये लक्षण दिखाई दे सकते हैं. आंखों में ड्राइनेस या रूखापन महसूस होना, सुई चुभने जैसा दर्द या हड्डियों का टूटना या खिसकना, अंगों में कंपकंपी और सुन्न जैसे लगना, ठंडक महसूस होना, वजन न बढ़ना, कब्ज, दर्द, स्किन डल नजर आना, नाखून खराब लगना और मुंह का स्वाद खराब होना. ज्यादा स्ट्रेस लेना, कंसंट्रेशन बिगड़ना, ओवर एक्टिव माइंड, डिप्रेशन, कान, आराम करने में असमर्थता, बेचैनी, कम भूख लगना भी इसके लक्षणों में से एक है.
पतंजलि से जानें इसे कंट्रोल करने के घरेलू नुस्खशरीर में बढ़ते वात दोष को कंट्रोल करने के लिए सबसे पहले ये जानना जरूरी है कि इसके बढ़ने का कारण क्या है. सही डाइट और दवाइयों के साथ इसे ठीक किया जा सकता है. इसके साथ ही लाइफस्टाइल में बदलाव करना भी जरूरी है. वात को संतुलित करने के बटर, ऑयली और फैट काली चीजों को डाइट में शामिल करें. साथ ही गर्म पानी से नहाया भी जा सकता है. वात कम करने वाली औषधियों से तैयार काढ़े की मदद से पसीना लाने के लिए सिंकाई करना भी शामिल है. गर्म तासीर वाली चीजों का सेवन भी किया जा सकता है.
हाथों और पैरों से दबाना, वात कम करने वाले पदार्थों से मालिश करना, गेहूं, तिल, अदरक, लहसुन और गुड़ जैसी चीजों का सेवन भी वात दोष को कंट्रोल करने में मदद कर सकता है. वात बढ़ने पर जो लक्षण नजर आते हैं उन्हें देखकर उपचार करनावा जैसे कि अगर मेंटल हेल्थ से जुड़ी परेशानी जैसे लक्षण दिखाई दे रहे हैं, तो साइकोलॉजिस्ट से इलाज करवाना, जिससे की स्ट्रेस या डिप्रेशन जैसे दिक्कत को कंट्रोल किया जा सके इसमें शामिल है.
आराम करें, मेंटल प्रेशर और स्ट्रेस से बचना. निकोटिन, कॉफी, चाय और शराब का सेवन करने से परहेज करना. गुनगुने तेल से नियमित मसाज करें, मसाज के लिए तिल का तेल, बादाम का तेल और जैतून के तेल का उपयोग कर सकते हैं. रोजाना एक्सरसाइज करें. इस दौरान पत्ता गोभी, फूलगोभी, ब्रोकली, नाशपाती और कच्चे केले खाने से परहेज करें.