गुरु पूर्णिमा 2025: प्रेमानंद महाराज का संदेश आत्मा की उन्नति के लिए
Stressbuster Hindi July 11, 2025 06:42 AM
गुरु पूर्णिमा 2025: प्रेमानंद महाराज का प्रवचन

Guru Purnima 2025

गुरु पूर्णिमा 2025: प्रेमानंद महाराज जी ने अपने प्रवचन में इस बात पर जोर दिया कि आजकल लोग संतों के पास केवल वरदान मांगने आते हैं, न कि आत्मा की उन्नति के लिए। उन्होंने स्पष्ट किया कि सच्चा गुरु वह है जो शिष्य को सांसारिक इच्छाओं से ऊपर उठाकर उसकी आत्मा को ईश्वर से जोड़ता है। किसी बीमारी के इलाज या धन की कामना लेकर गुरु के पास जाना, उनके मार्ग को समझे बिना चमत्कार की उम्मीद करना, साधना के मूल उद्देश्य का अपमान है।


गुरु पूर्णिमा: भक्ति और आत्म-अनुशासन का पर्व



प्रेमानंद जी ने गुरु पूर्णिमा के अवसर पर कहा कि यह पर्व केवल फूल अर्पण या आरती करने का नहीं, बल्कि आत्मचिंतन का अवसर है। यह दिन शिष्य के लिए आत्म-संशोधन और साधना के मार्ग पर चलने की प्रतिज्ञा करने का है। हमें गुरु के उपदेशों को केवल सुनना नहीं, बल्कि उन्हें अपने जीवन में उतारना चाहिए।
मन की चंचलता से मुक्ति: सच्चा आशीर्वाद

महाराज जी ने कहा कि यदि मन चंचल है, तो कोई भी वरदान स्थायी शांति नहीं दे सकता। संत केवल शरीर का इलाज नहीं करते, बल्कि आत्मा का उपचार करते हैं। मन की चंचलता और भावनात्मक भटकाव को दूर करने में सत्संग सहायक होता है।


गुरु के प्रति सच्चा संबंध: नाम-जप और सेवा

प्रेमानंद जी ने बताया कि गुरु से जुड़ने का सबसे श्रेष्ठ साधन नाम-जप और सेवा है। जो शिष्य श्रद्धा से गुरु का स्मरण करता है, वह संसार के विकारों से मुक्त हो जाता है। सेवा, चाहे मंदिर की हो या जरूरतमंद की, आत्मा को विनम्र बनाती है।


पश्चाताप से नया आरंभ: परिवर्तन का अवसर

महाराज जी ने कहा कि जीवन में कितनी भी बड़ी भूल क्यों न हो, सच्चे मन से पश्चाताप करने पर नया अध्याय शुरू करना संभव है। परिवार को ऐसे समय में व्यक्ति का साथ देना चाहिए, न कि उसे तिरस्कृत करना चाहिए।


आज की पीढ़ी के लिए चेतावनी और आशा



प्रेमानंद जी ने युवाओं से कहा कि इंटरनेट और सोशल मीडिया की चकाचौंध में जीवन का असली उद्देश्य खोता जा रहा है। उन्होंने आग्रह किया कि युवा अपने जीवन में एक बार यह प्रश्न करें, 'मैं कौन हूं, और क्यों हूं?' आत्म-अनुशासन और संयम से ही आत्मिक शक्ति उत्पन्न होती है।
गुरु: मार्गदर्शक और चेतना का दीपक

प्रवचन के अंत में उन्होंने कहा कि गुरु को केवल पूजनीय मूर्ति न मानें, बल्कि उन्हें अपने जीवन में उतारें। उनका कार्य केवल उपदेश देना नहीं, बल्कि भक्त के भीतर दिव्य ऊर्जा का संचार करना है।


गुरु पूर्णिमा के इस प्रवचन का सार यह है कि वरदानों के पीछे भागने से बेहतर है आत्मा को जागृत करने का प्रयास करना। गुरु को जानना, उनकी सीखों को जीवन में उतारना और नाम-जप तथा सेवा से स्वयं को संयमित करना ही असली श्रद्धा है।


श्रद्धा केवल फूल चढ़ाने से नहीं, बल्कि अपने भीतर के अंधकार को पहचानकर उसका उपचार करने से ही संभव है।


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