एनसीईआरटी की कक्षा 8 की नई सोशल साइंस की किताब ने इस शैक्षणिक सत्र में जारी होते ही चर्चा खड़ी कर दी है। ‘एक्सप्लोरिंग सोसाइटी: इंडियन एंड बियॉन्ड’ नाम की यह किताब उपनिवेश काल के दौरान भारत के आर्थिक पतन और ब्रिटिश शासन के खिलाफ हुए बड़े प्रतिरोध आंदोलनों पर केंद्रित है, लेकिन इसमें टीपू सुल्तान, हैदर अली और एंग्लो-मैसूर युद्धों का जिक्र नहीं है, जिस पर सवाल उठ रहे हैं।
यह किताब वास्को-डी-गामा के आगमन से लेकर 1800 के दशक के अंत तक के उपनिवेश काल को कवर करती है। इसमें बताया गया है कि किस प्रकार यूरोपीय ताकतों के आगमन से पहले भारत विश्व की कुल जीडीपी का एक चौथाई योगदान देता था और किस प्रकार ब्रिटिश नीतियों और संसाधनों की लूट ने इस समृद्ध देश को गरीबी में धकेल दिया, जिसके परिणामस्वरूप आजादी के समय भारत की हिस्सेदारी घटकर मात्र 5% रह गई।
आर्थिक लूट और उपनिवेशीय प्रभाव पर फोकस
नई किताब में उपनिवेश काल में भारत से हुई ‘धन की निकासी’ पर विस्तार से चर्चा की गई है। किताब में बताया गया है कि 1765 से 1938 तक उपनिवेशवादियों ने भारत से 45 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के बराबर संपत्ति निकाल ली। किताब में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि रेलवे और टेलीग्राफ जैसी व्यवस्थाएं ब्रिटिश शासकों का उपहार नहीं थीं, बल्कि ये भारतीय करदाताओं के पैसे से बनाई गई थीं, जो ब्रिटिश सामरिक और व्यावसायिक हितों के लिए इस्तेमाल हुईं और इससे भारतीय किसानों पर करों का और बोझ पड़ा।
किताब में यह भी उल्लेख है कि कैसे भारत की सांस्कृतिक धरोहर, जिसमें मूर्तियां, पेंटिंग्स, पांडुलिपियां और अन्य ऐतिहासिक वस्तुएं शामिल थीं, को लूटा गया और यूरोपीय संग्रहालयों और निजी संग्रहों में भेज दिया गया। किताब इसे उपनिवेश काल में हुई ‘विशाल चोरी’ करार देती है, जो पूरी दुनिया के उपनिवेशों में हुई।
महत्वपूर्ण नामों और युद्धों का न होना और नई शैक्षणिक पद्धति
पहले की कक्षा 8 की किताब में 1700 के दशक में ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ मैसूर के शासकों के प्रतिरोध का वर्णन था, जिसमें हैदर अली और टीपू सुल्तान तथा चार एंग्लो-मैसूर युद्धों का उल्लेख था। पुरानी किताब में मराठों द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़े गए युद्धों का भी वर्णन था, जबकि नई किताब में यह विवरण गायब है।
इस पर सवाल पूछे जाने पर एनसीईआरटी की पुस्तक निर्माण समिति के अध्यक्ष मिशेल डैनिनो ने बताया कि नई शिक्षा नीति 2020 और नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क के तहत कक्षा 6-8 के मिडल स्टेज में भारतीय इतिहास का व्यापक अवलोकन प्रस्तुत किया गया है, जिसमें तारीखों और युद्धों की लंबी सूची की जगह विषयगत समझ पर ध्यान दिया गया है। उन्होंने बताया कि संभवतः पार्ट 2 में भी टीपू सुल्तान और एंग्लो-मैसूर युद्धों का उल्लेख नहीं किया जाएगा क्योंकि उसके अध्याय अभी तैयार नहीं हुए हैं।
डैनिनो ने स्पष्ट किया कि छात्रों पर तिथियों और घटनाओं का बोझ डालने के बजाय उपनिवेश काल के प्रभाव को समझाना प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि कक्षा 9-12 के सेकेंडरी स्टेज में उपनिवेश काल और उससे जुड़ी जटिलताओं को गहराई से पढ़ाया जाएगा, ताकि छात्र इन विषयों को बेहतर तरीके से समझ सकें।
किताब के पहले भाग में संन्यासी-फकीर विद्रोह, कोल विद्रोह, संथाल विद्रोह और 1857 के विद्रोह से पहले हुए किसान आंदोलनों का उल्लेख है। साथ ही इसमें 1757 में प्लासी के युद्ध और ईस्ट इंडिया कंपनी के व्यापारी से शासक बनने की प्रक्रिया पर भी प्रकाश डाला गया है।
एनसीईआरटी की नई किताब और करिकुलम में बदलाव नई शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप किए जा रहे हैं। यह बदलाव छात्रों में रट्टा आधारित पढ़ाई के स्थान पर विषयगत और विश्लेषणात्मक समझ विकसित करने के उद्देश्य से किए गए हैं, ताकि छात्र उपनिवेश काल में भारत के ऐतिहासिक बदलावों और उनके प्रभाव को बेहतर समझ सकें, भले ही इसके लिए कुछ घटनाओं का उल्लेख सीमित करना पड़े।
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