Son Of Sardar 2 Director Story: बॉलीवुड की चमक-धमक भरी दुनिया में कुछ कहानियां ऐसी होती हैं, जो सिर्फ पर्दे पर नहीं, बल्कि असल जिंदगी में भी प्रेरित करती हैं. ऐसी ही एक बेमिसाल कहानी है विजय कुमार अरोड़ा की, जिन्हें फिल्म इंडस्ट्री में प्यार से ‘डैडू’ बुलाया जाता है. जरा सोचिए, जो शख्स कभी सेट पर स्पॉट बॉय बनकर चाय-पानी सर्व करता था, आज वही अजय देवगन जैसे बॉलीवुड सुपरस्टार की फिल्म का निर्देशन कर रहा है और उन्होंने देश में कला की दुनिया का सबसे बड़ा सम्मान नेशनल अवॉर्ड भी अपने नाम किया है.
जी हां, अजय देवगन की फिल्म ‘सन ऑफ सरदार 2’ के निर्देशक डैडू का ये शानदार सफर, उनकी लगन, सब्र और बेमिसाल मेहनत का सबूत है. आइए, उनकी जिंदगी के उन अनछुए पहलुओं पर विस्तार से बात करते हैं. विजय कुमार अरोड़ा का फिल्मी दुनिया में सफर किसी करिश्मे से कम नहीं. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत सचमुच फर्श से की थी एक स्पॉट बॉय के रूप में.
सेट पर ही बिताते थे समयये वो दौर था जब सेट पर दिन में 18-20 घंटे काम करना पड़ता था और मेहनताना भी बहुत कम मिलता था. पुराने इंटरव्यू में डैडू बताते हैं कि कैसे वो सिर्फ अपने काम तक सीमित नहीं रहते थे. वो हमेशा कैमरे के आसपास खड़े होकर देखते थे कि बड़े-बड़े सिनेमाटोग्राफर कैसे लाइट सेट करते हैं, कैसे शॉट लेते हैं. हर चाय के कप को उठाने के साथ, वो अपने अंदर कैमरे के एंगल और फ्रेमिंग की समझ बिठाते जाते थे. उन्हें लगता था कि ये उनका काम नहीं, बल्कि सीखने का एक बड़ा मौका है. कई रातें उन्होंने सेट पर ही सोकर बिताईं, सिर्फ इसलिए ताकि वो अगले दिन सुबह जल्दी आकर कुछ नया सीख सके और कैमरे की दुनिया को और करीब से जान पाए.
सेट पर स्पॉटबॉय का काम करते हैं विजय अरोड़ा
कैमरे के पीछे की दीवानगी से शुरू हुआ सफलता का सफरडैडू की ये सीखने की ललक और बेपनाह मेहनत आखिरकार रंग लाई. स्पॉट बॉय से वो धीरे-धीरे असिस्टेंट कैमरामैन बने, फिर स्वतंत्र रूप से डायरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी (DOP) की जिम्मेदारी संभालने लगे. उन्होंने कभी किसी काम को छोटा नहीं समझा, बल्कि हर मौके को सीखने का ज़रिया बनाया. बड़े-बड़े DOPs के साथ रहकर उन्होंने कैमरे की बारीकियों को इतने करीब से समझा कि जल्द ही उनकी अपनी पहचान बन गई. अजय देवगन जैसे सुपरस्टार की हिट फिल्म ‘सन ऑफ सरदार’ के सीक्वल का निर्देशन भी डैडू ने किया है और अजय देवगन की मानें तो उन्होंने अपने इस काम में पूरी जान लगा दी है.
फिल्म को मिला नेशनल अवॉर्डDOP के तौर पर कामयाबी हासिल करने के बाद भी डैडू रुके नहीं. उनके अंदर निर्देशक बनने का सपना पल रहा था. उन्होंने पंजाबी फिल्मों जैसे ‘गुड्डीयां पटोले’ और ‘लौंग लाची’ का निर्देशन कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया. लेकिन उनके सफर का सबसे बड़ा और इमोशनल पल तब आया, जब उन्हें पंजाबी फिल्म ‘हरजीता’ के लिए नेशनल अवॉर्ड मिला. ये अवॉर्ड सिर्फ उनके काम का सम्मान नहीं था, बल्कि सालों की उनकी तपस्या, संघर्ष और ‘कभी हार न मानने’ वाली जिद का जश्न था. अवॉर्ड लेते हुए उनके चेहरे पर वो खुशी थी, जो हर मेहनती इंसान के लिए एक मिसाल बनती है.
कमाल के सिनेमेटोग्राफर हैं विजय सिंह अरोड़ा
नेशनल अवॉर्ड विजय कुमार अरोड़ा के लिए सिर्फ उनके काम का सम्मान नहीं था. डैडू भावुक होकर बताते हैं, “जब नेशनल अवॉर्ड की खबर मिली, तब सबसे पहले उन रातों की याद आई, जो मैंने सेट पर नींद पूरी किए बिना गुजारी थीं. उन छोटे-छोटे कामों की याद आई, जो मैंने अपने सपने पूरे करने के लिए किए. ये अवॉर्ड सिर्फ मेरा नहीं, उन सभी स्पॉट बॉयज और असिस्टेंट्स का है, जो आज भी अपने सपनों के लिए जूझ रहे हैं और पर्दे के पीछे रहकर जादू पैदा करते हैं.”
अब तक 5 फिल्मों का निर्देशन कर चुके हैं ‘डैडू’
प्रेरणा की मिसाल है ‘डैडू’एक स्पॉट बॉय से लेकर एक नेशनल अवॉर्ड विजेता सिनेमैटोग्राफर और सफल निर्देशक बनने तक का विजय कुमार अरोड़ा उर्फ ‘डैडू’ का सफर हर उस शख्स के लिए एक प्रेरणा है, जो अपनी जिंदगी में बड़े सपने देखता है, लेकिन परिस्थितियों से डरता है. उनकी कहानी ये साबित करती है कि अगर इंसान में जुनून हो, सीखने की भूख हो और वो लगातार बिना रुके मेहनत करता रहे, तो बॉलीवुड ही नहीं, दुनिया की कोई भी मंजिल दूर नहीं होती. ‘डैडू’ की जिंदगी बताती है कि सफलता सिर्फ हुनर से नहीं, बल्कि बेहिसाब जज्बे और कभी न टूटने वाले हौसले से मिलती है. उनकी ये कहानी हमेशा हमें प्रेरित करती रहेगी कि अगर इरादा बड़ा हो तो कोई भी शुरुआत छोटी नहीं होती.